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== कृत्तिका नक्षत्र ==
भारतीय [[ज्योतिष]]शास्त्र के अनुसार सत्ताइस नक्षत्रों में तीसरा नक्षत्र। इस नक्षत्र में छह तारे हैं जो संयुक्त रूप से अग्निशिखा के आकार के जान पड़ते हैं। कृत्तिका को पौराणिक अनुश्रुतियों में [[दक्ष प्रजापति|दक्ष]] की पुत्री, [[चन्द्रमा|चंद्रमा]] की पत्नी और [[कार्तिकेय]] की धातृ कहा गया है। कृत्तिका नाम पर ही कार्तिकेय नाम पड़ा है।
 
== कृतिका नक्षत्र की पौराणिक कथा<ref>{{Cite web|url=https://www.dskastrology.com/%e0%a4%95%e0%a5%83%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0-kritika-nakshatra/|title=कृतिका नक्षत्र Kritika Nakshatra विशेषताएँ लाभ हानी उपाए {{!}} BEST 4 चरण फलादेश|date=2021-05-23GMT+053011:19:18+05:30|website=www.dskastrology.com|language=en-US|access-date=2021-07-21}}</ref> ==
यदि पौराणिक कथाओं के माध्यम से देखा जाए तो कृतिका नक्षत्र के देवता कार्तिकेय है परंतु ज्योतिषीय मतानुसार अग्नि को भी कृतिका नक्षत्र का देवता कहा जाता है। कार्तिकेय भगवान शिव और पार्वती के दूसरे बेटे है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हमें यह भी पता चलता है कि कार्तिकेय के कुछ अन्य नाम भी हैं जैसे – स्कन्ध, सुब्रमण्यम, षडानन, गुहा और सन्मुख हैं। कार्तिकेय को छह मुखी भी खा जाता है। खतरनाक अग्नि रूप के कारण कार्तिकेय को युद्ध का देवता भी कहा जाता है। दक्षिण भारत में इन्हे ” मुरूगन ” के नाम से भी जाना जाता है।
 
अग्नि को कृतिका नक्षत्र का देवता माना जाता है क्योंकि इन्द्र के बाद दूसरे देवता अग्नि ही हैं। अग्नि शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जबकि लैटिन भाषा में इसे इग्निस और अंग्रेजी भाषा में इगनाइट कहते हैं। अग्नि को भलाई और बुराई [ दुर्दशा ] का प्रतीक भी माना जाता है। अग्नि को दक्षिण और पूर्व का अग्निपुत्र अंतर दिशा का और रुद्राक्ष का स्वामी माना जाता है। ज्योतिष मतानुसार हमें यह पता चलता है कि जिस प्रकार आग में सभी तरह की अशुद्धियों का नाश होता है उसी तरह तीन मुखी रुद्राक्ष पहनने से जातक के पापों का नाश, मन में सुधियाँ और कर्मों में पवित्रता आती है।
 
== देखिये ==