"हिरण्यकशिपु": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Narasimha Disemboweling Hiranyakashipu, Folio from a Bhagavata Purana (Ancient Stories of the Lord) LACMA M.82.42.8 (1 of 5).jpg|thumb|right|180px|भगवान नृसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप वध]]
'''हिरण्यकश्यप''' ({{lang-en|Hiranyakashipu}}) एक [[असुर]] था जिसकी कथा [[पुराण|पुराणों]] में आती है। उसका वध [[नृसिंह]] अवतारी [[विष्णु]] द्वारा किया गया। यह "हिरण्यकरण वन" नामक स्थान का राजा था৷ वह [[हिरण्याक्ष]] बड़ाउसका छोटा भाई था जिसका वध [[वाराह अवतार|वाराह]] ने किया था।
हिरण्याक्ष का वध श्री विष्णु के सोलहवें अवतार [[वाराह ]]|ने किया था ।
 
==परिचय==
[[विष्णुपुराण]] में वर्णित एक कथा के अनुसार [[दैत्य|दैत्यों]] के आदिपुरुष [[कश्यप]] और उनकी पत्नी [[दिति]] के दो पुत्र हुए। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। बड़े पुत्र हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या द्वारा [[ब्रह्मा]] को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा न रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से उसक प्राणों को कोई डर रहेगा। इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपने को अमर समझने लगा। उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में [[विष्णु]] की पूजा को वर्जित कर दिया। हिरणकशिपुहिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु के गर्भ से उसको चार संतान प्राप्त हुई थी । जिनके नाम हैं प्रह्लाद , हल्लाद , संह्लाद और अनुहल्लाद सबसे बड़ाका पुत्र [[प्रह्लाद]], भगवान विष्णु का उपासक था क्योंकि उसका जन्म देवर्षि नारद के आश्रम में हुआ था उसके तीनों छोटे भाइयों का जन्म हिरण्यकश्यप के राजमहल में हुआ था और तीनों में अपने पिता की तरह राक्षस प्रवृति थी । बड़े पुत्र प्रह्लाद को यातना एवं प्रताड़ना के बावजूद वह श्री विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन [[होलिका]] से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ पर होलिका जलकर राख हो गई। अंतिम प्रयास में हिरण्यकशिपु ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को उबारने आए। वे खंभे से [[नरसिंह]] के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यकशिपु को महल के प्रवेशप्रवेशद्वार द्वारकी चौखट पर, ले गएजोघर अन्दरका बाहर था बहार भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात , भगवानआधा जोमनुष्य, न मानव थे नआधा पशु औरजोपक्षीनर अपनी गोद मेंथाधरतीपशु परऐसे नरसिंह आकाशके में न जलरूप में औरअपने भगवानलंबे केतेज़ तेजनाखूनों नाख़ूनसे जो न अस्त्र थे न शस्त्र, उन नाखूनों से गोधूलि बेला में चौखट पर उसका पेट फाड़ डाला | maमार डाला।<ref>{{cite web|url=http://210.212.78.56/50cities/jyotimath/hindi/profile_mythology.asp|title=पौराणिक|access-date=[[4 मार्च]] [[2008]]|format=एएसपी|publisher=जोशीमठ|language=}}{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }}</ref> इस प्रकार हिरण्यकश्यप अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्मों के कारण भयानक अंत को प्राप्त हुआ
 
== नाम पर मतभेद ==