"भूगणित": अवतरणों में अंतर

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भूपरिधि निर्धारण की विधि में सुधार तभी संभव हुआ जब 17वीं 18वीं शताब्दियों के बीच पृथ्वी की आकृति नारंगी के मार्निद, चपटी गोलाभ (oblate spheroid) होने की आशंका जड़ पकड़ने लगी। तब [[हालैंड]] में स्नैल (1591-1626) ने समक्ष मापन के बजाय त्रिभुजन श्रृंखला (triangulation chain) का आश्रय लिया। 1696 ई0 में पीकार्ड ने अक्षांश निर्धारण और भू-त्रिभूजन के कोणों को नापने में दूरदर्शक का प्रयोग किया। उसने एक अंश चाप की जो लंबाई दी, उसके आधार पर न्यूटन ने परिकलन द्वारा सिद्ध किया कि चंद्रमा को उसकी कक्षा में चलाने में प्रधान बल भू-आकर्षण है।
 
[[न्यूटन]] और उसके समकालीन [[हाइगेंज]] (Huygens) से भूगणित का नया युग आरंभ हुआ। मुख्यत: उनके द्वारा यांत्रिक ज्ञानवृद्धि के कारण, और चूँकि पृथ्वी का अपने अक्ष के परित: घूर्णन सत्य माना जाने लगा, यह कल्पना प्रबल हो चली कि पृथ्वी गोलाकार न होकर लघु अक्ष (oblate) गोलाभ है, जो ध्रुवों पर चपटी है। इस धारणा की पुष्टि खगोलज्ञ रिशर के इस प्रायोगित प्रमाण से हो गई कि उसकी घड़ी जो पैरिस में ठीक चलती थी दक्षिण अमरीका के समीन नगर में ढाई मिनट प्रति घंटा सुस्त हो जाती थी। इस धारणा के विरोध में [[फ्रांस]] के कैसिनस का कहना था कि यदि पृथ्वी गोलाभ है तो विषुवत् से ध्रुव की ओर जाने पर एक अंश अक्षांश की दूरी बढ़ती जानी चाहिए। कदाचित् इसके विपरीत भी समझा जाय, क्योंकि पाठक के विचार से भूकेंद्रीय (geocentric) अक्षांश एक अंशवाला चाप वह होगा जो भूकेंद्र पर एक अंश का कोण अंतरित करता है, किंतु इसके अनुसार समक्ष प्रेक्षण नहीं किया जा सकता। खगोलीय अक्षांश (astronomical latitude) का, जो साहुल सूत्र और विषुवत् समतल के बीच के कोण है, प्रेक्षण संभव है। ध्रुवों से जाने वाला कोई भी समतल पृथ्वी से दीर्घवृताकार जैसा परिच्छेद काटेगा, जिसकी वक्रता ध्रुवों पर (जो लघु अक्ष के सिरे हैं) सबसे कम और विषुवत् पर सबसे अधिक होती है फलत: अक्षांश के प्रति चाप वृद्धि सबसे अधिक ध्रुवों पर होगी। लेकिन बात इसके विपरीत देखने में आई जिससे ऐसा लगा कि पृथ्वी दीर्घाक्ष (prolate) गोलाभ है। इस प्रकार पृथ्वी को लघ्वक्ष और दीर्घाक्ष समझने वाले विद्वानों में विवाद चल पड़ा। इसे तय करने के लिये [[पेरिस]] विज्ञान परिषद् (Paris Academy of Sciences) ने दो खोज दल भेजे, एक पेरू को और दूसरा लैपलेंड को, जिनके अक्षांशों में यथासंभव बड़ा अंतर था। 1743 ई0 में इन दलो ने जो एक अंश चाप की मापें दीं, उनेस यह निष्कर्ष निकला कि ध्रुवों पर चपटापन (oblateness) 1/213 है, जब कि आधुनिक मान 1/297 है। इसके बाद मीटर की लंबाई के निर्धारण के निमित्त पृथ्वी के चपटेपन और चाप के अनेक मापन हुए। (आरंभ में विचार यह था कि [[मीटर]] किसी भी याम्योत्तर के चतुर्थांश की लंबाई का करोड़वाँ भाग रहे, किंतु बाद में मीटर को मानक छड़ की लंबाई मान लिया गया।) यंत्रों में सुधार के साथ-साथ परिकलन विधियों में भी सुधार हुए, जिनमें [[गाउस]] का [[न्यूनतम वर्ग सिद्धांत]] (Principle of Least Squares) अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस विधि का विस्तृत उपयोग जर्मन खगोलज्ञ [[बेसेल]] ने किया। परिष्कृत प्रेक्षण विधियों और परिशुद्धि के उच्च मानकों का सूत्रपात करने में वे अग्रणी थे।
 
==भूसर्वेक्षण यंत्र और प्रेक्षण विधियाँ==
भूसर्वेक्षण के ज्योतिष कार्य के लिये खगोलीय यंत्र काम में आते हैं। देशांतर (longitude) ज्ञात करने के लिये [[याम्योत्तर यंत्र]] (transit insturment) अत्यंत प्राचीन काल से उपयोग में आता रहा है। अब इस यंत्र में स्वत: अभिलेखी (self recording) सूक्ष्ममापी लगा रहता है और वह समयलेखी (chronograph) के साथ प्रयुक्त होता है। अंक्षाश निर्धारण के लिये [[शिरोबिंदु दूरबीन]] (zenith telescope) या भंग दूरदर्शक याम्यांतर यंत्र का उपयोग किया जाता है। दिगंश निर्धारण और त्रिभूजन कोणों (triangulation angles) के मापन हेतु ऐसे [[थियोडोलाइट|थियोडोलाइटों]] का उपयोग किया जाता है, जो समान्य सर्वेक्षण में काम आनेवालों स अधिक सूक्ष्म एवं परिशुद्ध होते हैं। और अधिक यथार्थता की प्राप्ति के लिये कितनी ही मापें, यंत्र के क्षैतिज वृत्त पर समानत: वितरित विंदुओं से निर्दिष्ट पिंड पर, दिष्ट कर ली जाती है। इस प्रकार अंशांकन की त्रुटियों से बचा जा सकता है।
 
त्रिभुजन में भुजाएँ तीन-चार किलोमीटर की रहें तो अच्छा है। इससे कम रहने पर मापन त्रुटियों की संख्या बढ़ जाती है। पहाड़ी स्थल पर 300 किलोमीटर तक की दूरी पर भी स्पष्ट-दृश्यता रहती है। सिद्धांतत: केवल एक ही समक्ष मापे हुए आधार और उसके सिरों पर के कोणों के मापन से ही कोई भी दूरी ज्ञात की जा सकती है। इस प्रकार उत्तरोतर केवल कोणों के मापन से ही कोई भी दूरी ज्ञात की जा सकती है, किंतु व्यवहार में इस प्रकार परिकलित किसी किसी दूरी को समक्ष भी माप लिया जाता है, जिससे कोण मापन की यथार्थता की जॉँच होती रहती है। आजकल [[निकल]] और [[टिन]] की मिश्रधातु इनवार (invar) के बने तार या फीते से दूरी का समक्ष मापन किया जाता है। इस धातु पर ऊष्मा आदि का प्रभाव उपेक्षणीय होता है। मापन के समय तार का तनाव भी मानक रखा जाता है। इस प्रकार दूरी मापन में 10 लाख में 1 तक की परिशुद्धता हो जाती है।
 
भूसर्वेक्षण में भू का आशय उस पृथ्वीतल से है जो समुद्र पर माध्य समुद्रतल है तथा स्थल पर वह अभिकल्पित समुद्रतलवाला पृष्ठ है जो [[स्पिरिट तल]] द्वारा निर्धारित होता है। यदि समुद्र से स्थल में कोई [[नहर]] खोद दी जाय, तो जो तल नहर के पानी का होगा वही पृथ्वी तल माना जाएगा। इस भौतिक परिभाषा में गणितीय परिशुद्धता नहीं है क्योंकि समुद्रतल भी पवन, क्षारता, दाब, ऊष्मा आदि के कारण परिवर्तनशील है। पृथ्वीतल की गणितीय परिभाषा उस समविभव (equipotential) अथवा समान तलवाले, पृष्ठ से दी जाती है जिसपर, पृथ्वी में जितना भी द्रव्य हैं तथा जहाँ भी हैं उस सबके गुरुत्वाकर्षण और अक्ष के परित: घूर्णन के कारण, विभवफलन (potential function) अचर होता है। ये समविभव पृष्ठ दृष्ट गुरुत्व अर्थात् गुरुत्वाकर्षण और घूर्णन जन्य अपकेंद्री बल (centrifugal force) के संयुक्त प्रभाव, की दिशा पर लंब होंगे और संख्या में कितने ही होंगे इनमें से जो माध्य सागर तल के निकटतम है उसे पृथ्वीतल माना जाता है और उसे भू समुद्रतलाभ, या जियोइड (Geoid), कहते हैं। इस शब्द में पृथ्वी के गोलाभ होने का भाव अंतर्निहित नहीं है। इसमें केवल यही भाव है कि पृथ्वी "पृथ्वी आकृति" वाली है। स्पिरिटतल से बिंदुओं का जो उन्नयन मिलता है, वह जियोइड के सापेक्ष होता है, न कि पार्थिव गोलाभ के। मानचित्र हेतु जियोइड को ऐसा गोलाभ मान लिया जाता है जो पृथ्वी के या उसके किसी भाग के, जिससे हमें सरोकार हो, निकटतम हो। चूँकिं पृथ्वीं पूर्णत: गोलाकार नहीं है, इसके विभिन्न याम्योत्तरीय चापों (meridian arcs) को और उनके सिरों के अक्षांशों को माप कर, इन सब प्रक्षणों का न्यूनतम वर्ग सिद्धांत, या अन्य किसी ऐसी विधि से समन्वय कर, पृथ्वी का आकार (अर्थात् परिमाण) ज्ञात किया जाता रहा है इस कार्य के लिये देशांतरीय चाप भी काम में आ सकते हैं, लेकिन इनका मापन [[विद्युत् तारसंचार]] (electric telegraph) का अविष्कार होने पर ही संतोषजनक यथार्थता का हो सका है और भू-आकार का निर्धारण चाप के बजाय क्षेत्रफल अर्थात् विक्षेप (deflection) विधि से किया जाने लगा है। इस नई विधि में त्रिभुजन श्रृंखला से संबद्ध एक बड़ा क्षेत्र लिया जाता है, जिसके बीच एक बिंदु को मूलबिंदु चुनकर उसके देशांतर, अंक्षाश और उससे जानेवाली एक रेखा का दिगंश तथा भू-गोलाभ से संबद्ध दो मापें स्वेच्छया चुन ली जाती है (सामान्यतया इन्हें खगोलीय मानों के लगभग ही समझ लेना ठीक रहता है)। इन जियोडिय मानों के आधार पर त्रिभुजन श्रृखंला द्वारा पार्थिव गोलाभ का परिकलन लिया जाता है।
 
==अंतरराष्ट्रीय भूगणितीय संगठन==
मूलत: भूगणित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान है। [[द्वितीय महायुद्ध]] से पहले कई अंतरराष्ट्रीय संगठन भूसर्वेक्षण का काम करते थे किंतु युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय भूगणितीय और भूभौतिकीय संघ (international geodetic and geophysical union) का संगठन हुआ। इसके कई एक अर्ध स्वतंत्र अनुभाग हैं। इनमें एक भूगणितीय अनुभाग (geodetic section) है, जिसने पहले अंतरराष्ट्रीय भूगणितीय ऐसोसियेशन का कार्य सँभाल लिया है और अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष संघ के साथ अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण का कार्य भी ले लिया। इस संघ के अतिरिक्त भी छोटे बड़े अन्य संगठन हैं। इन सबसे यह स्पष्ट हो जाता है कि भूगणित वास्तव में भूभौतिकी की एक प्रमुख शाखा है।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.iag-aig.org/ International Association of Geodesy (IAG)].
* [http://www.jqjacobs.net/astro/geodesy.html The Geodesy Page.]
* [http://www.kiamehr.tk Geodesy and Geomatics Home Page]
* [http://www.oceanservice.noaa.gov/education/geodesy/welcome.html Welcome to Geodesy]
* [http://www.mapref.org MapRef.org: The Collection of Map Projections and Reference Systems for Europe]
* [http://www.wolfram.com/products/applications/geodesy/ GeometricalGeodesy] software for Geodesy calculations
* [http://www.pamagic.org/pamagic/lib/pamagic/Geodetic_Ver1_5.pdf Pennsylvania Geospatial Data Sharing Standard - Geodesy and Geodetic Monumentation]
* [http://cires.colorado.edu/~bilham/FG5references.html References on Absolute Gravimeters]
* [http://www.movable-type.co.uk/scripts/LatLongVincenty.html Vincenty's Direct and Inverse Solutions of Geodesics on the Ellipsoid, in JavaScript]
* [http://www.codeproject.com/KB/cs/Vincentys_Formula.aspx Vincenty's Solution of Geodesics on the Ellipsoid, in C#]
* [http://www.gavaghan.org/blog/free-source-code/geodesy-library-vincentys-formula-java/ Vincenty's Solution of Geodesics on the Ellipsoid, in Java]
* [http://geographiclib.sourceforge.net GeographicLib] provides a utility Geod (with source code) for solving direct and inverse geodesic problems. Compared to [[Vincenty's_formulae]], this is about 1000 times more accurate (error = 15 nm) and the inverse solution is complete. Here is an [http://geographiclib.sourceforge.net/cgi-bin/Geod online version of Geod].
* [http://www.earthscope.org/ EarthScope Project]
* [http://pboweb.unavco.org/ UNAVCO - EarthScope - Plate Boundary Observatory]
* [http://www.geodezja.pl/eng/ Polish Internet Informant of Geodesy]
 
[[श्रेणी:सर्वेक्षण]]
[[श्रेणी:मापन]]
[[श्रेणी:भूगणित]]
 
[[ar:جيوديسيا]]
[[ast:Xeodesia]]
[[az:Geodeziya]]
[[bg:Геодезия]]
[[ca:Geodèsia]]
[[cs:Geodézie]]
[[da:Geodæsi]]
[[de:Geodäsie]]
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[[es:Geodesia]]
[[eo:Geodezio]]
[[fa:ژئودزی]]
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[[lb:Geodesie]]
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[[hu:Geodézia]]
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[[nl:Geodesie]]
[[ja:測地学]]
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[[ru:Геодезия]]
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[[sr:Геодезија]]
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[[ur:مساحیات]]
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[[zh:大地测量学]]