"जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन": अवतरणों में अंतर

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(iii) लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया
 
सन् 1894 ई0 में इन्होंने भारत के भाषा सर्वेक्षण का कार्य आरम्भ किया। 33 वर्षों के अनवरत परिश्रम के फलस्वरूप यह कार्य सन् 1927 ई0 में समाप्त हुआ। मूलतः यह ग्यारह खण्डों में विभक्त है। अनेक खण्डों (खण्ड एक, तीन, पॉच, आठ एवं नौ) के एकाधिक भाग हैं। ग्यारह हजार पृष्ठों का यह सर्वेक्षण-कार्य विश्व में अपने ढंग का अकेला कार्य है। विश्व के किसी भी देश में भाषा-सर्वेक्षण का ऐसा विशद् कार्य नहीं हुआ है। प्रशासनिक अधिकारी होते हुए आपने भारतीय भाषाओं और बोलियों का विशाल सर्वेक्षण कार्य सम्पन्न किया। चूँकि आपका सर्वेक्षण अप्रत्यक्ष-विधि पर आधारित था, इस कारण इसमें त्रुटियों का होना स्वाभाविक है। सर्वेक्षण कार्य में जिन प्राध्यापकों, पटवारियों एवं अधिकारियों ने सहयोग दिया, अपने अपने क्षेत्रों में बोले जाने वाले भाषा रूपों का परिचय, उदाहरण, कथा-कहाँनियां आदि लिखकर भेजीं, वे स्वन-विज्ञान एवं भाषा विज्ञान के विद्वान नहीं थे। अपनी समस्त त्रुटियों एवं कमियों के बावजूद डॉ0 ग्रियर्सन का यह सर्वेक्षण कार्य अभूतपूर्व है तथा भारत की प्रत्येक भाषा एवं बोली पर कार्य करने वाला शोधकर्ता सर्वप्रथम डा0 ग्रियर्सन की मान्यता एवं उनके द्वारा प्रस्तुत व्याकरणिक ढांचे से अपना शोधकार्य आरम्भ करता है। यह कहा जा सकता है कि आपके कार्य का ऐतिहासिक महत्व अप्रतिम है।)<ref>{{cite web |url=http://rachanakar.blogspot.com/2009/09/blog-post_176.html|title=प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का आलेख : विदेशी विद्वानों द्वारा हिन्दी का अध्ययन|accessmonthday=[[१२ सितंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=रचनाकार|language=}}</ref><ref>{{cite book |last=जैन |first=प्रो.महावीर सरन |title=विदेशी विद्वानों द्वारा हिन्दी वाड्.मीमांसापरक अध्ययन (फिलॉलाजिकल स्टडीज) (सन् 1940 ई0 तक)|year=|publisher=|location=|id= |page= |accessday= |accessmonth= |accessyear= }}</ref>
 
==संदर्भ==
<references/>