"पाण्डु": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) |
No edit summary टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 1:
[[File:Pandu orderd Kunti to bear a son.jpg|thumb|पांडु कुंती को पूत्र उत्पन्न करने की आज्ञा देते हैं]]
{{ज्ञानसन्दूक महाभारत के पात्र|width1=|मुख्य शस्त्र=|जीवनसाथी=[[कुन्ती]] [[माद्री]]|देवनागरी=|संतान= [[ कर्ण]] , [[युधिष्ठिर]], [[
[[महाभारत]] के अनुसार '''पाण्डु''' हस्तिनापुर के महाराज [[विचित्रवीर्य]] और उनकी दूसरी पत्नी [[अम्बालिका]] के पुत्र थे । उनका जन्म महर्षि वेद व्यास के वरदान स्वरूप हुआ था। वे [[पाण्डव|पाण्डवों]] के आध्यात्मिक पिता और [[धृतराष्ट्र]] के कनिष्ट भ्राता थे। जिस समय [[हस्तिनापुर]] का सिंहासन सम्भालने के लिए धृतराष्ट्र को मनोनीत किया जा रहा था तब [[विदुर]] ने राजनीति ज्ञान की दुहाई दी कि एक नेत्रहीन व्यक्ति राजा नहीं हो सकता, तब पाण्डु को नरेश घोषित किया गया।
एक बार महाराज पाण्डु अपनी दोनों रानियों [[कुन्ती]] और [[माद्री]] के साथ वन विहार कर रहे थे। एक दिन उन्होंने मृग के भ्रम में बाण चला दिया जो एक ऋषि को लग गया। उस समय ऋषि अपनी पत्नी के साथ सहवासरत थे और उसी अवस्था में उन्हें बाण लग गया। इसलिए उन्होंने पाण्डु को श्राप दे दिया की जिस अवस्था में उनकी मृत्यु हो रही है उसी प्रकार जब भी पाण्डु अपनी पत्नियों के साथ सहवासरत होंगे तो उनकी भी मृत्यु हो जाएगी। उस समय पाण्डु की कोई संतान नहीं थी और इस कारण वे विचलित हो गए। यह बात उन्होंने अपनी बड़ी रानी [[कुन्ती]] को बताई। तब कुन्ती ने कहा की ऋषि [[दुर्वासा ऋषि|दुर्वासा]] ने उन्हें वरदान दिया था की वे किसी भी देवता का आवाहन करके उनसे संतान प्राप्त सकतीं हैं। तब पाण्डु के कहने पर कुन्ती ने एक-एक कर कई देवताओं का आवाहन किया। इस प्रकार [[माद्री]] ने भी देवताओं का आवाहन किया। तब [[कुन्ती]] को तीन और [[माद्री]] को दो पुत्र प्राप्त हुए जिनमें [[युधिष्ठिर]] सबसे ज्येष्ठ थे। कुंती के अन्य पुत्र थे [[भीम]] और [[अर्जुन]] तथा माद्री के पुत्र थे [[नकुल]] व [[सहदेव]]।
|