"पाण्डव": अवतरणों में अंतर

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'''पाण्डव''' [[महाभारत]] के मुख्य पात्र हैं। पाण्डव पाँचछ: भाई थे - कर्ण , [[युधिष्ठिर]], [[भीम]]सेन, [[अर्जुन]], [[नकुल]] तथा [[सहदेव]]।</p>
[[File:Panda visit Kedarnath.jpg|thumb|द्रौपदी और पांडव]]
'''पाण्डव''' [[महाभारत]] के मुख्य पात्र हैं। पाण्डव पाँच भाई थे - [[युधिष्ठिर]], [[भीम]]सेन, [[अर्जुन]], [[नकुल]] तथा [[सहदेव]]।</p>
 
== पाण्डवों के माता पिता ==
 
पाण्डवों के धर्मपिता का नाम [[पाण्डु]] था। वे बड़े ही प्रतापी कुरुवंशिय राजा थे! पाण्डु की दो पत्नियाँ थीं - [[कुन्ती]] तथा [[माद्री]]। युधिष्ठिर, भीमसेन तथा अर्जुन की माता कुन्ती थी और नकुल एवं सहदेव माद्री के पुत्र थे। कर्ण सूर्यदेव और कुंती के पुत्र थे , युधिष्ठिर कुंती और यमराज के पुत्र थे , भीमसेन कुंती और पवनदेव के पुत्र थे , अर्जुन देवराज इंद्र और कुंती के पुत्र थे , नकुल अश्वनीकुमार नात्स्य और माद्री के पुत्र थे और सहदेव अश्वनीकुमार दस्र और माद्री के पुत्र थे |
 
== पाण्डवों के जन्म की कथा ==
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इसी दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिये जाते हुये देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा, "राजन्! कोई भी निःसन्तान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अतः हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।"
 
ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, "हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?" कुन्ती बोली, "हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ। आप आज्ञा करें मैं किस देवता को बुलाऊँ।" इस पर पाण्डु ने धर्मधर्मराज और सूर्यदेव को आमन्त्रित करने का आदेश दिया। [[धर्म]]<nowiki/>राज और सूर्यदेव ने कुन्ती को पुत्र प्रदान कियाकिए जिसका जिसनका नाम [[युधिष्ठिर]] और कर्ण रखा गया। कालान्तर में पाण्डु ने कुन्ती को पुनः दो बार वायुदेव तथा इन्द्रदेव को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। [[वायु देव|वायुदेव]] से भीमभीमसेन तथा [[इन्द्र]] से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात् पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती ने माद्री को उस मन्त्र की दीक्षा दी। माद्री ने [[अश्विनीकुमार (पौराणिक पात्र)|अश्वनीकुमारों]] को आमन्त्रित किया और [[नकुल]] तथा [[सहदेव]] का जन्म हुआ।
 
एक दिन राजा पाण्डु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पाण्डु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन मे प्रवृत हुये ही थे कि शापवश उनकी मृत्यु हो गई। माद्री उनके साथ सती हो गई किन्तु पुत्रों के पालन-पोषण के लिये कुन्ती हस्तिनापुर लौट आई। </p>
{{महाभारत}}