"बावड़ी": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Agrasen Ki Baoli (Ugrasen Ki Baoli).JPG|right|300px|thumb|[[अग्रसेन की बावली]], [[नई दिल्ली]] ]]
[[File:Abaneri.jpg|thumb|राजस्थान में दौसा जिले में स्थित आभानेरी की चाँद बावड़ी
[[File:बूंदी शहर में स्थित सुप्रसिद्ध बावडी हाडीरानी की बावड़ी.JPG|right|300px|बूंदी में स्थित सुप्रसिद्ध हाडीरानी की बावड़ी]]
[[File:प्रतापगढ़ (राजस्थान) के गाँव सालमगढ़ में एक क्षतविक्षत पुरानी बावडी.JPG|thumb|प्रतापगढ़ (राजस्थान) के गाँव सालमगढ़ में एक क्षतविक्षत पुरानी बावडी : हे.शे.]]
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जल प्रबन्धन की परम्परा प्राचीन काल से हैं। हड़प्पा नगर में खुदाई के दौरान जल संचयन प्रबन्धन व्यवस्था होने की जानकारी मिलती है। प्राचीन अभिलेखों में भी जल प्रबन्धन का पता चलता है। पूर्व मध्यकाल और मध्यकाल में भी जल सरंक्षण परम्परा विकसित थी। पौराणिक ग्रन्थों में तथा जैन बौद्ध साहित्य में नहरों, तालाबों, बाधों, कुओं बावडियों और झीलों का विवरण मिलता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जल प्रबन्धन का उल्लेख मिलता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के जूनागढ़ अभिलेख में सुदर्शन झील और कुछ वापियों के निर्माण का विवरण प्राप्त है। इस तरह भारत में जल संसाधन की उपलब्धता एवं प्राप्ति की दृष्टि से काफी विषमताएँ मिलती हैं, अतः जल संसाधन की उपलब्धता के अनुसार ही जल संसाधन की प्रणालियाँ विकसित होती हैं। बावड़ियां हमारी प्राचीन जल संरक्षण प्रणाली का आधार रही हैं- प्राचीन काल, पूर्वमध्यकाल एवं मध्यकाल सभी में बावडि़यों के बनाये जाने की जानकारी मिलती है। दूर से देखने पर ये तलघर के रूप में बनी किसी बहुमंजिला हवेली जैसी दृष्टिगत होती हैं।
== इतिहास ==
बावड़ियों को सर्वप्रथम हिन्दुओं द्वारा (जनोपयोगी शिल्पकला के रूप में) विकसित किया गया और उसके पश्चात मुस्लिम शासकों ने भी इसे अपनाया।<ref name="linkchand">{{cite book|last=डेविस|first=फिलिप|title=The Penguin guide to the monuments of India|year=1989|publisher=विकिंग (Viking) |location=[[लंदन]]|isbn=0-14-008425-8}}</ref> बावड़ी-निर्माण की परम्परा कम से कम छठी शताब्दी में [[गुजरात]] के दक्षिण-पश्चिमी भाग में आरम्भ हो चुकी थी। धीरे-धीरे ऐसे कई निर्माण-कार्य उत्तर की ओर विस्तार करते हुए राजस्थान में बढ़े। अपनी पुस्तक '[[राजस्थान की रजत बूँदें]]' (प्रकाशक: [[गाँधी शांति प्रतिष्ठान]], [[नई दिल्ली]]) में [[अनुपम मिश्र]] ने राजस्थान की बावड़ियों के इतिहास, शिल्प-पक्ष और इनकी सामाजिक-उपयोगिता पर विस्तृत प्रकाश डाला है। बावड़ी-निर्माण का यह कार्य ११वीं से १६वीं शताब्दी में अपने पूर्ण चरम पर रहा।<ref name="linkchand" />
== स्थापत्य कला ==
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जी हाँ दौसा की चाँद बावड़ी की तरह ये बावड़ी भी कहते है कि एक रात में ही बनी थी। इतना ही नहीं ये भी कहते है कि चाँद बावड़ी , आलूदा की बावड़ी और भांडारेज की बावड़ी तीनो को ही एक रात में बनाया गया और ये तीनो सुरंग से एक-दूसरे से जुड़ी हैं।
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'चाँद बावड़ी' का निर्माण ९वीं शताब्दी में [[आभानेरी]] के संस्थापक राजा चंद्र ने कराया था। राजस्थान में यह [[दौसा जिला|दौसा जिले]] की [[बाँदीकुई]] तहसील के [[आभानेरी]] नामक ग्राम में स्थित है। बावड़ी १०० फीट गहरी है। इस बाव़डी के तीन तरफ सोपान और विश्राम घाट बने हुए हैं। इस बावड़ी की स्थापत्य कला अद्भुत है। यह भारत की सबसे बड़ी और गहरी बावड़ियों में से एक है। इसमें ३५०० सीढ़ियां हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/programmes/b00qhqr8 |title=फोटो: चाँद बावड़ी स्टेपवेल, राजस्थान। |publisher=[[बीबीसी]] |date=2010 |accessdate=27 जून 2013 |author= |7= |archive-url=https://web.archive.org/web/20140429101955/http://www.bbc.co.uk/programmes/b00qhqr8 |archive-date=29 अप्रैल 2014 |url-status=live }}</ref> चाँद बावडी के ही समय बनी दूसरी बावड़ी है- [[भांडारेज]] की बावड़ी,[https://web.archive.org/web/20140808061029/http://books.google.co.in/books?id=mqYmTrnNJ-AC&pg=PA34&lpg=PA34&dq=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%80&source=bl&ots=2Hz0q2IkP-&sig=Ui212qNKgc6l5-H4ngAKg2PRMHc&hl=en&sa=X&ei=bufhU6GmAcqVuASq9YDIBg&ved=0CB0Q6AEwAA#v=onepage&q=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%80&f=false] जो [[जयपुर]]-[[भरतपुर]] राजमार्ग पर ग्राम [[भांडारेज]] में स्थित है। यह दर्शनीय वापी भी बहुमंजिला है और [[एक रात में तैयार हुई थी ये तीनो बावड़ी। :- भांडारेज की बावड़ी ( दौसा)राज.
जी हाँ दौसा की चाँद बावड़ी की तरह ये बावड़ी भी कहते है कि एक रात में ही बनी थी। इतना ही नहीं ये भी कहते है कि चाँद बावड़ी , आलूदा की बावड़ी और भांडारेज की बावड़ी तीनो को ही एक रात में बनाया गया और ये तीनो सुरंग से एक-दूसरे से जुड़ी हैं।पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग]][http://doitc.rajasthan.gov.in/_layouts/Doitc/User/ContentPage.aspx?PId=60&LangID=Hindi]{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }} [[राजस्थान सरकार]] का [[संरक्षित स्मारक]] है।
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== कुछ प्रसिद्ध बावड़ियाँ==
*[[रानी की वाव]] ([[पाटण, गुजरात]])
*[[अडालज की बावड़ी]]
*[[चाँद बावड़ी]]
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== सन्दर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}
* Basham, A.L. 1967. 'The Wonder that Was India', Fontana, London, and Rupa & Co., Calcutta.
*'राजस्थान की रजत बूँदें' : अनुपम मिश्र : गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली का प्रकाशन
*'आज भी खरे हैं तालाब': अनुपम मिश्र : उपर्युक्त
* 'राजस्थान के कुएँ एवं बावड़ियाँ': वाई.डी. सिंह :राजस्थानी ग्रंथागार: जोधपुर
*'भारतीय बावड़ियाँ पारंपरिक जलस्रोतों का ऐतिहासिक, सामाजिक एवं शिल्पशास्त्रीय अध्ययन':[Subhadra Publishers and Distributors:2013 [ISBN 8189399640] [ISBN 9788189399641]
*[https://web.archive.org/web/20130803110728/http://hindi.indiawaterportal.org/content/%E0%A4%9C%E0%A4%B2-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%BE]
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