"जाति": अवतरणों में अंतर

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[[File:Basor Dalit caste.jpg|thumb|उत्तर प्रदेश की बसोर जाति]]
भारतीय समाज जातीय सामाजिक इकाइयों आदिवासी समाज वास्तव में एक ऐसा समाज है, जिसने अपनी परम्पराएं, संस्कार और रीति-रिवाज संरक्षित रखे है। यह बात सही है कि अपने जल, जंगल-जमीन में सिमटा यह समाज शैक्षिक आर्थिक रूप से पिछड़ा होने के कारण राष्ट्र की विकास यात्रा के लाभों से वंचित है। डॉ. रमणिका गुप्ता आदिवासियों के विषय में अपना अभिमत व्यक्त करते हुए लिखती हैं, ”यह सही है कि आदिवासी साहित्य अक्षर से वंचित रहा, इसलिए वह उसकी कल्पना और यथार्थ को लिखित रूप से न साहित्य में दर्ज कर पाया और न ही इतिहास में। लोकगीतों, किंवदन्तियों, लोककथाओं तथा मिथकों के माध्यम से उसकी गहरी पैठ है।“
 
यह सच है की भारत में सभी वर्ण के लोगों को समान सम्मान,इज्जत और अवसर दिया जाता था। सबकुछ इंसान के योग्यता पर आधारित होता था। शिक्षा सबके लिए बहुत जरुरी हिस्सा था। फिर अंग्रेज़ो ने जातिप्रथा को बढ़ावा दिया। अंग्रेज़ों ने गलत तथ्य दिए उनमें से एक तथ्य यह है कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए पहला विद्रोह तिलका मांझी ने सन् 1824 में में उस समय किया था, जब उन्होंने अंग्रेज़ कमिश्नर क्लीवलैण्ड को तीर से मार गिराया था। सन् 1765 में खासी जनजाति ने अंग्रेज़ों के विरूद्ध विद्रोह किया था। सन् 1817 ई. में खानदेश आन्दोलन, सन् 1855 ई. में संथाल विद्रोह तथा सन् 1890 में बिरसा मुंडा का आन्दोलन अंग्रेज़ों के विरूद्ध आदिवासियों के संघर्ष की गौरव गाथाएं हैं, किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि इतिहाकार 1857 ई. को ही नवजागरण का प्रस्थान बिन्दु मानते हैं और आदिवासियों के सशस्त्र विद्रोह की उपेक्षा कर देते हैं। यह अत्यन्त क्षोभ की बात है कि जिन आदिवासियों ने भारतभूमि को अंग्रेज़ों के चंगुल से बचाने के लिए संघर्ष छेड़ा, उन्हीं दीन-हीन अबोध आदिवासियों को स्वाधीनता मिलने के बाद से ही विकास के नाम पर उनके जल, जंगल और जमीन से खदेड़ने का अभियान शुरू कर दिया गया।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जाति" से प्राप्त