"प्राणायाम": अवतरणों में अंतर

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अमृतम मासिक पत्रिका
अक्टूबर 2014 से साभार
प्राणायाम का अर्थ है-प्राणों का आयाम।
 
हब साधक आती-जाती श्वांस पर अपना ध्यान एकाग्र कर लेता है, तो वह अनेक सिद्धियों का स्वामी बन जाता है।
 
कछु और न सुहात है-
 
प्राणायाम के परिणामों से
 
व्यक्ति को दुःख,
दुर्भाव,अभाव,कष्ट,
 
भय-भ्रम,चिन्ता आदि
का ध्यान नहीं रहता ।
परमहँस योगिराज भोले के भक्त
 
श्री श्री सुन्दरदास जी ने
 
महादेव की भक्ति में मद-मस्त
होकर कहा है कि-
 
काहू सौ न रोष-तोष,
काहू सौ न राग द्वेष ।
काहू सौ न बैर भाव,
काहू की न घात है ।।
काहू सौ न बकबाद,
काहू सौ न विषाद ।
काहू सौ न सँग न,
तो कोई पक्षपात है ।।
काहू सौ न दुष्ट वैन,
काहू से न लेंन-देंन ।
‘शिव’ को विचार कछु,
और न सुहात है ।।
 
 
[[चित्र:Tanumânasî kapalabhati.JPG|right|thumb|300px|प्राणायाम करते हुए एक व्यक्ति]]
[[चित्र:Kumbhaka terminology.svg|right|thumb|300px|मोनियर-विलियमस ने प्राणायाम को [[कुम्भक]] के रूप में इस प्रकार परिभाषित किया है। इसमें क्षैतिज अक्ष पर समत है, और ऊर्ध्व अक्ष पर फेफड़ों में वायु की मात्रा]]