"उत्सर्जन तन्त्र": अवतरणों में अंतर

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उत्सर्जन में प्रयुक्त अन्य तत्व:
फेफड़े (CO2), त्वचा(लवण, यूरिया,लेक्टिक अम्ल,सीबम), यकृत(पित्त वर्णक बिलीरुबिन,बिलीवर्डिन,स्टेरॉइड) आदि का उत्सर्जन करते हैं।
 
== Ammonotelic Excretory – अमोनोटेलिक उत्सर्जन ==
इस प्रकार के Excretory उत्सर्जन में उत्सर्जी पदार्थ के रूप में अमोनिया को शरीर से बाहर निकाला जाता है।
 
इस प्रकार का उत्सर्जन जिन जन्तुओं में पाया जाता है उन्हें अमोनोटेलिक जन्तु कहा जाता है।
 
इस प्रकार के उत्सर्जी पदार्थ को निकालने के लिए सबसे अधिक जल की आवश्यकता होती है।
 
अमोनिया को सर्वाधिक विषैला उत्सर्जी पदार्थ माना जाता है।
 
इस प्रकार का उत्सर्जन जलीय जन्तुओं में पाया जाता है।
 
== Ureotelic Excretory – यूरियोटेलिक उत्सर्जन ==
इस प्रकार के उत्सर्जन में उत्सर्जी पदार्थ के रूप में यूरिया को शरीर से बाहर निकाला जाता है।
 
कुछ उभयचर वर्ग तथा स्तनधारी वर्ग के जन्तुओं में इस प्रकार का उत्सर्जन पाया जाता है। जैसे- मेढ़क, मनुष्य, हिरन, खरगोश आदि
 
== Uricotellic Excretory – यूरिकोटेलिक उत्सर्जन ==
इस प्रकार के उत्सर्जन Excretion में उत्सर्जी के पदार्थ के रूप में यूरिक अम्ल का निर्माण होता है।
 
यूरिक अम्ल को उत्सर्जित करने के लिए सबसे कम जल की आवश्यकता होती है क्योंकि ये सबसे कम विषैला उत्सर्जी पदार्थ होता है।
 
इस प्रकार का Excretory उत्सर्जन पक्षी वर्ग तथा सरीसृप वर्ग के जन्तुओं में पाया जाता है। जैसे- कबूतर, मोर, सर्प, मगरमच्छ, कछुआ आदि।
 
मेंढ़क एक ऐसा प्राणी है जिसमें तीनों प्रकार का उत्सर्जन पाया जाता है।
 
मेढक के लार्वा को टैडपोल कहा जाता है। जिसमें अमोनोटेलिक प्रकार का उत्सर्जन पाया जाता है।
 
वयस्क मेढक में यूरियोटेलिक प्रकार का उत्सर्जन पाया जाता है।
 
जब मेढ़क सुसुप्ता अवस्था में होता है तो इसमें
 
यूरिकोटेलिक प्रकार का उत्सर्जन पाया जाता है।
 
मेंढ़क में सुसुप्ता अवस्था के दो प्रकार होते हैं जिन्हें ग्रीष्म सुसुप्ता अवस्था ( Aestivation ) तथा शीत सुसुप्ता अवस्था को हाइबरनेशन कहा जाता है।
 
मनुष्य के शरीर में यूरिया का निर्माण यकृत में होता है
 
जबकि वृक्क के द्वारा यूरिया को छान करके शरीर के बाहर निकाला जाता है।
 
शरीर के हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने वाले तन्त्र उत्सर्जी तन्त्र कहलाते हैं। जैसे- त्वचा, आँसू ग्रन्थि, वृक्क ( Kidney ) आदि।
 
हमारे शरीर का सर्वप्रमुख उत्सर्जी अंग ‘वृक्क’ है।
 
वृक्क ( Kidney ) की इकाई ‘नेफ्रान’ ( Nephron ) है।
 
‘नेफ्रान’ में मूत्र ( Urine ) का निर्माण होता है।
 
मूत्र का संग्रहण ‘मूत्राशय‘ ( Urinary Bladder ) में होता है।
 
मूत्र में 95% जल तथा शेष यूरिया, यूरिक अम्ल, क्रिएटिनीन, हिप्यूरिक अम्ल, साधारण लवण इत्यादि होते हैं।
 
मूत्र में जल के बाद सर्वाधिक मात्रा यूरिक की होती है।
 
मूत्र का पीला रंग “क्रिएटिनीन‘ ( Creatinine ) के कारण होता है।
 
मूत्र का निर्माण सामान्य यमनुष्य में 24 घंटे में लगभग 100 लीटर होता है, लेकिन अन्तिम रूप से 1- लीटर ही मूत्र का उत्सर्जन होता है।
 
शेष जल का पुनः अवशोषण हो जाता है।
 
वृक्क के कार्य न करने पर ‘डायलिसिस’ (Dialisis) का उपयोग किया जाता है।
 
मूत्र का निष्पंदन ( Filtration ) ‘बाऊमैन सम्पुट‘ ( Bowmann (एक वैज्ञानिक का नाम) Capsul ) में होता है।
 
== Kidney – वृक्क ==
मनुष्य में दो वृक्क ( Kidney ) पाये जाते हैं जिन्हें दायां और बायां वृक्क कहा जाता है।
 
मनुष्य के वृक्क ( Kidney ) का भार लगभग 300 से 350 ग्राम होता है।
 
वृक्क ( Kidney ) के द्वारा छाने गये मूत्र में सबसे अधिक मात्रा में जल पाया जाता है जबकि कार्बनिक पदार्थ के रूप में सर्वाधिक यूरिया पायी जाती है।
 
मूत्र का पीला रंग यूरोक्रोम पदार्थ की उपस्थिति के कारण होता है।
 
मूत्र का PH मान 6 होता है। अर्थात मूत्र अम्लीय प्रकृति का होता है।
 
मनुष्य के मूत्र के द्वारा विटामिन सी शरीर के बाहर निकाली जाती है।
 
अमोनिया सर्वाधिक विषैला उत्सर्जी पदार्थ है जबकि यूरिक अम्ल सबसे कम विषैला उत्सर्जी पदार्थ है।
 
मनुष्य में Urea यूरिया का निर्माण अमोनिया से यकृत में होता है, जिसको रुधिर से अलग करने का कार्य वृक्क ( Kidney ) करते हैं।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [https://web.archive.org/web/20110813222747/http://biology.clc.uc.edu/courses/bio105/kidney.htm सीएलसी जीवविज्ञान: मलोत्सर्ग/मूत्र प्रणाली]
* [https://shikshit.org/excretory-system-of-human/ Excretory system of human in Hindi – उत्सर्जन तन्त्र Read More]
*[https://web.archive.org/web/20110813222747/http://biology.clc.uc.edu/courses/bio105/kidney.htm सीएलसी जीवविज्ञान: मलोत्सर्ग/मूत्र प्रणाली]
* [https://web.archive.org/web/20100129012054/http://www.fi.edu/learn/heart/systems/excretion.html फ्रेंकलिन संस्थान: मलोत्सर्ग प्रणाली]