"कुड़मी महतो": अवतरणों में अंतर
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कुड़मी महतो भारत की एक
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वर्तमान समय में
==परिचय==
कुड़मी आदिवासी, जो आकृति नहीं बल्कि [[प्रकृति]] पूजक होते हैं, इस ब्रह्माण्ड के एकमात्र परम सत्य प्रकृति को ही अपना भगवान मानते हैं और गराम, धरम, बसुमाता के रूप में प्रकृति की ही पुजा अराधना करते हैं। इनके सभी पूजा ये स्वयं द्वारा ही करते हैं एवं सामूहिक पूजा गांव के लाया (ग्राम प्रधान) द्वारा ही सम्पन्न किया जाता है। आदि काल से प्रकृति के विभिन्न रूपों पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, नदी-पहाड़-पर्वत के महत्व को समझते हुए, कि ये प्रकृति ही सृष्टि के सम्पूर्ण प्राणी जगत के जीवन और ऊर्जा स्रोत का मूल आधार है, उन्हीं की पूजा उपासना करते हैं। प्रकृति पूजक होने के नाते ये 'सारना' धर्मी हैं, एक ऐसा धर्म जिसमें कोई ऊँच-नीच कोई भेदभाव कोई वर्णवाद नहीं।
कुड़मि आदिवासि मुख्य रूप से कृषि पेषा के लोग होते हैं। कृषक एवं प्रकृति पुजक होने के नाते इनके सभी परब-त्योहार भी विशुद्ध रूप से कृषि एवं प्रकृति पर ही आधारित होते हैं। कुड़मियों के 'बारअ मासेक तेरअ परब' - आखाईन में हल पुनहा से लेकर सिझानअ/पथिपुजा, सारहुल/फुलपुजा, [[रहइन परब]], मासंत परब, चितउ परब, गोमहा परब, करम पुजा, जितिआ पुजा, जिल्हुड़, बांदना/सोहराय और टुसु थापन (आगहन सांक्रात), टुसु भासान (पूस सांक्रात) तक सभी विशिष्ट आदि संस्कृति के परिचायक हैं, जिनकी तिथि में कभी कोई परिवर्तन या फेर बदल नहीं होता और हरएक पुजा, परब का अपना विशिष्ट कारण और महत्व है।
कुड़मि आदिवासियों के रीति-रिवाजों में शादी-ब्याह के मौके पर भी विशिष्ट आदि परंपरा का अनुपालन किया जाता है, जो कनिया देखा से शुरू होकर बर देखा, दुआइर खुंदा (आशीर्वादी), लगन धरा, माड़ुआ बांधा, सजनि साजा, नख टुंगा, आम बिहा, मउहा बिहा, आमलअ खिआ, गड़ धउआ, साला धति, डुभि खिआ, थुबड़ा (हांड़ी) बिहा, सिंनदरादान, चुमान, बिदाई, केनिया भितरा, पितर पिंधा से लेकर समधिन (बेहान) देखा तक के नेग में दृष्टिगोचर होता है। अन्य समाज (सती प्रथा पालक) के लोग महिलाओं को समता का अधिकार व सम्मान देने की बात तो बहुत बाद में शुरू किये, मगर कुड़मि आदिवासियों में तो ये प्रचलन 'सांगा बिहा' के रूप में आदि काल से चला आ रहा है एवं दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा भी इनके परंपरा के विरूद्ध है। कुड़मी समाज की अपनी एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसे 'महतो परगना' कहते हैं। समाज के विभिन्न जाति संगत समस्याओं का निबटारा महतो परगना के पदाधिकारियों द्वारा ही की जाती है।
इतनी उन्नत सभ्यता-संस्कृति के धरोहर को अपने अंदर समेटे रहने के बावजूद सदियों से चले आ रहे बाह्य सांस्कृतिक आक्रमणों की मार से दोतरफा विचारधारा का शिकार होकर सटीक जानकारी के अभाव में व सरकार की दोषपूर्ण व भेदभावपूर्ण नीतियों के वजह से आज ये समुदाय भटकाव की स्थिति से गुजर रहा है। अपने इतिहास, भाषा-सभ्यता-संस्कृति के प्रति सामाजिक स्तर पर क्रांतिकारी जागरूकता लाकर ही इनके पहचान और अस्तित्व को बचाया जा सकता है, जिसमें समाज के सभी वर्गों को आगे आकर अपनी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी और निभानी होगी।
==कुड़मी आदिवासियों की व्यथा==
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