"पंच प्रयाग": अवतरणों में अंतर

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उत्तराखंड के प्रसिद्ध पंच प्रयाग देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नन्दप्रयाग, तथा विष्णुप्रयाग मुख्य नदियों के संगम पर स्थित हैं। नदियों का संगम [[भारत]] में बहुत ही पवित्र माना जाता है विशेषत: इसलिए कि नदियां देवी का रूप मानी जाती हैं। प्रयाग में [[गंगा नदी|गंगा]], [[यमुना नदी|यमुना]] और [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] के संगम के बाद [[गढ़वाल]]<nowiki/>-[[हिमालय]] के क्षेत्र के संगमों को सबसे पवित्र माना जाता है, क्योंकि गंगा, यमुना और उनकी सहायक नदियों का यही उद्गम स्थल है। जिन जगहों पर इनका संगम होता है उन्हें प्रमुख [[तीर्थ]] माना जाता है। यहीं पर [[श्राद्ध]] के संस्कार होते हैं।
 
== मार्ग ==
== विष्णुप्रयाग ==
 
== अर्थ ==
 
== पंच प्रयाग का विवरण ==
खासतौर पर गढ़वाल के लोग पवित्र नदी-संगम में [[पवित्र स्नान]] करने के लिए [[मकर संक्रान्ति|मकर संक्रांति]], [[उत्तरायण सूर्य|उत्तरायण]], [[वसन्त पञ्चमी|बसंत पंचमी]] और [[राम नवमी|रामनवमी]] पर्व के दौरान पांचों प्रयागों में एकत्रित होते हैं।
 
=== विष्णुप्रयाग ===
[[File:Dhauliganga at Vishnuprayag.jpg|thumb|right|विष्णुप्रयाग में [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] में मिलती [[धौलीगंगा]]]]
{{main|विष्णुप्रयाग}}
[[धौलीगंगा नदी|धौली गंगा]] तथा [[अलकनन्दा नदी|अलकनंदा]] नदियों के संगम पर विष्णुप्रयाग स्थित है। संगम पर भगवान [[विष्णु]] जी प्रतिमा से सुशोभित प्राचीन मंदिर और विष्णु कुण्ड दर्शनीय हैं। यह सागर तल से १३७२ मी० की ऊंचाई पर स्थित है। विष्णु प्रयाग [[जोशीमठ]]<nowiki/>-[[बद्रीनाथ (नगर)|बद्रीनाथ]] मोटर मार्ग पर स्थित है। जोशीमठ से आगे मोटर मार्ग से १२ किमी और पैदल मार्ग से ३ किमी की दूरी पर विष्णुप्रयाग नामक संगम स्थान है। यहां पर अलकनंदा तथा [[विष्णु गंगा|विष्णुगंगा]] (धौली गंगा) का संगम स्थल है। [[स्कन्द पुराण|स्कंदपुराण]] में इस तीर्थ का वर्णन विस्तार से आया है। यहां विष्णु गंगा में 5 तथा अलकनंदा में 5 कुंडों का वर्णन आया है। यहीं से सूक्ष्म [[बदरिकाश्रम]] प्रारंभ होता है। इसी स्थल पर दायें-बायें दो पर्वत हैं, जिन्हें भगवान के द्वारपालों के रूप में जाना जाता है। दायें जय और बायें विजय हैं।
 
=== नन्दप्रयाग ===
[[File:NandprayagConfluence.JPG|thumb|right|नंदप्रयाग में [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] में मिलती [[नंदाकिनी नदी|नंदाकिनी]]]]
{{main|नन्दप्रयाग}}
[[नन्दाकिनी]] तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर नन्दप्रयाग स्थित है। यह [[समुद्र तल|सागर तल]] से २८०५ फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। कर्णप्रयाग से उत्तर में बद्रीनाथ मार्ग पर २१ किमी आगे नंदाकिनी एवं अलकनंदा का पावन संगम है। [[पौराणिक कथाएँ|पौराणिक कथा]] के अनुसार यहां पर [[नंद]] महाराज ने भगवान [[नारायण]] की प्रसन्नता और उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए तप किया था। यहां पर [[नन्दा देवी|नंदादेवी]] का भी बड़ा सुंदर मन्दिर है। नन्दा का मंदिर, नंद की [[तपस्थली]] एवं नंदाकिनी का संगम आदि योगों से इस स्थान का नाम नंदप्रयाग पड़ा। संगम पर भगवान [[शिव|शंकर]] का दिव्य मंदिर है। यहां पर लक्ष्मीनारायण और गोपालजी के मंदिर दर्शनीय हैं।
 
=== कर्णप्रयाग ===
[[File:KarnPrayag.jpg|thumb|right|कर्णप्रयाग में [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] में मिलती पिण्डर]]
{{main|कर्णप्रयाग}}
अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर कर्णप्रयाग स्थित है। पिण्डर का एक नाम [[कर्णगंगा|कर्ण गंगा]] भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम कर्ण प्रयाग पडा। यहां पर [[उमा]] मंदिर और कर्ण मंदिर दर्शनीय है। यहां पर भगवती उमा का अत्यंत प्राचीन मन्दिर है। संगम से पश्चिम की ओर शिलाखंड के रूप में दानवीर कर्ण की तपस्थली और मन्दिर हैं। यहीं पर महादानी कर्ण द्वारा भगवान [[सूर्य देवता|सूर्य]] की आराधना और अभेद्य कवच कुंडलों का प्राप्त किया जाना प्रसिद्ध है। कर्ण की तपस्थली होने के कारण ही इस स्थान का नाम कर्णप्रयाग पड़ा।
 
=== रुद्रप्रयाग ===
[[File:Rudraprayag - Confluence of Alaknanda and Mandakini.JPG|thumb|रुद्रप्रयाग में [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] में मिलती [[मंदाकिनी नदी|मंदाकिनी]]]]
{{main|रुद्रप्रयाग}}
मन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर रुद्रप्रयाग स्थित है। संगम स्थल के समीप चामुंडा देवी व [[रुद्रनाथ मंदिर]] दर्शनीय है। रुद्र प्रयाग [[ऋषिकेश]] से १३९ किमी० की दूरी पर स्थित है। यह नगर बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित है। यह माना जाता है कि [[नारद मुनि]] ने इस पर संगीत के गूढ रहस्यों को जानने के लिये "रुद्रनाथ महादेव" की अराधना की थी। श्रीनगर से उत्तर में 37३७ किमी की दूरी पर [[मंदाकिनी]] तथा अलकनंदा के पावन संगम पर रुद्रप्रयाग नामक पुण्य तीर्थ है। पुराणों में इस तीर्थ का वर्णन विस्तार से आया है। यहीं पर ब्रह्माजी की आज्ञा से देवर्षि नारद ने हज़ारों वर्षों की तपस्या के पश्चात भगवान [[शंकर]] का साक्षात्कार कर सांगोपांग [[गांधर्व शास्त्र]] प्राप्त किया था। यहीं पर भगवान [[रुद्र]] ने श्री नारदजी को `महती' नाम की वीणा भी प्रदान की। संगम से कुछ ऊपर भगवान शंकर का `रुद्रेश्वर' नामक लिंग है, जिसके दर्शन अतीव पुण्यदायी बताये गये हैं। यहीं से यात्रा मार्ग केदारनाथ के लिए जाता है, जो [[ऊखीमठ]], [[चोपता]], [[मण्डल]], [[गोपेश्वर]] होकर [[चमोली]] में बदरीनाथजी के मुख्य यात्रा मार्ग में मिल जाता है।
 
=== देवप्रयाग ===
[[File:Devprayag Bhagirathi Alaknanda.jpg|thumb|right|देवप्रयाग में अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों का संगम। यहाँ से आगे इसे [[गंगा]] कहा जाता है।]]
{{main|देवप्रयाग}}