"शाण्डिल्य": अवतरणों में अंतर

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''वत्स गोत्र'शाण्डिल्य''' वत्सशांडिल्य एक सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण गोत्र है, ये वेदों में श्रेष्ठ, तथा ऊँचकुलिन घराने के ब्राह्मण हैं। यह गोत्र ब्राह्मणों के तीन मुख्य ऊँचे गोत्रो में से एक है।
 
महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार [[युधिष्ठिर]] की सभा में विद्यमान ऋषियों में शाण्डिल्य का नाम भी है। ब्राह्मणों से ही इस संसार का अस्तित्व है अतः इस संसार के प्रारंभ सतयुग से ही शांडिल्य ऋषि और अन्य ब्राह्मणों का अस्तित्व कायम है,
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शांडिल्य गोत्र(तिवारी,त्रिपाठी,शर्मा,मिश्रा,गोस्वामी वंश)
शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताए जाते हैं जो इन बारह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं।
सांडी, सोहगोरा, संरयाँ, श्रीजन, धतूरा, बगराइच, बलूआ, हलदी, झूडीयाँ, उनवलियाँ, लोनापार, कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है। भगवान विष्णु अपने एक अवतार में पृथ्वी धाम पर आएंगे जो देवरिया जिले में "सुमंगलम मिश्रा" नाम से आएंगे यद्यपि की ये पूर्ण अवतार नहीं हैं और उन्हें अपने स्वरूप का आभास भी नहीं होगा।
 
इन्हीं बारह गांव से आज चारो तरफ इनका विकास हुआ है, ये सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। इनका गोत्र श्रीमुख शांडिल्य त्रि प्रवर है,श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमें राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ अतः विष्णु घराना, मणि घराना है, इन चारो का उदय सोहगोरा गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन चारो का अस्तित्व कायम है।