"गुरु गोबिन्द सिंह": अवतरणों में अंतर

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गुरु गोविन्द सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु [[गुरु तेग़ बहादुर|श्री गुरु तेग बहादुर जी]] और माता गुजरी के घर [[पटना]] जो आजकल बिहार की राजधानी हैं , में 22 दिसम्बर 1666 को हुआ था। जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके पिता [[गुरु तेग़ बहादुर|श्री गुरु तेग बहादुर जी]] [[असम]] में [[धर्म]] [[उपदेश]] को गये थे। उनके बचपन का नाम '''गोविन्द राय''' था। पटना में जिस घर में उनका जन्म हुआ था और जिसमें उन्होने अपने प्रथम चार वर्ष बिताये , वहीं पर अब [[तख़्त श्री पटना साहिब|तखत श्री हरिमंदर जी पटना साहिब]] स्थित है।<ref>{{Cite web|url=https://www.jagran.com/spiritual/religion-guru-gobind-singh-jayanti-date-2021-when-is-prakash-parv-2021-know-all-about-guru-gobind-singh-21286360.html|title=Guru Gobind Singh Jayanti Date 2021: आज है गुरु गोबिंद सिंह जयंती, जानें उनके जीवन की महत्वपूर्ण बातें|website=Dainik Jagran|language=hi|access-date=2021-01-20}}</ref>
 
[[१६७०|1670]] में उनका परिवार फिर पंजाब आ गया। मार्च [[१६७२|1672]] में उनका परिवार हिमालय के शिवालिक पहाड़ियों में स्थित [[चक्क नानकी]] नामक स्थान पर आ गया। चक्क नानकी ही आजकल [[आनन्दपुर साहिब]] कहलता है। यहीं पर इनकी शिक्षा आरम्भ हुई। उन्होंने [[फ़ारसी भाषा|फारसी]], [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए उन्होंने हिन्दू राजपूत योद्धा राज बज्जर से सैन्य कौशल सीखा।
 
गोविन्द राय जी नित्य प्रति आनदपुर साहब में आध्यात्मिक आनन्द बाँटते, मानव मात्र में नैतिकता, निडरता तथा आध्यात्मिक जागृति का सन्देश देते थे। आनन्दपुर वस्तुतः आनन्दधाम ही था। यहाँ पर सभी लोग वर्ण, रंग, जाति, सम्प्रदाय के भेदभाव के बिना समता, समानता एवं समरसता का अलौकिक ज्ञान प्राप्त करते थे। गोविन्द जी शान्ति, क्षमा, सहनशीलता की मूर्ति थे।
 
[[काश्मीरी के कुछ पण्डित|काश्मीरी परिवारोंपण्डितों]] का जबरन धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाये जाने के विरुद्ध कुछ पण्डित परिवार फरियाद लेकर गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आये और कहा कि हमारे सामने ये शर्त रखी गयी है कि है कोई ऐसा महापुरुष? जो इस्लाम स्वीकार नहीं कर अपना बलिदान दे सके तो आप सब का भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा उस समय गुरु गोबिन्द सिंह जी नौ साल के थे। उन्होंने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है! कश्मीरी पण्डितों की फरियाद सुन उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं [[इस्लाम]] न स्वीकारने के कारण [[११|11]] नवम्बर [[१६७५|1675]] को औरंगज़ेब ने दिल्ली के [[चाँदनी चौक|चांदनी चौक]] में सार्वजनिक रूप से उनके पिता [[गुरु तेग़ बहादुर|गुरु तेग बहादुर]] का सिर कटवा दिया। इसके पश्चात [[बैसाखी|वैशाखी]] के दिन [[२९|29]] मार्च [[१६७६|1676]] को गोविन्द सिंह सिखों के दसवें गुरु घोषित हुए।
 
[[१०|10]]वें गुरु बनने के बाद भी उनकी शिक्षा जारी रही। शिक्षा के अन्तर्गत उन्होनें लिखना-पढ़ना, घुड़सवारी तथा सैन्य कौशल सीखे [[१६८४|1684]] में उन्होने [[चंडी दी वार|चण्डी दी वार]] की रचना की। [[१६८५|1685]] तक वह [[यमुना नदी]] के किनारे [[पाओंटा साहिब|पाओंटा]] नामक स्थान पर रहे।