"अश्वत्थामा": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: Reverted
Reverted to revision 4619272 by EatchaBot (talk): Reverted (TwinkleGlobal)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 2:
{{wikify}}
 
{{Infobox character
{{ज्ञानसन्दूक महाभारत के पात्र|width1=|व्यवसाय=|संतान=|जीवनसाथी=|भाई-बहन=|माता और पिता=[[द्रोणाचार्य]] [[पिता]],
| series = [[महाभारत]]
[[क्रपी]] [[माता]]|राजवंश=|मुख्य शस्त्र=[[धनुष]] [[बाण]]|उत्त्पति स्थल=|नाम=अश्वत्थामा|संदर्भ ग्रंथ=[[महाभारत]] [[पुराण]]|देवनागरी=|अन्य नाम=द्रोण पुत्र,|width2=|Caption=[[नारायण अस्त्र ]] का प्रयोग करते हुए अश्वत्थामा|Image=Ashwatthama uses Narayanastra.jpg|मित्रता=}}
| image = Ashwatthama uses Narayanastra.jpg
| alt = अश्वत्थामा
| caption = अश्वत्थामा नारायणस्त्र का प्रयोग करते हुए
| family= [[द्रोणाचार्य|द्रोण]] (पिता)
}}
 
महाभारत युद्ध से पुर्व गुरु द्रोणाचार्य अनेक स्थानो में भ्रमण करते हुए हिमालय (ऋषिकेश) प्‌हुचे। वहाँ तमसा नदी के किनारे एक दिव्य गुफा में तपेश्वर नामक स्वय्मभू शिवलिंग है। यहाँ गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी माता कृपि ने शिव की तपस्या की। इनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने इन्हे वरदान देते हुए कहा था कि वें उनके घर पुत्र केप्राप्ति रूपका मेंवरदान जन्म लेंगें ।दिया। कुछ समय बाद माता कृपि ने एक सुन्दर तेजश्वी बाल़क को जन्म दिया। जन्म ग्रहण करते ही इनके कण्ठ से हिनहिनाने की सी ध्वनि हुई जिससे इनका नाम अश्वत्थामा पड़ा। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी। जो कि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी। अश्वत्थामा भगवान शिव के २०वें अवतार थे |
महाभारत युद्ध के समय गुरु द्रोणाचार्य जी ने हस्तिनापुर (मेरठ) राज्य के प्रति निष्ठा होने के कारण कौरवों का साथ देना उचित समझा। अश्वत्थामा भी अपने पिता की तरह शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपूण थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने सक्रिय भाग लिया था। महाभारत युद्ध में ये कौरव-पक्ष के एक सेनापति थे। उन्होंने घटोत्कच पुत्र अंजनपर्वा का वध किया। उसके अतिरिक्त द्रुपदकुमार, शत्रुंजय, बलानीक, जयानीक, जयाश्व तथा राजा श्रुताहु को भी मार डाला था। उन्होंने कुंतीभोज के दस पुत्रों का वध किया। पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत युद्ध के समय पाण्डव सेना को तितर-बितर कर दिया। पांडवों की सेना की हार देख़कर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कूटनीति सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत यह बात फेला दी गई कि "अश्वत्थामा मारा गया"
Line 24 ⟶ 29:
[[चित्र:Draupadi and Ashvatthaman, Punjab Hills c. 1730.jpg|thumb|Draupadi and Ashvatthaman, Punjab Hills c. 1730]]
द्रौपदी के इन न्याय तथा धर्मयुक्त वचनों को सुन कर सभी ने उसकी प्रशंसा की किन्तु भीम का क्रोध शांत नहीं हुआ। इस पर श्रीकृष्ण ने कहा, “हे अर्जुन! शास्त्रों के अनुसार पतित ब्राह्मण का वध भी पाप है और आततायी को दण्ड न देना भी पाप है। अतः तुम वही करो जो उचित है।” उनकी बात को समझ कर अर्जुन ने अपनी तलवार से अश्वत्थामा के सिर के केश काट डाले और उसके मस्तक की मणि निकाल ली। मणि निकल जाने से वह श्रीहीन हो गया। श्रीहीन तो वह उसी क्षण हो गया था जब उसने बालकों की हत्या की थी किन्तु केश मुंड जाने और मणि निकल जाने से वह और भी श्रीहीन हो गया और उसका सिर झुक गया। अर्जुन ने उसे उसी अपमानित अवस्था में शिविर से बाहर निकाल दिया।
 
 
[https://www.hindimahiti.com/2019/11/blog-post_87.html '''कलियुग मे जीवन'''] {{Reflist}}
श्रीकृष्ण का श्राप
श्रीकृष्ण ने कहा की ये जो तुम्हारे माथे पर मणि है इसको तुम निकाल दो अब तुम इसको धारण करने के लायक नहीं रहे। मणि अश्वत्थामा के जन्म से उसके माथे पर लगी हुई थी जो उसका सुरक्षा कवच था। इतना सुनते ही अश्वत्थामा घबरा उठा और भागने की कोशिश करने लगा। लेकिन श्रीकृष्ण ने जबरदस्ती उसकी मणि निकल ली और उसको श्राप दे दिया की वह 5000 सालों तक इस पृथ्वी पर बेसहारा विचरण करता रहेगा और कोई उसको खाने को अन्न तक नहीं देगा।
 
तब से लेकर अश्वत्थामा आज तक इस पृथ्वी पर घूम रहे हैं। जगह जगह उनको देखे जाने के किस्से सुनने को मिलते हैं। कहा जाता है की मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर असीरगढ़ का किला है इस किले में स्थित शिव मंदिर में अश्वत्थामा को पूजा करते हुए देखा गया है। लोगो का कहना है की अश्वत्थामा आज भी इस मंदिर में पूजा करने आते हैं। अश्वत्थामा पूजा करने से पहले किले में स्थित तालाब में पहले नहाते हैं। अश्वत्थामा मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के गौरीघाट (नर्मदा नदी) के किनारे भी देखे जाने का उल्लेख मिलता है। लोगो का कहना है की वो यहाँ अपने माथे से निकल रहे रक्त के दर्द से कराहते हैं। तथा स्थानीय लोगो से वो तेल और हल्दी मंगाते हैं वहां लगाने के लिए। इनको मध्यप्रदेश के जंगलो में भी भटकते हुए देखा गया है।
 
[[श्रेणी:महाभारत के पात्र]]
[https://www.hindimahiti.com/2019/11/blog-post_87.html पराक्रमी वीर योद्धा अश्वत्थामा की संक्षिप्त जीवनी- life story of ashwatthama]