"तुकोजी होल्कर": अवतरणों में अंतर

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'''[https://web.archive.org/web/20200226183305/https://ahilyabaiholkar.in/tukojirao''' (1767-holkar-1/1797) तुकोजीराव होल्कर प्रथम]''' (1767-1797) [[अहिल्याबाई होल्कर]] का सेनापति थाथे तथा उनकी मृत्यु के बाद होल्करवंश काके शासक बन गयागये।पेहले था।pahaleउन्होने unhoneपेशावर peshawarजितने jitaneमे meआपना apnaपुरा yogdanयोगदान diyaदिया tha.और अटक के किले मे २.or voसाल vhaठेहरकर perहिंदवी 18स्वराज्य monthsकि takअफगाणी niyuktदुशामणो rahe.अहमदशाह अब्दाली से रक्षा करी ,दक्षिण मे टिपू सुलतान को युद्ध मे हराकर मराठा साम्राज्य कि पुनः एकबार नीव रखकर मराठा साम्राज्य खडा किया
 
== आरम्भिक समय ==
[[बाजीराव प्रथम]] के समय से ही 'शिन्दे' तथा '[[होलकर|होल्कर]]' [[मराठा साम्राज्य]] के दो प्रमुख आधार स्तंभ थे। राणोजी शिंदे एवं [[मल्हारराव होलकर]] ''[[शिवाजी| शिवाजीशाहू महाराज]]'' के सर्वप्रमुख सरदारों में से थे, लेकिन इन दोनों परिवारों का भविष्य सामान्य स्थिति वाला नहीं रह पाया। राणोजी शिंदे के सभी उत्तराधिकारी सुयोग्य हुए जबकि मल्हारराव होलकर की पारिवारिक स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण हो गयी। उनके पुत्र खंडेराव के दुर्भाग्यपूर्ण अंत के पश्चात अहिल्याबाई होल्कर के स्त्री तथा भक्तिभाव पूर्ण महिला होने से द्वैध शासन स्थापित हो गया।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, [[गोविंद सखाराम सरदेसाई]], शिवलाल अग्रवाल एंड कंपनी, आगरा; द्वितीय संशोधित संस्करण 1972, पृष्ठ-215.</ref> राजधानी में नाम मात्र की शासिका के रूप में अहिल्याबाई होल्कर थी तथा सैनिक कार्यवाहियों के लिए उन्होंने तुकोजी होलकर को मुख्य कार्याधिकारी बनाया था। कोष पर अहिल्याबाई अपना कठोर नियंत्रण रखती थी तथा तुकोजी होलकर कार्यवाहक अधिकारी के रूप में उनकी इच्छाओं तथा आदेशों के पालन के लिए अभियानों एवं अन्य कार्यों का संचालन करताकरते था।थे । अहिल्याबाई भक्ति एवं दान में अधिक व्यस्त रहती थी तथा सामयिक आवश्यकताओं के अनुरूप महिला ओ की सेना को उन्नत बनाने पर विशेष ध्यान नहीं दे सकी।रही थी। तुकोजी होलकर अत्यधिक महत्वाकांक्षी परंतुथे अविवेकी व्यक्ति था। आरंभ में मराठा अभियानों में वह महाद जी के साथ सहयोगी की तरह रहा।रहे । तब तक उसकीउनकी स्थिति भी अपेक्षाकृत सुदृढ़ रही। बालक पेशवा माधवराव नारायण की ओर से बड़गाँव तथा तालेगाँव के बीच ब्रिटिश सेना की पराजय, [[रघुनाथराव]] के समर्पण तथा मराठों की विजय में महादजी के साथ तुकोजी होलकर का भी अल्प परंतु संतोषजनक भाग था।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-80.</ref>
 
 
== अवनति के पथ पर ==
सन् 1780 में तुकोजी महादजी से अलग हो गया।गये । उसके बाद महादजी ने राजनीतिक क्षेत्र में भारी उन्नति प्राप्त की तथा तुकोजी का स्थान काफी नीचा हो गया। वस्तुतः तुकोजी में दूरदर्शिता का अभाव था।<ref>तवारीख-ए-शिन्देशाही, नीलेश ईश्वरचन्द्र करकरे, ग्वालियर, संस्करण-2017, पृष्ठ-293.</ref> वह अपने अधीनस्थ व्यक्तियों एवं सचिवों के हाथ की कठपुतली की तरह था। विशेषतः उसके सचिव नारोशंकर का उस पर अनर्गल प्रभाव था। इन्हीं कारणों से अहिल्याबाई का मुख्य कार्यवाहक होने के बावजूद स्वयं अहिल्याबाई उस पर अधिक विश्वास नहीं करती थी।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-209.</ref> लालसोट के संघर्ष के बाद 1787 में महादजी द्वारा सहायता भेजे जाने के अनुरोध पर [[नाना फडणवीस]] ने पुणे से अली बहादुर तथा तुकोजी होलकर को भेजा था; परंतु एकवहा तोपहुँचकर इनभी दोनोंमहादजी ने पहुँचने में अत्यधिक समय लगायाका और फिरतुकोजी पहुँचकर भी महादजी सेका वैमनस्य उत्पन्न करहो गया लिया। तुकोजी जीते गये प्रांतों में हिस्सा चाह रहारहे थाथे और स्वभावतः महादजी का कहना था कि यदि हिस्सा चाहिए तो पहले विजय हेतु व्यय किये गये धन को चुकाने में भी हिस्सा देना चाहिए।<ref>तवारीख-ए-शिन्देशाही, नीलेश ईश्वरचन्द्र करकरे, ग्वालियर, संस्करण-2017, पृष्ठ-353.</ref> राजपूत संघ द्वारा उत्पन्नपरंतु महादजी के कष्टों को दूर करने के स्थान पर तुकोजी ने उनकेअहिल्याबाई शत्रुओं का पक्षसे लिया तथाहुआ महादजीकर्ज केचुकाया प्रयत्नोंनही को निर्बल बनाने में योगदान दिया।था वस्तुतःइसिलिये तुकोजी मदिरा-व्यसनीका सैनिककेहना मात्रथा था।आप प्रशासनपेहले केमातेश्वरी कार्योंसे मेंलिया मुख्यतःहुआ वहकर्ज अपनेचुका षड्यंत्रकारी सचिव नारों गणेश के हाथों का खिलौना बनकर ही रह गया था।. अहिल्याबाई तथा तुकोजी जो प्रायः समवयस्क थे कभी समान मतवाले होकर नहीं रह पाये। अहिल्याबाई ने तुकोजी को पदच्युत करने का भी प्रयत्न किया परंतु उनकेवो परिवार में कोई अन्य व्यक्ति ऐसा था भी नहीं जो कि सेना का नियंत्रण संभाल सकता। अतः कोष परकभी अहिल्याबाई कीके पकड़शब्दो बनीके रहीआगे और सैनिक अभियानों में तुकोजी होलकर को भुखमरी की स्थिति तक का सामना करना पड़ा।नही गये
 
तुकोजी होल्कर के चार पुत्र थे-- काशीराव, मल्हारराव, विठोजी तथा यशवंतराव। इनमें से प्रथम दो औरस पुत्र थे तथा अंतिम दो अनौरस (रखैल से उत्पन्न)।<ref>मराठों का उत्थान और पतन, गोपाल दामोदर तामसकर, संस्करण-1930, पृ०-407.</ref> परंतु ये सभी मदिरा-व्यसनी और नीच प्रकृति के थे। मदिरापान करके उन्मुक्त होकर चिल्लाते हुए ये एक दूसरे के गले पकड़ लेते थे। सन् 1791 में महादजी ने अपना उत्तर भारतीय कार्य सफलतापूर्वक संपन्न कर लिया तथा सफलता एवं वैभव के शिखर पर आसीन होकर दक्षिण लौटे। होल्कर के उपभोग के लिए कोई वास्तविक सत्ता या कार्यक्षेत्र रह नहीं गया था। इससे तुकोजी होलकर के साथ अहिल्याबाई भी काफी निराश हुई तथा महादजी के प्रति ये दोनों ईर्ष्या-ग्रस्त हो गये।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-218.</ref>
 
अगस्त 1790 में महादजी ने [[मथुरा]] में विधिपूर्वक उस शाही फरमान को ग्रहण करने के लिए उत्सव किया, जिसके द्वारा वे साम्राज्य के सर्व सत्ता प्राप्त एकमात्र राज्य प्रतिनिधि नियुक्त किये गय थे। भव्य दरबार का प्रबंध किया गया था। तुकोजी को छोड़कर इस दरबार में समस्त सामंत उपस्थित हुए। तुकोजी ने इस दरबार में भाग लेना अस्वीकार कर के एक प्रकार से महादजी का सार्वजनिक अपमान किया था।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-252.</ref>
 
तुकोजी होल्कर के चार पुत्र थे-- काशीराव, मल्हारराव, विठोजी तथा यशवंतराव। इनमें से प्रथम दो पेहली बिवी के पुत्र थे तथा अंतिम दो दुसरे बिवी के थे
== पराभव का आरम्भ ==
तुकोजी लगातारऔर पेशवामहादजी कीका आज्ञाओंवैमनस्य को भी नजरअंदाज कर रहा था तथा 1792 में शिंदे के विरुद्ध उसने सरदारों कोऔर भीबढने उभारा।लगा परिणामस्वरूप महादजी ने उसका सर्वनाश करने का निश्चय किया। 8 अक्टूबर 1792 को महादजी की ओर से गोपाल राव भाऊ ने सुरावली नामक स्थान पर होलकर पर आकस्मिक आक्रमण किया। अनेक सैनिक मारे गए परंतु खुद तुकोजी होलकर बंदी होने से बच गया। यद्यपि बापूजी होलकर तथा पाराशर पंत के प्रयत्न से इस प्रकरण में समझौता हो गया, परंतु [[इन्दौर|इंदौर]] में अहिल्याबाई तथा तुकोजी के उद्धत पुत्र मल्हारराव द्वितीय को यह अपमानजनक लगा। बाहरीउसने दुनिया से अनभिज्ञ होने के कारण अहिल्याबाई ने मल्हारराव के रण में अधिकारपूर्वक जाने देने के उद्धत प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। उसनेथोडी मनचाहीसी सेना तथा धन लेकर अपने पिता के शिविर में पहुँचकर समझौते तथा बापूजी एवं पाराशर पंत के परामर्श का उल्लंघन कर महादजी के बिखरे अश्वारोहियों पर आक्रमण आरंभ कर दिया।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-255.</ref> गोपालराव द्वारा समाचार पाकर महादजी ने आक्रमण का आदेश दे दिया।
 
== लाखेरी के युद्ध में भीषण पराजय ==
 
लाखेरी में हुए इस युद्ध के बारे में माना गया है कि इतना जोरदार युद्ध उत्तर भारत में कभी नहीं हुआ था। होल्कर के अश्वारोही दल की संख्या लगभग 25,000 थी। उनके साथ करीब 2,000 डुड्रेनेक की प्रशिक्षित पैदल सेना थी, जिसके पास 38 तोपें थीं। महादजी के प्रतिनिधि गोपालराव 20,000 अश्वारोही, 6,000 प्रशिक्षित पैदल तथा फ्रेंच शैली की उन्नत 80 हल्की तोपें लेकर होल्कर के सामने डट गया। प्रथम टक्कर 27 मई 1793 को हुई उसमे तुकोजी कि जीत हुई तथा निर्णायक युद्ध 1 जून 1793 को हुआ। महादजी के अनुभवसिद्ध प्रबंधक जीवबा बख्शी तथा दि बायने की चतुर रण शैली के कारण होल्कर की समस्त सेना का लगभग सर्वनाश हो गया। उद्धत मल्हारराव सड़क किनारे एक तालाब के पास मदिरा के नशे में अचेत पकड़ा गया।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-256.</ref>
 
तुकोजी होल्कर का अहंकार चूर्णपराभव हो गया और वह इंदौर लौट गया।गये 'रस्सी जल गयी परंतु ऐंठन नहीं गयी' लौटते हुए उसने शिंदे की राजधानी उज्जैन को निर्दयतापूर्वक लूटकर अपनी प्रतिशोध-भावना को शांत किया।
 
== निराशापूर्ण अन्त ==
उक्त घटना के बाद तुकोजी प्रायः शांत रहा। 1795 में निजाम के विरुद्ध मराठों के खरडा के युद्ध में अत्यंत वृद्धावस्था में उसने भाग लिया था। 1795 ई० में अहिल्याबाई का देहान्त हो जाने पर तुकोजी ने इंदौर का राज्याधिकार ग्रहण किया।<ref>[[हिन्दी विश्वकोश|हिंदी विश्वकोश]], खण्ड-5, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1965ई०, पृष्ठ-395.</ref> अपनी अंतिम अवस्था में तुकोजी [[पुणे]] में ही रहा। अपने अविनीत पुत्रों तथा विभक्त परिवार का नियंत्रण करने में वह असमर्थ रहा। 15 अगस्त 1797 को पुणे में ही तुकोजी का निधन हो गया।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-339.</ref>
 
==इन्हें भी देखें==