"कार्तिकेय": अवतरणों में अंतर

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| siblings = [[गणेश]] [[अशोक सुंदरी]] , [[ मनसा देवी]] , [[ देवी ज्योति ]] और [[ भगवान अय्यपा ]]
| weapon = [[धनुष]], [[भाला]]
| consort = [[षष्ठी|देवसेना]] और [[वल्ली]]
| mount = [[मोर]]
 
|other_names=स्कन्द , कुमार , पार्वतीनन्दन , शिवसुत , गौरीपुत्र , षडानन आदि|festivals=स्कन्दषष्ठी|mantra=ॐ कर्तिकेयाय विद्महे वल्लीनाथाय धीमहि तन्नो कार्तिकेय प्रचोदयात् {{!}}{{!}}|father=भगवान [[शिव]]|mother=देवी [[पार्वती]]}}
'''कार्तिकेय''' या '''मुरुगन''' ([[तमिल]]: முருகன்), एक लोकप्रिय हिन्दु देव हैं और इनके अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं। इनकी पूजा मुख्यत: भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर [[तमिल नाडु]] में की जाती है इसके अतिरिक्त विश्व में जहाँ कहीं भी तमिल निवासी/प्रवासी रहते हैं जैसे कि [[श्रीलंका]], [[मलेशिया]], [[सिंगापुर]] आदि में भी यह पूजे जाते हैं। इनके छ: सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिल नाडु में स्थित हैं। तमिल इन्हें ''तमिल कडवुल'' यानि कि तमिलों के देवता कह कर संबोधित करते हैं। यह भारत के तमिल नाडु राज्य के रक्षक देव भी हैं। ये भगवान शिव और माता पार्वती के सभी संतानों में सबसे बड़े हैं । इनके छोटे भाई बहन हैं देवी अशोकसुन्दरी , भगवान अय्यपा , देवी ज्योति , देवी मनसा और भगवान गणेश हैं। इनकी दो पत्नियां हैं जिनके नाम हैं देवसेना और वल्ली । देवसेना देवराज इंद्र की पुत्री हैं जिन्हें छठी माता के नाम से भी जाना जाता है। वल्ली एक आदिवासी राजा की पुत्री हैं ।
 
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== कार्तिकेय के जन्म की कथा ==
स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव के दिये वरदान के कारण अधर्मी राक्षस[[दैत्य]] तारकासुर अत्यंत शक्तिशाली हो चुका था। वरदान के अनुसार केवल शिवपुत्र ही उसका वध कर सकता था।<ref>{{Cite web|url=https://www.patrika.com/agra-news/lord-shiva-son-kartikeya-special-story-3784360/|title=भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का दर्शन करना महिलाओं के लिए मना, दर्शन किए तो सात जन्म तक रहेंगी विधवा...|website=Patrika News|language=hindi|access-date=2020-08-28}}</ref> और इसी कारण वह तीनों लोकों में हाहाकार मचा रहा था। इसीलिए सारे देवता भगवान विष्णु के पास जा पहुँचे। भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया की वे कैलाश जाकर भगवान शिव से पुत्र उत्पन्न करने की विनती करें। विष्णु की बात सुनकर समस्त देवगण जब कैलाश पहुंचे तब उन्हें पता चला कि शिवजी और माता पार्वती तो विवाह के पश्चात से ही देवदारु वन में एकांतवास के लिए जा चुके हैं।
विवश व निराश देवता जब देवदारु वन जा पहुंचे तब उन्हें पता चला की शिवजी और माता पार्वती वन में एक गुफा में निवास कर रहे हैं।
देवताओं ने शिवजी से मदद की गुहार लगाई किंतु कोई लाभ नहीं हुआ, भोलेभंडारी तो कामपाश में बंधकर अपनी अर्धांगिनी के साथ सम्भोग करने में रत थे। उनको जागृत करने के लिए अग्नि देव ने उनकी कामक्रीड़ा में विघ्न उत्पन्न करने की ठान ली। अग्निदेव जब गुफा के द्वार तक पहुंचे तब उन्होने देखा की शिव शक्ति कामवासना में लीन होकर सहवास में तल्लीन थे, किंतु अग्निदेव के आने की आहट सुनकर वे दोनों सावधान हो गए।