"गुरु हरगोबिन्द": अवतरणों में अंतर

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{{ज्ञानसन्दूक व्यक्ति
| name = गुरु हर गोबिन्द<br>ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ
| name = Guru haldkar
| image = Guru_haldkarGuru Har Gobind.jpg
| spousealt =
| alt =Jhuta pyaar, dhokebaaz Ladki, aaj krte kl krte, ladka chhote gao ka, janeman kab se
| caption =
| birth_date = जून 19, 1595<ref>{{cite web|url=http://www.sikh-history.com/sikhhist/warriors/warrior_hargobind.html|title=Guru Hargobind (1595-1644)|publisher=sikh-history.com|accessdate=21-june-2016|archive-url=https://web.archive.org/web/20160629172306/http://www.sikh-history.com/sikhhist/warriors/warrior_hargobind.html|archive-date=29 जून 2016|url-status=dead}}</ref>
| birth_date = 12/01/2001
| birth_place = गुरू की वडाली, [[अमृतसर]], [[पंजाब]] सूबा, {{flagicon|मुग़ल साम्राज्य}}
| birth_place = Village Amheta
| death_date = फरवरी 28, 1644
| death_place = [[कीरतपुर साहिब]], [[भारत]]
| nationality =
| other_names = Deepak''छट्ठे Haldkarबादशाह''
| known_for = {{Plainlist|* [[अकाल तख़त]] का निर्माण
| known_for = Music Artists
* युद्ध में शामिल होने वाले पैहले गुरू
Indian Singer And Repper
* सिखों को युद्ध कलाएं साखने और सैन्य परीक्षण के लिये प्रेरित करना
YouTube Channel Name - Guru haldkar
* मीरी पीरी की स्थापना
Music makes
* इन लड़ाइयों में भागिदारी:}}
* [[रोहिला की लड़ाई]]
* [[करतारपुर की लड़ाई]]
* [[अमृतसर की लड़ाई (१६३४)]]
* हरगोबिंदपुर की लड़ाई
* गुरुसर की लड़ाई
* कीरतपुर की लड़ाई
[[कीरतपुर साहिब]] की स्थापना
| occupation =
| predecessor = [[गुरु अर्जुन देव]]
| successor = [[हर राय|गुरु हरिराय]]
| spouse = माता नानकी, माता महादेवी और माता दामोदरी
| spouse =
| children = बाबा गुरदिता, बाबा सूरजमल, बाबा अनि राय, बाबा अटल राय, [[गुरु तेग बहादुर]] और बीबी बीरो
| children =
| parents = Father[[गुरु Nameअर्जन -देव]] Shree Ravindraमाता Kumar,गंगा
Mother Name - bilsha bai
}}
{{सिक्खी}}
{{Jabalpur Madhya Pradesh}}
 
'''गुरू हरगोबिन्द''' [[सिख|सिखों]] के छठें गुरू थे।
Ye ek chhote se gao ke Rehne wale hai enka जन्म 12/01/2001 ko huaa tha
साहिब की सिक्ख इतिहास में [[गुरु अर्जुन देव]] जी के सुपुत्र गुरु हरगोबिन्द साहिब की दल-भंजन योद्धा कहकर प्रशंसा की गई है। गुरु हरगोबिन्द साहिब की शिक्षा दीक्षा महान विद्वान् [[भाई गुरदास]] की देख-रेख में हुई। गुरु जी को बराबर बाबा बुड्डाजी का भी आशीर्वाद प्राप्त रहा। छठे गुरु ने सिक्ख धर्म, संस्कृति एवं इसकी आचार-संहिता में अनेक ऐसे परिवर्तनों को अपनी आंखों से देखा जिनके कारण सिक्खी का महान बूटा अपनी जडे मजबूत कर रहा था। विरासत के इस महान पौधे को गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपनी दिव्य-दृष्टि से सुरक्षा प्रदान की तथा उसे फलने-फूलने का अवसर भी दिया। अपने पिता श्री गुरु अर्जुन देव की शहीदी के आदर्श को उन्होंने न केवल अपने जीवन का उद्देश्य माना, बल्कि उनके द्वारा जो महान कार्य प्रारम्भ किए गए थे, उन्हें सफलता पूर्वक सम्पूर्ण करने के लिए आजीवन अपनी प्रतिबद्धता भी दिखलाई।
 
Ye music Artists he
 
बदलते हुए हालातों के मुताबिक गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने शस्त्र एवं शास्त्र की शिक्षा भी ग्रहण की। वह महान योद्धा भी थे। विभिन्न प्रकार के शस्त्र चलाने का उन्हें अद्भुत अभ्यास था। गुरु हरगोबिन्दसाहिब का चिन्तन भी क्रान्तिकारी था। वह चाहते थे कि सिख कौम शान्ति, भक्ति एवं धर्म के साथ-साथ अत्याचार एवं जुल्म का मुकाबला करने के लिए भी सशक्त बने। वह अध्यात्म चिन्तन को दर्शन की नई भंगिमाओं से जोडना चाहते थे। गुरु- गद्दी संभालते ही उन्होंने मीरी एवं पीरी की दो तलवारें ग्रहण की। मीरी और पीरी की दोनों तलवारें उन्हें बाबा बुड्डाजीने पहनाई। यहीं से सिख इतिहास एक नया मोड लेता है। गुरु हरगोबिन्दसाहिब मीरी-पीरी के संकल्प के साथ सिख-दर्शन की चेतना को नए अध्यात्म दर्शन के साथ जोड देते हैं। इस प्रक्रिया में राजनीति और धर्म एक दूसरे के पूरक बने। गुरु जी की प्रेरणा से श्री अकाल तख्त साहिब का भी भव्य अस्तित्व निर्मित हुआ। देश के विभिन्न भागों की संगत ने गुरु जी को भेंट स्वरूप शस्त्र एवं घोडे देने प्रारम्भ किए। अकाल तख्त पर कवि और ढाडियोंने गुरु-यश व वीर योद्धाओं की गाथाएं गानी प्रारम्भ की। लोगों में मुगल सल्तनत के प्रति विद्रोह जागृत होने लगा। गुरु हरगोबिन्दसाहिब नानक राज स्थापित करने में सफलता की ओर बढने लगे। जहांगीर ने गुरु हरगोबिन्दसाहिब को [[ग्वालियर का क़िला | ग्वालियर के किले]] में बन्दी बना लिया। इस किले में और भी कई राजा, जो मुगल सल्तनत के विरोधी थे, पहले से ही कारावास भोग रहे थे। गुरु हरगोबिन्दसाहिब लगभग तीन वर्ष ग्वालियर के किले में बन्दी रहे। महान सूफी फकीर मीयांमीर गुरु घर के श्रद्धालु थे। जहांगीर की पत्‍‌नी नूरजहांमीयांमीर की सेविका थी। इन लोगों ने भी जहांगीर को गुरु जी की महानता और प्रतिभा से परिचित करवाया। बाबा बुड्डा व भाई गुरदास ने भी गुरु साहिब को बन्दी बनाने का विरोध किया। जहांगीर ने केवल गुरु जी को ही ग्वालियर के किले से आजाद नहीं किया, बल्कि उन्हें यह स्वतन्त्रता भी दी कि वे 52राजाओं को भी अपने साथ लेकर जा सकते हैं। इसीलिए सिख इतिहास में गुरु जी को बन्दी छोड़ दाता कहा जाता है। ग्वालियर में इस घटना का साक्षी गुरुद्वारा दाता बन्दी छोड़ है। अपने जीवन मूल्यों पर दृढ रहते गुरु जी ने शाहजहां के साथ चार बार टक्कर ली। वे युद्ध के दौरान सदैव शान्त, अभय एवं अडोल रहते थे। उनके पास इतनी बडी सैन्य शक्ति थी कि मुगल सिपाही प्राय: भयभीत रहते थे। गुरु जी ने मुगल सेना को कई बार कड़ी पराजय दी। गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने अपने व्यक्तित्व और कृत्तित्वसे एक ऐसी अदम्य लहर पैदा की, जिसने आगे चलकर सिख संगत में भक्ति और शक्ति की नई चेतना पैदा की। गुरु जी ने अपनी सूझ-बूझ से गुरु घर के श्रद्धालुओं को सुगठित भी किया और सिख-समाज को नई दिशा भी प्रदान की। अकाल तख्त साहिब सिख समाज के लिए ऐसी सर्वोच्च संस्था के रूप में उभरा, जिसने भविष्य में सिख शक्ति को केन्द्रित किया तथा उसे अलग सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान प्रदान की। इसका श्रेय गुरु हरगोबिन्दसाहिब को ही जाता है।