"ऋष्यशृंग": अवतरणों में अंतर

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पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋष्यशृंग विभाण्डक तथा [[अप्सरा]] [[उर्वशी]] के पुत्र थे। विभाण्डक ने इतना कठोर तप किया कि [[देवता]]गण भयभीत हो गये और उनके तप को भंग करने के लिए उर्वशि को भेजा। उर्वशी ने उन्हें मोहित कर उनके साथ संसर्ग किया जिसके फलस्वरूप ऋष्यशृंग की उत्पत्ति हुयी। ऋष्यशृंग के माथे पर एक सींग (शृंग) था, अतः उनका यह नाम पड़ा। ऋष्यशृंग के पैदा होने के तुरन्त बाद उर्वशी का धरती का काम समाप्त हो गया तथा वह [[स्वर्ग लोक|स्वर्गलोक]] के लिए प्रस्थान कर गई। इस धोखे से विभाण्डक इतने आहत हुये कि उन्हें नारी जाति से घृणा हो गई तथा उन्होंने अपने पुत्र ऋष्यशृंग पर नारी का साया भी न पड़ने देने की ठान ली। इसी उद्देश्य से वह ऋष्यशृंग का पालन-पोषण एक अरण्य में करने लगे। वह अरण्य अंगदेश की सीमा से लग के था। उनके घोर तप तथा क्रोध के परिणाम अंगदेश को भुगतने पड़े जहाँ भयंकर अकाल छा गया। अंगराज रोमपाद (चित्ररथ) ने ऋषियों तथा मंत्रियों से मंत्रणा की तथा इस निष्कर्ष में पहुँचे कि यदि किसी भी तरह से ऋष्यशृंग को अंगदेश की धरती में ले आया जाता है तो उनकी यह विपदा दूर हो जायेगी। अतः राजा ने ऋष्यशृंग को रिझाने के लिए [[देवदासी|देवदासियों]] का सहारा लिया क्योंकि ऋष्यशृंग ने जन्म लेने के पश्चात् कभी नारी का अवलोकन नहीं किया था। और ऐसा ही हुआ भी। ऋष्यशृंग का अंगदेश में बड़े हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया गया। उनके पिता के क्रोध के भय से रोमपाद ने तुरन्त अपनी पुत्री शान्ता का हाथ ऋष्यशृंग को सौंप दिया।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/bala/sarga10/bala_10_frame.htm | title = ऋष्यशृंग का विवाह | accessdate = 2012-05-07 | archive-url = https://web.archive.org/web/20111120174123/http://valmikiramayan.net/bala/sarga10/bala_10_frame.htm | archive-date = 20 नवंबर 2011 | url-status = live }}</ref><br />
बाद में ऋष्यशृंग ने दशरथ की पुत्र कामना के लिए [[अश्वमेध यज्ञ]] तथा [[पुत्रकामेष्टि]] यज्ञ कराया।<ref>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/bala/sarga16/bala_16_frame.htm| title = दशरथ के यज्ञ| accessdate = 2012-05-07| archive-url = https://web.archive.org/web/20111120175051/http://valmikiramayan.net/bala/sarga16/bala_16_frame.htm| archive-date = 20 नवंबर 2011| url-status = live}}</ref> जिस स्थान पर उन्होंने यह यज्ञ करवाये थे वह अयोध्या से लगभग ३८ कि॰मी॰ पूर्व में था और वहाँ आज भी उनका आश्रम है और उनकी तथा उनकी पत्नी की समाधियाँ हैं।<ref>{{cite web| url = http://www.easternuptourism.com/Shringi-Rishi-Ashram.jsp| title = ऋंगी ऋषि आश्रम| accessdate = २०१२-०५-१४}}{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }}</ref>
 
इस संदर्भ में एक स्थानीय किवदन्ति यह है कि ऋषि श्रृंग ने लम्बे समय तक कुरुक्षेत्र के पास कठोर तप किया था। उस स्थान पर आज भी उनकी समाधि विद्यमान हैं। यह समाधि कुरुक्षेत्र ( हरियाणा) से 28 किलो मीटर दूर उत्तर दिशा में सरस्वती (सुरसती) नदी के तट पर स्थित गांव संघौर में है। कहा जाता है कि गांव का नाम ऋषि श्रृंग के नाम पर श्रृंगोर था जो अब संघौर हो गया। समाधि के आस पास ख़ुदाई करने से राख़ निकलती है तथा लोगों की मान्यता है कि यह राख़ ऋषि के यहाँ यज्ञ करने का प्रमाण है। गांव के लोग बड़ी श्रद्धा से इसकी पूजा करते हैं ।
 
== सन्दर्भ ==