"मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या": अवतरणों में अंतर

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== जीवन परिचय ==
विश्वेश्वरैया का जन्म [[मैसूर]] ([[कर्नाटक]]) के [[कोलार]] जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सितंबर 1860 को एक [[तेलुगू भाषा|तेलुगु]] परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। पिता [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के विद्वान थे। विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा जन्मस्थान से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने [[बंगलौर|बंगलूर]] के सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया। लेकिन यहां उनके पास धन का अभाव था। अत: उन्हें टयूशन करना पड़ा। विश्वेश्वरैया ने 18811880 में बीए की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया। इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से [[अभियान्त्रिकी|इंजीनियरिंग]] की पढ़ाई के लिए [[पुणे|पूना]] के [[अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे|साइंस कॉलेज]] में दाखिला लिया। 1883 की एलसीई व एफसीई (वर्तमान समय की [[बीई]] उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी योग्यता का परिचय दिया। इसी उपलब्धि के चलते महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें [[नासिक]] में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया।
 
एक बार कुछ भारतीयों को [[संयुक्त राज्य अमेरिका|अमेरिका]] में कुछ फैक्टरियों की कार्यप्रणाली देखने के लिए भेजा गया। फैक्टरी के एक ऑफीसर ने एक विशेष मशीन की तरफ इशारा करते हुए कहा, "अगर आप इस मशीन के बारे में जानना चाहते हैं, तो आपको इसे 75 फुट ऊंची सीढ़ी पर चढ़कर देखना होगा"। भारतीयों का प्रतिनिधित्व कर रहे सबसे उम्रदराज व्यक्ति ने कहा, "ठीक है, हम अभी चढ़ते हैं"। यह कहकर वह व्यक्ति तेजी से सीढ़ी पर चढ़ने के लिए आगे बढ़ा। ज्यादातर लोग सीढ़ी की ऊंचाई से डर कर पीछे हट गए तथा कुछ उस व्यक्ति के साथ हो लिए। शीघ्र ही मशीन का निरीक्षण करने के बाद वह शख्स नीचे उतर आया। केवल तीन अन्य लोगों ने ही उस कार्य को अंजाम दिया। यह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि डॉ॰ एम.विश्वेश्वरैया थे जो कि सर एमवी के नाम से भी विख्यात थे।