"भूभौतिकी": अवतरणों में अंतर

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===भूरसायनी अन्वेषण===
इस विधि का आधार यह है कि किसी गड़ी हुई प्राकृतिक संपानिक्षेप की पृष्ठमृदा और जलपर्यावरण में निक्षेप से व्युत्पन्न (derived) रसायनिक यैगिक,यैगिक। अनेक प्राकृतिक प्रक्रम हैं - रंध्र या विदर के द्वारा निस्यंदन (seepage), भौम जल की सतह में घट बढ़ और विसरण। स्त्रोत के निकट की संकेद्रण उच्चतम होना चाहिए। पट्रोलियम के अन्वेषण में मृदा और गैसें का रासायनिक विश्लेषण सहायक रहा है। धात्विक तत्वों, या इन तत्वर्गों की उपस्थिति परिपार्श्व के जल, मृदा और वनस्पति तक में 1/10 लाख सांद्रण में रहने पर भी पहचानी जा सकती है।
 
'''रेडियोऐक्टिव विधियाँ''' - इन विधियों में [[यूरेनियम]], [[थोरियम]] जैसे [[रेडियोसक्रियता|रेडियोऐक्टिव]] तत्वों के रेडियोएक्टिव विकिरण और उनके विघटन उत्पादों को पहचाना जाता है। क्षेत्र में भूमि पर प्राय: गाइगेर (Geiger) गणित्र या प्रस्फुर (Scintillation) गणित्र का उपयोग किया जाता है। इनका उपयोग खोदे हुए छेदों और निचाई पर उड़ने वाले वायुयानों में किया जा सकता है। इन विधियों का अधिकतर उपयोग यूरेनियम अयस्क की खोज में किया जाता है।
 
रेडियो ऐक्टिव पदार्थों के ठ्ठअल्फा, बीटा और ढ़गामा विकिरणों में से केवल ढ़गामा विकिरणों की पहचान हो पाती है, क्योंकि ठ्ठअल्फा और बीटा विकिरणोेंविकिरणणों की [[वेधन क्षमता]] अत्यल्प होने के कारण ये चंद फुट मोटे मृदा आवरण में अवशोषित हो जाते हैं और हवा में शीघ्र क्षीण हो जाते हैं।
 
कूपों में रेडियोएक्टिवता की माप से तैल बालू या रचना सीमाओं का संकेत प्राप्त होता है, जिनसे भ्रंश, रेडियोऐक्टिव अयस्क और रेडियोऐक्टिव स्त्रोतों की स्थिति निर्धारित की जाती है। सतह पर रेडियोएक्टिव मापनों से रेडियोऐक्टिव खनिज, अयस्क, तेल और भूमिगत बनावट का स्थान निर्धारण करने में सहायता मिलती है।