"याज्ञवल्क्य": अवतरणों में अंतर

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सबसे संरंक्षित जो विवरण मिलता है वो शतपथ ब्राह्मण से मिलता है। ये [[उद्दालक|उद्दालक आरुणि]] नामक आचार्य के शिष्य थे। यहाँ पर उनको वाजसनेय भी कहा गया है।
 
ब्राम्हणवादसत्य सनातन ब्रह्म तत्व को उस काल मे मजबूत और प्रतिष्ठित बनाने में बहुत बड़ा योगदान है।प्रवाहणहै। प्रवाहण ऋषि के रचित उपनिषदों को जनमानस में फैलने,धार्मिक कर्मकांडकर्म,यज्ञ,आहुति,दान, दक्षिणासेवा, कोशिक्षा बढ़ा कर लोगो से बिना श्रम प्रजा के अर्जन से भोग विलाश काऔर रास्तादर्शन को प्रसस्तप्रतिष्ठित किया।जो ब्राम्हणो और क्षत्रियो के लिए मिल के पत्थर साबित हुआ। आधुनिक काल के महान लेखक राहुल संकृत्यन जी की बहुत ही महान ग्रन्थ "वोल्गा से गंगा"करने में पृष्ठइनका क्रमांक 118 से 134 में उपनिषदों का उदय और उनका समाज मे रोपड़ कैसे हुआ प्रवाहण और याज्ञवल्कय के द्वारा बतायायोगदान गयाअतुल्य है।
 
==रचनाएँ और संकलन==