"कण्व": अवतरणों में अंतर
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ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, याने लगभग दस हजार मन्त्र हैं। चारों वेदों में करीब बीस हजार से ज्यादा मन्त्र हैं और ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना में भी अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है। पर इनमें भी सात ऋषि ऐसे हैं जिनके कुलों में मन्त्र रचयिता ऋषियों की एक लम्बी परम्परा रही। ये कुल परम्परा ऋग्वेद के सूक्त दस मण्डलों में संग्रहित हैं और इनमें दो से सात यानी छह मण्डल ऐसे हैं जिन्हें हम परम्परा से वंशमण्डल कहते हैं क्योंकि इनमें छह ऋषिकुलों के ऋषियों के मन्त्र इकट्ठा कर दिए गए हैं।
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'''छांदोग्य उपनिषद''' के एक अवतरण में ऋषि घोर '''महर्षि अंगिरस''' व '''भगवान कृष्ण''' का वर्णन मिलता है ।▼
महर्षि घोर ने उनको दान, अहिंसा, पवित्रता, सत्य आदि गुणों की शिक्षा दी । '''घोर अंगिरस''' ने देवकी पुत्र कृष्ण को जो उपदेश दिया था वही उपदेश कृष्ण गीता में अर्जुन को देते हैं।▼
3. ''' कण्व ''' : माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।▼
भगवान श्रीकृष्ण 70 साल की उम्र में घोर अंगिरस ऋषि के आश्रम में एकान्त में वैराग्यपूर्ण जीवन जीने के लिए ठहरे थे। उपनिषदों के गहन अध्ययन एवं विरक्तता से सामर्थ्य एवं तेजस्विता बढ़ती है। श्रीकृष्ण ने 13 वर्ष विरक्तता में बिताये थे ऐसी कथा छांदोग्य उपनिषद में आती है।▼
'''स्रोत:-''' महाभारत, ऋग्वेद, रामायण, विष्णुपुराण स्कंद पुराण▼
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सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर शृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कण्डाकोट नाम से जानी जाती है।
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▲'''दूसरे कण्व ऋषि''' कण्डु के पिता थे जो अयोध्या के पूर्व स्थित अपने आश्रम में रहते थे। रामायण के अनुसार वे राम के लंका विजय करके अयोध्या लौटने पर वहाँ आए और उन्हें आशीर्वाद दिया।
▲'''तीसरे कण्व''' पुरुवंशी राज प्रतिरथ के पुत्र थे जिनसे काण्वायन गोत्रीय ब्रह्मणों की उत्पत्ति बतलाई जाती है ।
इनके पुत्र मेधातिथि हुए और कन्या इंलिनी।
(यह जानकारी कण्व गोत्रीय ब्राह्मणों के लिए लाभकारी हो सकती है)
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इन्होंने राजा की हत्या करके सिंहासन छीन लिया और इनके वंशज काण्वायन नाम से डेढ़ सौ वर्ष तक राज करते रहे।
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'''छठे कण्व''' महर्षि कश्यप के पुत्र।▼
▲'''सातवें कण्व, महर्षि घोर''' के पुत्र थे जिन्होंने ऋग्वेद में अनेक मन्त्रों की रचना की है। '''घोर ऋषि''' ब्रह्माजी के पौत्र व अंगिरा जी के पुत्र थे । वेदों और पुराणों में इनका वंश विवरण मिलता है । घोर ऋषि जी के पुत्र कण्व ऋषि थे । कण्वऋषि से भी एक पुत्र हुए जिनका नाम ब्रह्मऋषि सौभरि जी, जिनकी वंशावली ” आदिगौड़ सौभरेय ब्राह्मण” कहलाती है जो कि यमुना नदी के किनारे '''गांव सुनरख''' वृन्दावन ,मथुरा व आसपास के क्षेत्रों में इनका निवास है । गोकुल के पास बसी कृष्ण के बडे भाई की “'''दाऊजी की नगरी'''” में इनके वंशज ही “'''दाऊमठ'''” के पुजारी ('''पंडा जी''') हैं । इसके अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में भी ये '''सौभरेय ब्राह्मण''' अच्छी संख्या में हैं । '''विष्णु पुराण''' व '''भागवद पुराण''' में इनके उल्लेख मिलता है । द्वापर युग में जन्मे '''भगवान श्रीकृष्ण''' के गुरु सांदीपनि की तरह '''महर्षि''' '''घोर''' भी '''विद्याधर''' गुरु रहे हैं । इनमें भी अंगिरा ऋषि की तरह अग्नि जैसा तेज था । इनको इनके पिता के नाम की वजह से “'''घोर आंगिरस'''” की संज्ञा दी गयी ।
▲'''छांदोग्य उपनिषद''' के एक अवतरण में ऋषि घोर '''महर्षि अंगिरस''' व '''भगवान कृष्ण''' का वर्णन मिलता है ।
▲महर्षि घोर ने उनको दान, अहिंसा, पवित्रता, सत्य आदि गुणों की शिक्षा दी । '''घोर अंगिरस''' ने देवकी पुत्र कृष्ण को जो उपदेश दिया था वही उपदेश कृष्ण गीता में अर्जुन को देते हैं।
▲भगवान श्रीकृष्ण 70 साल की उम्र में घोर अंगिरस ऋषि के आश्रम में एकान्त में वैराग्यपूर्ण जीवन जीने के लिए ठहरे थे। उपनिषदों के गहन अध्ययन एवं विरक्तता से सामर्थ्य एवं तेजस्विता बढ़ती है। श्रीकृष्ण ने 13 वर्ष विरक्तता में बिताये थे ऐसी कथा छांदोग्य उपनिषद में आती है।
▲'''स्रोत:-''' महाभारत, ऋग्वेद, रामायण, विष्णुपुराण
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