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यह चित्त की अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। [[योग दर्शन]] समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।
समाधि की भी दो श्रेणियाँ हैं : सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनन्द और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है।
 
[[ध्यान]] की उच्च अवस्था को '''समाधि''' कहते हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा योगी आदि सभी धर्मों में इसका महत्व बताया गया है। जब साधक ध्येय वस्तु के ध्यान मे पूरी तरह से डूब जाता है और उसे अपने अस्तित्व का ज्ञान नहीं रहता है तो उसे समाधि कहा जाता है। [[पतञ्जलि|पतंजलि]] के [[पतञ्जलि योगसूत्र|योगसूत्र]] में समाधि को आठवाँ (अन्तिम) अवस्था बताया गया है।
 
समाधि के बाद प्रज्ञा का उदय होता है और यही योग का अंतिम लक्ष्य है।
 
{{योग}}
 
हठयोग साधना का अंतिम एवं सातवां साधन समाधि है | इस स्तर पर ध्याता, ध्यान से ध्येय विषय में मिलकर लय हो जाता है तब उस वृत्ति निरोध की अंतिम अवस्था को समाधि कहते हैं |
 
==षडंग योग==