"बख्तावर सिंह": अवतरणों में अंतर

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'''महाराणा बख्तावरसिंह''' मध्यप्रदेश के धार जिले के अमझेरा कस्बे के शासक थे, जिन्होंने १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में मध्य प्रदेश में अंग्रेजों से संघर्ष किया। लंबे संघर्ष के बाद छलपूर्वक अंग्रेजों ने उन्हें कैद कर लिया। 10 फरवरी 1858 में इंदौर के महाराजा यशवंत चिकित्सालय परिसर के एक नीम के पेड़ पर उन्हें फांसी पर लटका दिया। उनका परिवार रिंगनोद किले में जाकर रहने लगा जो अमझेरा का दूसरा किला था अमझेरा के आखरी शासक राव लक्ष्मण सिंह जी राठौड़ थे | ठा. दीप सिंह जी छड़ावद के पुत्र थे |
मालवा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
रानी भटियानी जी जो रिंगनोद किले में रहती थी उन्होंने लक्ष्मण सिंह जी को दत्तक लिया | राव लक्ष्मण सिंह जी अमझेरा राज्य के आखरी शासक थे जहां उनका वंश छड़ावाद जागीर के रुप मैं मिलता है |<ref name="pib">{{cite web | url=http://pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx | title=अमर शहीद महाराणा बख्तावरसिंह | publisher=पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार | date=12 अगस्त 2016 | accessdate=1 सितंबर 2016 | author=पाटिल, प्रेमविजय | archive-url=https://web.archive.org/web/20141008232430/http://www.pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx | archive-date=8 अक्तूबर 2014 | url-status=live }}</ref> मध्यप्रदेश सरकार ने अमझेरा स्थित महाराणा बख्तावरसिंह के किले को राज्य संरक्षित इमारत घोषित किया है।जिला मुख्यालय से 27 km इंदोर अहमदबाद राज्य मार्ग पर हैं।
 
--:अमझेरा के महाराव बख्तावर सिंह राठौड़:--
 
‌अंग्रेजों की राज्य हड़प नीति के कारण कई राजा महाराजा अंग्रेजों के खिलाफ हो गए थे,अंग्रजों की नीति के अनुसार जिस राज्य का वारिस नही होने पर अथवा राजा के संतान विहीन होने पर वह राज्य अंग्रेजों के अधीन कर लिया जाता,राजाओं के दत्तक या गोद लेने पर अंग्रेज उसे उत्तराधिकारी नही मानते, और राज्य को लावारिस घोषित कर राज्य हड़प लेते, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई भी  इसी नीति की शिकार हुई थी।मध्य भारत स्थित अमझेरा नरेश महाराव बख्तावर सिंह जी ने अपने 14 वर्षीय पुत्र रघुनाथसिंह के होने पर भी अपने राजसुख की परवाह किये बगैर अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ १८५७ में सशस्त्र विद्राह किया पर  दुर्भाग्यवश १८५७ की क्रांति विफल रही और 10 फरवरी १८५८ को सुबह 9 बजे के लगभग अमझेरा नरेश महाराव बख्तावर सिंह राठौड़ को एम. वाय. प्रांगण इन्दोर में  अचानक फांसी दे दी। अमझेरा में राव सा.के मृत्यु भोज के बाद इनके  पुत्र रघुनाथसिंह जी का राजतिलक हुआ, कुछ दिनो बाद वे गायब हो गए शायद उनकी हत्या कर दी गई, उनके पुत्र किशन सिंह मृत्यु शैशवावस्था में ही हो चुकी थी, लक्ष्मण सिंह का जन्म नहीं हुआ था, अमझेरा राज जप्त कर ग्वालियर स्टेट के जीवाजी राव सिंधिया को दे दिया अमझेरा महाराव बख्तावर सिंह राठौड़ की शहादत के दो माह बाद २७अप्रेल १८५८ को बख्तावरसिंहजी की  चावड़ी रानी दौलत कुंवर मानसा ने  पुत्र लक्ष्मण सिंह राठौड़ को जन्म दिया,लक्ष्मण सिंह की भी  हत्या न हो जावे इस लिए लक्ष्मण सिंह का पालनपोषण  गुप्त किया गया सत्ताधारी अंग्रेजों व उनके पिट्ठुओं के ताकतवर होने के कारण लक्ष्मण सिंह हत्या के डर से बेटमा के जंगलों में गुप्तवास में सन्यासी वेश में ही रहे,और बागियों विद्रोहियों की मदद करते रहे | छ्डावद के ठाकुर उदय सिंह  ने मध्य प्रदेश सरकार से वर्ष1996 के लगभग  शहीद बख्तावर सिह के शैशव अवस्था में ही मृत पुत्र किशन सिंह को ही २७ अप्रेल १८५८ में जन्मा बता क उसकी ( किशन सिंह) विधवा द्वारा  लक्ष्मण सिंह को गोद लेना बता कर  अमझेरा का मुआवजा का क्लेम किया था, किंतु नटनागर शोध संस्थान सीतामऊ में मौजूद कुलगुरु की पोथी में दर्ज रिकार्ड के अनुसार छडावद के ही भीम सिंह के पुत्र किशनसिंह की विधवा ने दीप  सिंह के पुत्र निर्भय सिंह को गोद लिया था,छडावद के उदयसिंह केस हार गये,सरकार ने उनका दावा खारिज़ कर दिया | असली लक्ष्मण सिंह राठौड़ अंग्रेजों के खिलाफ बागियों और विद्रोहियों कि मदद के अलावा कुछ नहीं कर पाए पर लक्ष्मण सिंह के पुत्र अमर सिंह राठौड़ ने महू में अंग्रेजों के खिलाफ गुप्त रूप से विद्रोही गतिविधि संचालित की राज खुलने पर वे और भूमिगत हो  गए उनकी महू स्थित सम्प जप्त कर ली उनके बड़े पुत्र राम सिंग राठौड़ को महू में ओक्ट्रय सुपरिडेंट/ सर्कल इंस्पेक्टर के पद से हटा दिया और उनके पुत्र हरि सिंह को ब्रितानी पुलिस उठा ले गई, और दुसरे दिन अधमरी हालत में छोड़ गई, कुछ ही घंटो बाद उनकी मृत्य होगई, परिवार को और नुकसान  न पहुचे इस लिए अमर  सिंह जी ने आत्म समर्पण कर दिया, गाँधी इरविन समझोते के  बाद गाँधी जी के मशवरे से ब्रितानी हुकूमत से माफ़ी मांगी, पर ब्रितानी हुकूमत ने सम्पति नहीं लोटाई और अमरसिंह को महू से निष्कासित कर दिया | इस तरह अंग्रजों से आजादी के संघर्ष में अमझीरा राजवंश की तीन पीडी के बख्तावर सिंह, रघुनाथ सिंह और हरि सिंह शहीद हो गए फिर भी  शहीद बखतावर सिंह जी के पोत्र  अमर सिंह  अंग्रेजी हुकूमत से लड़त राम सिंग राठौड़ महू में ओक्ट्रय सुपरिडेंट के पुत्र अजित सिंह राठौड़ महू में कालेज प्रोफ़ेसर बन गए और ट्रांसफर हो कर नीमच में ही बस गए | उसके बाद वर्ष 2007 के लगभग  उत्तर प्रदेश का  एक फर्जी व्यक्ति अमझेरा के कुछ लोगों को बरगला कर प्रो. अजित सिंह राठौड़ जगह स्वयं को प्रोफ़ेसर बता कर शहीद राव बख्तावरसिंह राठौड़ का वंशज बता कर सम्मानित हुआ पर कुछ समय बाद ही असलियत सामने आने पर  अमझीरा की जनता ने उसे नकार दिया था | उसके पहले भी फर्जी तरीके से शहीद बख्तावर सिह के शैशव अवस्था में ही मृत पुत्र किशन सिंह को २७ अप्रेल १८५८ में जन्मा बता कर किशन सिंह विधवा द्वारा छ्डावाद के केनिर्भय सिंह उर्फ़ (लक्ष्मण सिंह) को गोद लेना बता अमझेरा की वारिसी सिध्द कराने कि कोशिश कि गई थी,पर बात नहीं बनी और छ्डावाद केस हार गए, पर लोगबागों में यही भ्रान्ति अभी भी फ़ैली है, कि २७अप्रेल १८५८ में किशन सिंह जन्मे और किशन सिंह विधवा ने लक्ष्मण सिंह को गोद लिया, जबकि उज्जैन में  स्थित प. अरविन्द त्रिवेदी मगरगुहा के पूर्वजों की बही में दर्ज अमझेरा वंशावली में ३० दिसम्बर १८५७में किशन सिंह का  दर्ज नाम से यह प्रमाणित होता है कि किशन सिंह का जन्म २७ अप्रेल १८५८ को दोबारा नहीं हो सकता, १८५७ के बाद अमझेरा राजवंश का लेखाजोखा रखनेवाले बड़वाह जी शंकर सिंह के पूर्वज अमझेरा क्षेत्र में  नहीं गए पर अमझेरा राजवंश कि रानियों का लेखा जोखा रखने वाले  रानीमंगा राम सिंग और उनके पूर्वज अमझेरा क्षेत्र में जाते रहे उनके पास  दर्ज अमझेरा  रानियों से सम्बंधित रिकार्ड से  प्रमाणित होता है कि 27 अप्रेल १८५८ को लक्ष्मण सिंह का ही जन्म हुआ था, लक्षमण सिंहजी का  विवाह भटियानी जी ओसिया से हुआ उनके पुत्र अमर सिंह का विवाह पालनपुर पीथापुर  वाघेला जी से हुआ, अमरसिंह के पुत्र ओक्ट्रय सुपरिडेंट महू राम सिंग राठौड़ का विवाह बरडिया सिसोदानी जी से हुआ,राम सिंह के पुत्र  प्रो. अजित सिंह राठौड़ का विवाह जाधवन जी  मेत्राल गुजरात  से हुआ। |<sup>[1]</sup> मध्यप्रदेश सरकार ने अमझेरा स्थित महाराणा बख्तावरसिंह के किले को राज्य संरक्षित इमारत घोषित किया है।जिला मुख्यालय से 27 km इंदोर अहमदबाद राज्य मार्ग पर हैं।
 
== सन्दर्भ ==