"ब्रह्मचर्य": अवतरणों में अंतर

टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन Android app edit
छो 2402:8100:234E:FF48:4E4F:6321:14A6:16E3 (talk) के संपादनों को हटाकर Jain Chinmay (5275925) के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया: स्पैम लिंक।
टैग: वापस लिया SWViewer [1.4]
पंक्ति 1:
अमृतमपत्रिका, ग्वालियर
ब्रह्मचर्य से नफा-नुकसान...
 
100 की एक बात स्मरण रखें कि शरीर स्वस्थ है, विश्राम में है, आनंद में है, शांत है, उतना ही सेक्स की जरूरत कम पड़ती है। खोंचड़ एवं विचार रहित मन-मस्तिष्क में सेक्स कभी नहीं पनपता।
शरीर या बुद्धि से जबरदस्ती कोई भी काम कराओगे या उन विचारों पर अंकुश लगाओगे, तो निश्चित एक दिन बीमार पड़ जाओगे।
ब्रह्मचर्य का मतलब आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि स्त्री पुरुष को शारीरिक संबंध से बचना है। यह विचार योग बात है कि जब शरीर से कुछ विसर्जन नहीं होगा, तो नवीन का निर्माण कैसे होगा।
वीर्य का कोई संचित कोश नहीं है। वीर्य जितना खर्च होता है, उतना ही नया पैदा होता है।
 
सच्चाई तो यही है कि एक बार भोग की लत लग जाये, तो आदमी कितने ही रोग होने के बाद भी सम्भोग नहीं छोड़ता। संजोग ही कि भगवान बुद्ध जैसे लोग विवाह के बाद भी ब्रह्मचर्य अपनाकर भगवान बन जाते हैं।
**हर मर्द की एक फितरत होती है कि वह आंखों से मात्र 2 इंच ऊपर उठकर शक्तिशाली या महादेव की तरह महान बनना नहीं चाहता। आदमी नेत्रों से 16 इंच नीचे गिरकर अनेक जन्मों तक असँख्य योनियों में भटकता रहता है।**
मनुष्य के 2 इंच ऊपर आज्ञाचक्र है और 16 इंच नीचे यौनाचार क्षेत्र यानी सेक्स का केन्द्रबिन्दु लिंग है।
ब्रह्मचर्य दो शब्दो 'ब्रह्म' और 'चर्य' से बना है। ब्रह्म का अर्थ परमात्मा एवं चर्य का अर्थ है-विचरना ….अर्थात सदाशिव या सदगुरू के ध्यान में मग्न रहना, विचरना।
36 गढ़ के अदिवासी लोग 2 से 3 स्त्रियां साथ रखते हैं, जबकि वहां 20 वर्ष पहले बहुत भुखमरी हुआ करती थी। ब्रह्मचर्य एक विशाल साधना है, इसे कर पाना हर किसी का बुता नहीं है। बहुत से साधु-संत भी अपने आप को ब्रह्मचारी लिखते हैं। कहा गया है कि-
रूखी-सूखी, जो खात हैं, उन्हें सतावे काम।
हलुआ-पुरी जो खाएं, तो उनकी जाने राम।
ब्रह्मचर्य का मतलब केवल यौनाचार या भोग-विलास से दूर रहना ही नहीं है।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है वाणी, वचन, विचार, कर्म, नियम में शुद्धता। ब्रह्मचर्य सांसारिक सुखों से दूर रहने, कम खाओ-गम खाओ और सहवास आदि यौन गतिविधियों में भोग पर अंकुश तथा इंद्रियों पर नियंत्रण के अभ्यास के लिए हैं।
भगवान महावीर के अनुसार ” वीर्य रक्षण एक शाश्वत धर्म है, ब्रह्मचर्य सवस्थ्य जीवन का निर्माण आधार है
चरक-सुश्रुत सहिंता में लिखा है कि- ब्रह्मचर्य शरीर के तीन स्तम्भों में से एक प्रमुख स्तम्भ या आधार है।
***त्रयः उपस्तम्भाः। आहारः स्वप्नो ब्रह्मचर्यं च सति! ***
आयुर्वेद में शरीर तीन उपस्तम्भों पर टिका हुआ माना गया है। आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य।
त्रितय चेदमुपष्टम्भनमाहार : स्वप्नोs ब्रह्मचर्यं च। एभियुर्क्तियुक्तैरूपष्टब्ध मुपस्तम्भै: शरीरं बलवर्णोंपचयो पचितमनुवर्तते यावादायुष: संस्कार:।।
(अष्टांग संग्रह सू.९:३६)
अर्थात - आहार स्वप्न (नींद)एवं (अ)ब्रह्मचर्य द्वारा युक्तिपूर्वक इन सभी स्तंभों पर देह-मन-शरीर का स्थिर होना ही ब्रह्मचर्य पालन है।
 
यह सब शास्त्रमत बातें हैं। अब अगर हकीकत में इस चर्चा पर चिंतन-शोधन करें, तो आप पाएंगे कि एक उम्र के बाद व्यक्ति मजबूरी वश ब्रह्मचर्य का पालन करने हेतु बाध्य हो जाता है।
यह प्राकृतिक व्यवस्था है कि- 60 के बाद पुरुष खाट के लायक नहीं बचता। वह केवल गीता या सुंदरकांड का पाठ कर जिंदगी गुजारने की कोशिश करता है।
डबलबेड पर पड़ते ही भयंकर बेड विचार घेर लेते हैं। इस उम्र में अनेक उलझनों, चिन्ता के कारण नींद भी ठीक से नहीं आतीं है।
70 की उम्र के बाद वह बिस्तर पर पड़े-पड़े ही अंतिम क्षणों को गिनता रहता है। 70 की आयु में बस्तर की नग्न कन्या भी लाकर आदमी के सामने खड़ी कर दो, तब भी उसका जोश नहीं जागता। इस अवस्था में शरीर के सारे अस्तर ढ़ीले पड़ जाते हैं।
अब आई 80 कि उम्र। यहां तक मुश्किल से 30 से 40 फीसदी लोग ही बच पाते हैं। कुछ बिरले स्वस्थ्य लोग ही इस आयु में सेक्स की वायु की सुगन्ध लेने में सक्षम होते हैं।
अस्सी की उम्र में हरेक मर्द की लस्सी नीचे से नहीं ऊपर से निकलना शुरू हो जाती है। 80 साल के बुजुर्ग लोग खांस-खांसकर अपनी देह के अंजर-पंजर हिला देते हैं और कफ-खांसी से पीड़ित रहते हैं।
ब्रह्मचर्य अदभुत है। ब्रह्मचर्य की शक्ति की कोई सीमा नहीं है। ब्रह्मचर्य का आनंद अदभुत है लेकिन ब्रह्मचर्य उन्हें उपलब्ध होता है, जो चित्त की सारी स्थितियों को समझते हैं। जानते हैं, पहचानते हैं और पहचानने के कारण उनसे मुक्त होते हैं।
ब्रह्मचर्य उनको उपलब्ध नहीं होता जो कुछ भी नहीं समझकर चित्त को दबाते हैं, और दबाने के कारण भीतर बहुत भाप इकट्ठी हो जाती है।
फिर वह भाप उलटे रास्ते से निकलनी शुरू होती है। वह निकलती है, वह रुक नहीं सकती। ब्रह्मचर्य तो अदभुत है। लेकिन जो प्रयोग इस देश में किया गया है, उसने इस देश को ब्रह्मचारी नहीं बनाया, अति कामुक बना डाला।
अतः अंत में निवेदन यही है कि बहुत सी जानकारियां एकत्रित न करके छोटा सा अंतर्ज्ञान जागृत कर लें। किसी भी सङ्कल्प को पूर्ण करने हेतु शिव बनना पड़ता है।
 
{{स्रोतहीन|date=जुलाई 2016}}
{{जैन धर्म}}