"अष्टांग योग": अवतरणों में अंतर

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'''तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम: ।। पातंजलयोगदर्शन 2/49 ।।'''
 
उस ( आसन) के सिद्ध होने पर श्वास और प्रश्वास की गति को रोकना 'प्राणायाम' है ।
 
योग की यथेष्ट भूमिका के लिए 'नाड़ी साधन' और उनके जागरण के लिए किया जाने वाला 'श्वास और प्रश्वास' का नियमन प्राणायाम है। प्राणायाम मन की 'चंचलता और विक्षुब्धता' पर विजय प्राप्त करने के लिए बहुत सहायक है।
 
=== प्रत्याहार ===
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किसी एक स्थान पर या वस्तु पर निरन्तर मन स्थिर होना ही ध्यान है।
जब ध्येय वस्तु का चिन्तन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।
 
'''ध्यान या''' '''अवधान चेतन मन की एक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपनी चेतना बाह्य जगत् के किसी चुने हुए दायरे अथवा स्थलविशेष पर केंद्रित करता है। यह अंग्रेजी "अटेंशन" के पर्याय रूप में प्रचलित है। [[हिन्दी|हिंदी]] में इसके साथ "देना", "हटाना", "रखना" आदि सकर्मक क्रियाओं का प्रयोग, इसमें व्यक्तिगत प्रयत्न की अनिवार्यता सिद्ध करता है। ध्यान द्वारा हम चुने हुए विषय की स्पष्टता एवं तद्रूपता सहित मानसिक धरातल पर लाते हैं।<ref>{{Cite web|url=https://hindi.webdunia.com/dhyana-yoga/what-is-meditation-112061300047_1.html|title=ध्यान की परिभाषा|last=|first=|date=|website=Hindi webdunia|archive-url=https://web.archive.org/web/20190719144558/http://hindi.webdunia.com/dhyana-yoga/what-is-meditation-112061300047_1.html|archive-date=19 जुलाई 2019|dead-url=|access-date=|url-status=dead}}</ref>'''
 
'''[[ध्यान (क्रिया)|योगसम्मत ध्यान]] से इस सामान्य ध्यान में बड़ा अंतर है। पहला दीर्घकालिक अभ्यास की शक्ति के उपयोग द्वारा आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर प्रेरित होता है, जबकि दूसरे का लक्ष्य भौतिक होता है और साधारण दैनंदिनी शक्ति ही एतदर्थ काम आती है। [[संपूर्णानन्द|संपूर्णानंद]] आदि कुछ भारतीय विद्वान् योगसम्मत ध्यान को सामान्य ध्यान की ही एक चरम विकसित अवस्था मानते हैं'''।
 
=== समाधि ===
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यह चित्त की अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। [[योग दर्शन]] समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।
समाधि की भी दो श्रेणियाँ हैं : सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनन्द और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है।
 
[[ध्यान]] की उच्च अवस्था को '''समाधि''' कहते हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा योगी आदि सभी धर्मों में इसका महत्व बताया गया है। जब साधक ध्येय वस्तु के ध्यान मे पूरी तरह से डूब जाता है और उसे अपने अस्तित्व का ज्ञान नहीं रहता है तो उसे समाधि कहा जाता है। [[पतञ्जलि|पतंजलि]] के [[पतञ्जलि योगसूत्र|योगसूत्र]] में समाधि को आठवाँ (अन्तिम) अवस्था बताया गया है।
 
समाधि के बाद प्रज्ञा का उदय होता है और यही योग का अंतिम लक्ष्य है।
 
{{योग}}
 
हठयोग साधना का अंतिम एवं सातवां साधन समाधि है | इस स्तर पर ध्याता, ध्यान से ध्येय विषय में मिलकर लय हो जाता है तब उस वृत्ति निरोध की अंतिम अवस्था को समाधि कहते हैं |
 
==षडंग योग==