"वृक्षारोपण": अवतरणों में अंतर

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अमृतम पत्रिका, ग्वालियर मप्र की प्रस्तुति...
वृक्षों में भी जान होती है। पेड़ों का भी स्वाभिमान, आत्मसम्मान होता है। वृक्ष भी पुत्र की तरह प्रिय हैं। पेड़ हैं, तो भेड़ -बकरी जीवित हैं। ये पेट भी भर्ती है और इनकी ऊन से देह की रक्षा भी होती है।
 
यह बात पूर्णतः सत्य है। हमने नारियल का पेड़ अपनी अमृतम वाटिका में बहुत ही सावधानी पूर्वक लगाया, तो वह पनप तो गया लेकिन 5 साल तक ज्यादा बढ़ा नहीं हुआ।
प्रवास में प्रयास…
एक बार सपरिवार केरल प्रवास पर गुरुवायुर, शबरी मलय, शेषनाग शिवालय आदि तीर्थस्थल पर गए और कुछ जानकारों से पूछा?
उन्होंने यही सलाह दी कि आप रोज वृक्ष को सहलाकर, प्यार से बातें करें। हमने एक दो महीने ऐसा ही लिया, तो एक साल में फल आने लगे।
वृक्षों में जीवन-एक विनम्र निवेदन–
वृक्ष सहिंता, आयुर्वेद सहिंता, चरक आदि में उल्लेख है-
*¶~ दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है ।
*¶~ दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब है,
*¶~ दस तालाबों के बराबर, एक पुत्र है,
*¶~दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है।
*¶~ अतः खेत-खलियान की मेढ़ पर पेड़ लगाएं।
¶~ पेड़ हमें अधेड़ होने से बचाते हैं। हम वृक्षों को जीवित रखेंगे, तो ही हम भविष्य में जीवित रह पायेंगे।
¶~ कृपया पेड़ों की पुत्र जैसी देखभाल करें।
¶~ पेड़ों के गुच्छे, बेलों की झालर डॉलर से कम नहीं हैं।
¶~ “तमः प्राया:अव्यक्तचैतन्या:,
मतलब है, वृक्षों को अव्यक्त चेतना शक्ति होती है ।
¶~ “अन्तः स्पर्शा:”इन्हें स्पर्श का ज्ञान होता है ।
इसप्रकार वृद्ध वृक्ष वैज्ञानिक जिनके नाम हैं…
१- गुणरत्न,
२- कणाद,
३- उदयनाचार्य
आदि महान वृक्षाचार्यों ने पूरा जीवन पेड़ों के लिए समर्पित करके, खोज कर दुनिया को चोंका दिया कि पेड़ भी प्राणी की तरह प्रकृति के हर भाव- प्रभाव, स्वभाव और अभाव को समझते हैं।
वृक्ष हैं दिव्यांग गूंगे प्राणी….
पेड़ बिना झोली के फकीरों यानि पक्षियों का डेरा है, घर है। यही उनका बसेरा है। विशालकाय भवन-महल है।
वृक्ष बस बोल नहीं पाते, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है!
“लाजवंती“ या छुई-मुई इसे छूने, स्पर्श करने से ही यह पत्र-डाली सहित सिकुड़ जाती है ।
“अमृतम आयुर्वेदिक निघण्टु“में, तो इतना तक कहा कि रजः स्वला स्त्री अर्थात महावारी वाली महिला पेड़, पौधों को छूले, तो वे सूख जाते हैं।
इसका उल्टा यह है कि-
अशोक व बकुल वृक्ष पर युवती के स्पर्श से पुष्पपल्लवित, प्रकट हो जाते हैं।
कुष्मांड बहुत स्वाभिमानी बेल है। पेठा इसी से बनता है, इसे उंगली दिखाने पर तुरन्त मुरझा जाता है। फिर,हम जो आयुर्वेदिक ओषधियाँ उपयोग कर रहे हैं, यह सब शिवलिंग रूपी वृक्षों की देन है।
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एवं दिमाग की शान्ति तथा घबराहट, बैचेनी मिटाने याददास्त बढ़ाने हेतु- ब्रैन की गोल्ड माल्ट उपयोग कर रहें हैं, इन्हें पेड़ों की कृपा से ही बना पाते हैं।
सृष्टि का श्रृंगार करते हैं-पेड़….
गिलोय की बेल, बरसात के दिनों में वृक्षों का श्रृंगार करती है।
■ हरे-भरे वृक्ष जिंदगी हरी-भरी कर देते हैं।
■ वृक्ष अल्लाहताला की सौगात है।
■ पारदियों व फारसियों का प्रेम है।
■ ईसाइयों की जान है।
■ जीव-जंतुओं का जीवन है।
■ बच्चों का बचपन है।
■ पशुओं के लिए परमात्मा है।
■ बौद्ध धर्म में ज्ञान प्राप्ति पाने का सर्वश्रेष्ठ स्थान है वृक्ष। बोधिवृक्ष को सारा संसार श्रद्धा की निगाहों से देखता है और
■ विश्व-ब्रह्मांड की आत्मा हैं- वृक्ष।
■ आचार्य चतुरसेन के अनुसार वृक्ष का ज्ञान रखने वाले लोग हर काम में दक्ष होते हैं।
■ “देवरहा बाबा” ने एक बार कहा था कि-वृक्षों ने हमें निरोगी बना दिया।
भारतीय स्कन्द पुराण में एक अद्भुत श्लोक है
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान् ।कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च
पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।
अर्थात-अश्वत्थः = पीपल,
पिचुमन्दः = नीम,
न्यग्रोधः = वट वृक्ष
चिञ्चिणी = इमली
कपित्थः = Wood apple
बिल्वः = बेल
आमलकः = आंवला
आम्रः = आम
उप्ति = पेड़/पौधे लगाना
सभी धर्मग्रंथों के अनुसार जो भी इन सारे वृक्षों का वृक्षारोपण करता है उसे जीवन में कभी दुःख-दुर्भाग्य नहीं देखने पड़ता। वह व्यक्ति नरक रहित स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है।
नीम सबसे बड़ा हकीम…
आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार नीम को नई कोपल ही सबसे अधिक लाभकारी है। यह समय होता है- चैत्र-वैशाख यानि मार्च-अप्रैल-मई तक का महीना।
शेष समय नीम के सेवन से पित्त और वात की वृद्धि होती है। जिन लोगों को दर्द, सूजन, चिड़चिड़ाना आदि की शिकायत हो, उन्हें नीम नहीं खाना चाहिए।
नीम के क्या फायदे-नुकसान हैं, इस बारे में भावप्रकाश निघण्टु में विस्तार से लिखा है।
सनातन धर्म के नवीन वर्ष के दिन जिसे नवसंवत्सर भी कहते हैं। इस दिन नीम की कोपल, कालीमिर्च, सेंधानमक सभी समभाग लेकर की चने बराबर गोली साल भर के लिए एक साथ बनाने का वैदिक विधान है। क्योंकि सूर्य इस चैत्र मास में अपने गुरु की राशि मीन में गोचर कर रहे होते हैं।
इस समय नीम के ओषधि गुण बहुत लाभकारी हो जाते हैं। इस स्वनिर्मित नीम गोली को पूरे साल सुबह खाली पेट सादे जल से सेवन करने से व्यक्ति पूरे वर्ष निरोगी रहता है। उसका मधुमेह (डाइबिटीज), उदर विकार तथा ग्रन्थिशोथ (थायराइड) 6 माह में जड़ से मिट जाता है।
नीम हकीम खतरे की जान। इसके नुकसान…
द्रव्यगुण विज्ञान ग्रन्थ एवं भेषजयसार मणिमाला ग्रन्थ के अनुसार नवसंवत्सर के अलावा नीम की पत्तियां तोड़कर खाने से जोड़ों में दर्द, सूजन, आमवात, ग्रंथशोथ, थायराइड जैसी समस्याओं की शुरुआत होने लगती है।
पित्तदोषों की वृद्धि या पित्त का असन्तुलित होने का कारण भी वेसमय नीम खाना ही है।
किस समय या मौसम में क्या खाएं , क्या न खाएं ऐसा बहुत सा ज्ञान आयुर्वेद शास्त्रों में लिखा है।
आयुर्वेद के बहुत से प्राचीन वेद्याचार्य स्वास्थ्य सूक्तियां, दोहे आदि भी लिख गए है। आयुर्वेद की दोहावली के अनुसार पुराने लोग चलकर 100 वर्ष तक जीवित रहते थे।
मनोबल वृद्धि एवं आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए नीम चमत्कारी है…
नीम के पेड़ लगाने और नीम के समक्ष ॐ घृणि सूर्य अदित्य नमःशिवाय बोलने से अथाह मानसिक शांति का एहसास होता है।
सूर्य की प्रसन्नता, कृपा पाने के लिए नीम वृक्ष की पूजा का विधान भविष्यपुराण में मिलता है। नीम सूर्य का आराध्य वृक्ष है।
मथुरा से 40 किलोमीटर दूर कोकिलावन में शनिदेव और भगवान श्रीकृष्ण ने नीम वृक्ष के नीचे ही बैठकर सूर्य की आराधना की थी। यहां शनि भगवान की स्वयम्भू प्रतिमा भी है। शनिचरी अमावस्या को यहां दुनिया का लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते हैं।
शनि के प्रकोप से बचने के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण तीर्थ है।
सेमल वृक्ष एक कायाकल्प वृक्ष है। जाने क्यों?
यह सेमल के फूल हैं। फरबरी, मार्च, अप्रैल में ही इसके पुष्प आते हैं। यह कायाकल्प वृक्ष है।
 
 
पुराने समय के वैद्य दशहरा के दिन इसके तने में गड्ढा करके उसके अंदर एक मिट्टी के पात्र में मुनक्का, स्वर्ण-चांदी भस्म, अपामार्ग, मकोय आदि 27 ओषधियाँ रखते थे और ऊपर से मिट्टी का लेप लगाकर छोड़ देते थे।
उम्ररोधी यानी एंटीरेजिंग ओषधि-
हनुमान जयंती के दिन उस मिट्टी के पात्र को निकालकर उन ओषधियों का अवलेहा बनाकर मख्खन और दूध के साथ सेवन करने से पुनः युवा हो जाते थे। इसके सेवन से झुर्रियां मिट जाती है। अनेको रोगों व दोषों का सर्वनाश हो जाता है। ऐसा "जँगलिनी जड़ीबूटी" नामक एक बहुत ही दुर्लभ और प्राचीन पुस्तक में उल्लेख मिलता है।
इस वृक्ष के कांटे घिसकर इसका लेप फुंसी-मुहांसों पर लगाने से 2 दिन में सुख जाते हैं। सेमल मूसली के नाम से प्रसिद्ध यह औषधि नामर्दी नाशक भी है।
वृक्ष लगाएं, जिससे समस्त पशु-प्राणी स्वस्थ्य रहें।विश्व में परम् शांति रहे। दुनिया का भटकाव दूर हो। सब अंधकार से उजाले यानि ज्ञान की तरफ चलते हुए सुखी रहें। इसी भाव से वेद की इस ऋचा का स्मरण करें, ताकि इस मन्त्र के प्रभाव से सारे अभाव नेस्तनाबूद हो जाएं-
ॐ असतो मा सद्गमय!
तमसो मा ज्योतिर्गमय!!
मृत्योर्मा अमृतं गमय!
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः!!
यही काल के कारक महाकाल, महादेव से करबद्ध प्रार्थना है। निवेदन-आग्रह है-
अमृतम पत्रिका -
amrutampatrikaडॉटकॉम सर्च करें।
वृक्ष की कथा हजारों लता से भी ज्यादा है। फिलहाल इतना ज्ञान ही अपने अंदर समाहित कर कम से कम 27 पेड़ जरूर लगाएं। वृक्ष सहिंता के अनुसार जो भी व्यक्ति सत्ताईस वृक्ष लगा लेता है, उसे कभी कोई रोग-शोक नहीं होता। सभी ग्रह-नक्षत्रों की कृपा बनी रहती है।
 
{{स्रोत हीन|date=अगस्त 2014}}{{आधार}}
[[चित्र:Eucalyptus plantation in final stages.JPG|right|thumb|300px|वृक्षारोपण किया जा रहा है।]]
नवोद्भिद (छोटे पौधों / seedlings) को एक स्थान से खोदकर दूसरे स्थान पर लगाने की प्रक्रिया को '''वृक्षारोपण''' (Tree planting) कहते हैं। वृक्षारोपण की प्रक्रिया एक तरफ बड़े वृक्षो के रोपण की प्रक्रिया से अलग है तो दूसरी तरफ [[बीज]] बोकर पेड़ उगाने की प्रक्रिया से भी भिन्न है।
 
== इन्हें भी देखें==