"अष्टांग योग": अवतरणों में अंतर

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किसी एक स्थान पर या वस्तु पर निरन्तर मन स्थिर होना ही ध्यान है।
जब ध्येय वस्तु का चिन्तन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।
 
'''ध्यान या''' '''अवधान चेतन मन की एक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपनी चेतना बाह्य जगत् के किसी चुने हुए दायरे अथवा स्थलविशेष पर केंद्रित करता है। यह अंग्रेजी "अटेंशन" के पर्याय रूप में प्रचलित है। [[हिन्दी|हिंदी]] में इसके साथ "देना", "हटाना", "रखना" आदि सकर्मक क्रियाओं का प्रयोग, इसमें व्यक्तिगत प्रयत्न की अनिवार्यता सिद्ध करता है। ध्यान द्वारा हम चुने हुए विषय की स्पष्टता एवं तद्रूपता सहित मानसिक धरातल पर लाते हैं।<ref>{{Cite web|url=https://hindi.webdunia.com/dhyana-yoga/what-is-meditation-112061300047_1.html|title=ध्यान की परिभाषा|last=|first=|date=|website=Hindi webdunia|archive-url=https://web.archive.org/web/20190719144558/http://hindi.webdunia.com/dhyana-yoga/what-is-meditation-112061300047_1.html|archive-date=19 जुलाई 2019|dead-url=|access-date=|url-status=dead}}</ref>'''
 
'''[[ध्यान (क्रिया)|योगसम्मत ध्यान]] से इस सामान्य ध्यान में बड़ा अंतर है। पहला दीर्घकालिक अभ्यास की शक्ति के उपयोग द्वारा आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर प्रेरित होता है, जबकि दूसरे का लक्ष्य भौतिक होता है और साधारण दैनंदिनी शक्ति ही एतदर्थ काम आती है। [[संपूर्णानन्द|संपूर्णानंद]] आदि कुछ भारतीय विद्वान् योगसम्मत ध्यान को सामान्य ध्यान की ही एक चरम विकसित अवस्था मानते हैं'''।
 
=== समाधि ===