"नन्दी": अवतरणों में अंतर
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[[हिन्दू धर्म]] में, '''नन्दी या नन्दीश्वर''' [[कैलाश]] के [[द्वारपाल]] हैं, जो [[शिव]] का निवास है। पुराणों के अनुसार वे शिव के [[वाहन]] तथा [[अवतार]] भी हैं जिन्हे [[बैल]] के रूप में शिवमंदिरों में प्रतिष्ठित किया जाता है। [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] में 'नन्दि' का अर्थ प्रसन्नता या आनन्द है। नंदी को शक्ति-संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है।
शैव परम्परा में नन्दि को [[नन्दिनाथ सम्प्रदाय]] का मुख्य [[गुरु]] माना जाता है, जिनके ८ शिष्य हैं- [[सनक]], [[सनातन धर्म|सनातन]], [[सनन्दन]], [[सनत्कुमार]], [[तिरुमूलर]], [[व्याघ्रपाद]], [[पतञ्जलि|पतंजलि]], और [[शिवयोग मुनि]]। ये आठ शिष्य आठ दिशाओं में शैवधर्म का प्ररसार करने के लिए भेजे गये थे। [[शिलाद मुनि]] इनके पिता थे | जिन्होंने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने के लिए तपस्या की थी तथा उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे | भूमि ज्योत ते समय शिलाद को भूमि से एक बालक की प्राप्ति हुई थी | जिसका नाम उन्होंने नंदी रखा |
एक बार नंदी पहरेदारी का काम कर रहे थे। शिव पार्वती के साथ विहार कर रहे थे। [[भृगु]] उनके दर्शन करने आये- किंतु नंदी ने उन्हें गुफा के अंदर नहीं जाने दिया। भृगु ने शाप दिया, पर नंदी निर्विकार रूप से मार्ग रोके रहे। ऐसी ही शिव-पार्वती की आज्ञा थी। एक बार रावण ने अपने हाथ पर कैलाश पर्वत उठा लिया था। नंदी ने क्रुद्ध होकर अपने पांव से ऐसा दबाव डाला कि रावण का हाथ ही दब गया। जब तक उसने शिव की आराधना नहीं की तथा नंदी से क्षमा नहीं मांगी, नंदी ने उसे छोड़ा ही नहीं।
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