"मीठा नीम": अवतरणों में अंतर

→‎मीठा नीम: कड़ियाँ लगाई
टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन Android app edit
छो 2402:8100:234E:B324:F3DE:6413:491:637F (Talk) के संपादनों को हटाकर रोहित साव27 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
पंक्ति 1:
अमृतमपत्रिका से साभार...
एक प्राकृतिक ओषधि व मसाला है । कढ़ी पत्ते को मीठा नीम भी कहते हैं।
 
रंग व तरंग–
यह एक छोटा सा पौधा है। इसका काण्ड भूरे रंग का होता है। पत्तो से सुंगध आता है। फूल सफेद रंग के, जो सुंगधित और गुच्छों में आते हैं । फल भी होते है। दो बीज होते है। यह पूरे भारत में पाया जाता है।
 
शास्त्रों का सत्य….
 
चरक सहिंता के अनुसार करीब 4 से 5 ग्राम पत्ते के साथ कालीमिर्च 2 नग, दालचिनी 100 mg, जीरा, सौंफ 200–200 मिलीग्राम सभी को 100 ml पानी में पीसकर पीने से अनेक रक्त दोष कम हो जाते हैं।
 
उदररोग विशेषज्ञ चिकित्सक…
 
जिन लोगों को पेट की कोई न कोई समस्या बनी रहती हो। जैसे कब्ज, पेट की जलन, वायुविकार, गैस, एसिडिटी आदि में रात को 5 नग खुमानी इसे खुरमानी भी कहते हैं एवं 5 नग मुनक्का तथा ऊपर लिखा समान 200 ml पानी में गला देंवें। सुबह इन्हें हल्का सा उबालकर अच्छी तरह मसलकर जूस निकालकर छाने और सुबह खाली पेट पी लेवें।
 
एक अद्भुत अमृतम ओषधि-मसाला-कढ़ी पत्ता
 
आयुर्वेद के एक प्राचीन ग्रन्थ
 
“भावप्रकाश निघंटु”
 
के गुडूच्यादि वर्ग: में
 
!!अथ महानिम्ब: तस्यगुणनश्चयः!!
 
में अमृतम वाक्य लिखा है कि-
 
महानिम्ब: समृतो द्रेका रम्यको विषमुष्टिका
कफपित्तभ्रमच्छर्दी कुष्ठ…….…
मदनपाल निघंटु में श्लोक है-
 
केशमुष्टिरनिम्बकश्च………..
 
धन्वन्तरि शास्त्र में लिखा है-
 
प्रमेहश्वांसगुल्मअर्श………
 
अमृतम आयुर्वेद के सभी ग्रंथो में मीठे निम्ब के
अनेक नाम व गुण बताये हैं ।
यथा- महानिम्ब, द्रेका, रम्यक, विषमुष्टिक, केशमुष्टि, निम्बक, निम्बार्क, कारमुक़ और जीव ये सब मीठे नीम के नाम हैं।
 
रोगाधिकार….
यह मलावरोधक होता है अर्थात मल बांधकर लाता है ।
उपयोग-यह कफ, पित्त, भ्रम, वमन, कुष्ठ, रक्तदोष, प्रमेह,मधुमेह, श्वांस, गुल्म,बवासीर तथा चूहे के विष का तुरन्त नाश करता है!
 
चूहों से बचाव
 
चूहों को चौतरफा घेरने हेतु कढ़ी पत्ते या मीठे नीम का झोंरे को या घर में सभी जगह रोज रखने से इसकी गन्ध से चूहे भाग जाते हैं ।
 
सामान्यतः कढ़ी पत्ते का प्रयोग सब्जी,दाल, पोहा,पकोड़े आदि में स्वाद वृद्धि तथा रोगों को दूर करने हेतु किया जाता है। प्राचीन काल से कढ़ी पत्ते तन की तासीर को तंदरुस्त करने के कारण भारत के दक्षिण प्रान्त में इसे अधिक खाया जाता है । इसके अद्भुत गुणों के कारण अब पूरे विश्व में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है।
 
सबकी सेहत को साधे
 
कढ़ी पत्ता सेहत व स्वास्थ्यके लिए बहुत फायदेमंद है।
आयुर्वेद में इसे “कैडर्य“ कहा जाता है।
लैटिन नाम है मतलब कढ़ी पत्ते का वैज्ञानिक नाम है और family –Murraya Koenigii (linn) spreng का नाम है। Rutaceae।
कढ़ी पत्ते को संस्कृत में सुरभीनिम्ब, कैडर्य, कलसक कृष्णानिम्ब आदि नामों से संबोधित किया है ।
 
आयुर्वेदिक गुणधर्म–
 
रस-कटु, तिक्त, मधुर, गुण-गुरू (भारी), रूस (रूखापन)
वीर्य-उष्ण, दोषकर्म-कफ-पित्तहर, अन्यकर्म-तन की अनेक दाह (जलन) को कम करता है, त्वचा के लिए अच्छा है, जीर्ण अंग के रंग अर्थात जिनका शरीर जीर्ण-शीर्ण,कमजोर, रंग साफ न हो आदि त्वचा सम्बंधी समस्याओं में लाभकारी है।
 
इसके गुणों से प्रभावित होकर ही अमृतम की अधिकांश ओषधीयां, माल्ट, चूर्ण में इसे विशेष घटक के रूप में मिलाया गया है ।
 
उपयोगी अंग- मूल, काण्ड, पत्ते। आमायिक प्रयोग
रक्त की कमी,त्वचा रोग, चेहरे पर लालिमा की कमी, कृमि रोग में कढ़ी पत्तें का प्रयोग बहुत लाभदायक है।
 
खून बढ़ाये –
 
अकेले 2 जून की रोटी खाने से, तन चितवन नहीं होता । तन का तारतम्य बनाये रखने के लिये कुछ प्राकृतिक ओषधियाँ एवं “अमृतम गोल्ड माल्ट” का भी सेवन जरूरी है। यह एक एंटीवायरस, एंटीवायरल हर्बल दवा के साथ शरीर की अंदरूनी नाडियों को ताकत देता है ।
कढ़ी पत्ते में आयरन और फोलिक एसिड पाये जाते है। शरीर में आयरन की न होने पर ही नही, बल्कि यदि शरीर लोहकण(आयरन) न सोख पाए, तब हमें तत्काल कढ़ी पत्ते का प्रयोग करना चाहिये। क्योकि इसमें पाया जाने वाला फोलिक एसिड आयरन को सोखने में मदद करता है।
 
यकृत (लिवर) के लिये लाभकारी
 
कढ़ी पत्ते का प्रयोग यकृत (लिवर) के लिये भी लाभकारी माना जाता है।
 
“भारतीय औषधीय विज्ञान”
की एक रिसर्च द्वारा यह पता चला है कि kaempferol के कारण जो ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस और टॉक्सिन्स बनता है। वह लिवर को क्षति पहुँचाता है। तब गिलोय,कालमेघ,पुनर्नवा, कढ़ी पत्ता लिवर को बचाता है।
 
मधुमेह का उपाय अंतिम
 
पनीर के फूल,गुड़मार, तुलसी,बेलपत्र, मुलेठी,
कालीमिर्च आदि ओषधि,जड़ीबूटियों के अलावा
कढ़ी पत्ते में स्थित फाइबर इन्सुलिन को प्रभावित करके ब्लड शुगर के लेवल को कम करता है। इसलिये कढ़ी पत्ते का उपयोग मधुमेह के रोगियों के लियें बहुत ही लाभदायक है।
 
मोटापा,चर्बी,तोंद घटाए
 
कढ़ी पत्ता चर्बी,मोटापा,वजन घटाने में सहायक है ।
रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा को नियंत्रित करनें में मदद करता है। यह रक्त में गुड कोलेस्ट्राल को बढाकर हृदय संबंधित रोग और अथेरोस्क्लिरोसिस से रक्षा करता है।
 
जीवनीय शक्ति वृद्धिकारक
 
कढ़ी पत्ता पाचन शक्ति, जीवनीय शक्ति और रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। इसमें फाइबर होने के कारण शरीर से मल को निकालने मे सहायक है। पेट साफ करने में विशेष उपयोगी है ।इसमें एटी-बैक्टिरियल और एन्टी इन्फ्लेमेटरी के गुणों के कारण,बार-बार होने वाले दस्त,आँव को कढ़ी पत्ता ठीक करने में मदद करता हैं।
 
लाइफ टाइम ठीक रहें
 
बहुत जल्दी शीघ्र व जीवन भर लाभ लेने तथा
रोज-रोज के रोगों से मुक्ति के लिए एक अद्भुत अमृतम आयुर्वेदिक ओषधि,जो माल्ट के रूप में दुनिया में प्रथम बार निर्मित keyliv malt malt के नाम से उपलब्ध है , इसे
2 या 3 माह तक लगातार लेवें,तो गृहिणी (आइबीएस) जैसा
खतरनाक रोग से भी प्राणी रोग मुक्त हो जाता है ।
 
क्या है आइबीएस-गृहिणी रोग:
 
गृहिणी रोग (आइबीएस) जैसे असाध्य विकार को मिटाने व मुक्ति के लिए keyliv malt का नियमित सेवन करें । इसके बारे में और भी बहुत कुछ जानने की आकांक्षा हो या विस्तार से जानने हेतु पूर्व के ब्लॉग पढ़ें-
 
 
पित्तदोष नाशक कढ़ी पत्ता
 
यह पित्तदोष को कम करके पेट में हमेशा होने वाली गुड़गुड़ाहट, उदर की खराबी, गड़़बड़ी को ठीक करता है। दस्त लगने पर मीठा नीम (कढ़ीपत्ते) की चटनी बनाकर छांछ के साथ दिन में दो से तीन बार लें । सुबह निन्हे पेट 2 चम्मच जिओ माल्ट सादा जल या गुनगुने दूध के साथ 2 माह तक सेवन करें,तो तुरन्त लाभ होता है ।
 
जो लोग सभी तरह की चिकित्सा से उकता गए हों,ऊबने लगे हों या परेशान हो गए हों उन्हें मात्र दो माह जिओ माल्ट पर विश्वास करके उपयोग करना चाहिए ।
 
कैंसर से पीड़ितों के लिए-
 
कीमोथैरेपी के दुष्परिणामो को कम करने में सहायक है। खाँसी, साइनस, बलगम के कारण परेशान,निमोनिया और छाती में कफ जमा लग रहा है तब एक चम्मच कढ़ी पत्ते का चूर्ण एक चम्मच, अमृतम का सर्वश्रेष्ठ उत्पाद “मधु पंचामृत” मिलाकर खायें इसे दिन में दो बार लें।
 
सर्दी-खांसी,जुकाम का अंत…तुरन्त-
 
अमृतम द्वारा निर्मित लोजेन्ज माल्ट विशेषकर
फेफड़ों के रोग, सर्दी-खांसी, जुकाम का काम तमाम करने में बहुत फायदेमंद है ।
अमृतम – सभी साध्य-असाध्य रोग-विकारों, व्याधियों एवं अनेकों प्रकार के वायरस का काम-तमाम तथा रोग नाशक आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण करता है ।
तन को रोग-रहित औऱ जीवन को खुशहाल बनाने के लिए लाइक कर औरों को विनाशकारी विकारों से बचाने हेतु शेयर करें
{{fixbunching|beg}}
{{taxobox