"वट सावित्री": अवतरणों में अंतर

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'''वट सावित्री व्रत''' सौभाग्यसौभाग्यवती कोस्त्रियों देनेद्वारा वाला और संतानपति की प्राप्ति में सहायतालंबी देनेआयु वालाके व्रतलिए मानाकिया गयाजाता है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है।
== उद्देश्य ==
तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है : सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना। कई व्रत विशेषज्ञ यह व्रत ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक करने में भरोसा रखते हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक भी यह व्रत किया जाता है<ref>{{cite book|url=https://archive.org/stream/cu31924079584821/cu31924079584821_djvu.txt}}</ref>। विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं।
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[[श्रेणी:संस्कृति]]
[[श्रेणी:हिन्दू त्यौहार]]
<references />