"केतु": अवतरणों में अंतर

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अमृतमपत्रिका, ग्वालियर से साभार...
केतु का करें ध्यान, मिलता है-सम्मान।
शिखर जैसी ऊंचाई पाने के लिये केतु की शांति करते रहें। केवल पशु पक्षियों या बिना जुबान वाले जीवों की सेवा करते रहें।
नवग्रह में केतु एक ऐसा गृह है, जो सम्पूर्ण सृष्टि तथा सार्वभौमिक ऊर्जा के संचारक है। केतु अश्वनी, मघा, मूल नक्षत्रों के अधिपति है। इन नक्षत्रों में जन्मे जातकों पर मूल पड़ते हैं। अतः इन्हें मूल की शांति निश्चित रूप से कराना चाहिए।
अश्वनी नक्षत्र में जन्म हो, तो दवा दान एवं मरीज़ों कि सेवा करें। हरेक रविवार को ताजी औषधि का रस एक चम्मच चढासने से इनका भाग्योदय होता है।
मघा में जन्म हो, तो अपने पितृ-पूर्वजों का स्मरण, सेवा करें।
मूल में जन्म होने पर परम्त्यों शिवभक्त दैत्य-राक्षसों रावण,हिरणकश्यप आदि का स्मरण करें। मूल नक्षत्र के अधिदेवता दैत्य हैं।
प्रत्येक ग्रह के गुण स्थूल जगत और सुक्ष्म जगत वाले ब्रह्मांड की ध्रुवाभिसारिता के समग्र संतुलन के बनाए रखने में मदद करते हैं।
 
केतु का करें दान, तो पाएंगे धन और सम्मान…
केतु कुंडली में खराब अवस्था में हो, तो ऐसे जातक को प्रत्येक मंगलवार किसी गुरुद्वारे में 5 लोगों के लिए कढ़ी का सामान बेसन, दही, सभी मसाले, कढ़ीपत्ता आदि 17 मङ्गल तक दान करना चाहिए।
यह उपाय सन्तति की कमी या बच्चे नहीं होना,बच्चों की उन्नति में बाधा हो, गृहकलेश हो, पत्नी से तालमेल बिगड़ा हो, काम में मन न लगता हो, उच्चाटन की समस्या हो तो यह मंगलदान विशेष चमत्कारी रूप फलप्रद है।
केतु सूर्य के उत्तर-पश्चिम में (वायव्य) में स्थित होते हैं। इनमें किसी भी देवता का मुख एक दूसरे की तरफ नहीं होता।
केतु ओर सूर्य दोनों की महादशाएं बहुत ही कष्टकाल दायक होती हैं। सूर्य आत्मा का कारक होने आत्मा को दुःख पहुँचाचाते हैं और केतु पितरों के रक्षक होने से केतु की महादशा में पीड़ित पितृ महान परेशानी दायक हैं।
 
 
किसी मन्दिर में ध्वजा लगाएं।
नारियल का पानी शिवलिंग पर चढ़ाएं।
तमिलनाडू के कुम्भकोणम के पास केतुग्रह मंदिर
शेष नागनाथस्वामि (केतु)
यह पांडिचेरी से 43 किलोमीटर तथा 6 किमी तिरकवेन्डू से Keezpherumpallam ग्राम में स्थित है। यहां शिव को शेष नागनाथ स्वामी तथा माँ अन्नपूर्णा सुंदरनायकी देवी कहते हैं।
मान्यता है कि केतु ग्रह ने पाप से मुक्ति के लिए यहां शिव की पूजा की थी। यहां की विशेषता यह है कि यहां केतु का सिर पांच नागों यानि शेषनाग तथा शरीर असुर का है और वे हाथ जोड़े भगवान शिव की पूजा करते दिखते हैं। केतु के मन्दिर के बगल में हदेव प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग है। यहां के दर्शन करते ही जातक फुट-फुट कर रोने लगता है। यह मेरा अनुभव है।
पीड़ितों को इस शिवालयों में अपनी उम्र के बराबर दीपदान करना चाहिए।
मन्दिर कार्यालय में रसीद कटवाकर आप रुद्राभिषेक भी करवा सकते हैं। आप जब तक यहां नहीं जा सकें, तो गणेशजी को रोज कुशा एवं श्रीफल जल अर्पित करें।
वृहद ज्योतिष सहिंता के मुताबिक मानव जीवन व पूरी सृष्टि पर केतु का जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह किसी को भी प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचाने में मदद करता है।
ज्योतिष रत्नाकर के अनुसार केतु और राहु, आकशीय परिधि में चलने वाले चंद्रमा और सूर्य के मार्ग के प्रतिच्छेदन बिंदु को निरूपित करते हैं।
पृथ्वी से जुड़े प्राणियों की प्रभा (ऊर्जा पिंडों) और मन को ग्रह प्रभावित करते हैं। प्रत्येक ग्रह में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है। ग्रहों की ऊर्जा किसी व्यक्ति के भाग्य के साथ एक विशिष्ट तरीके से उस समय जुड़ जाती है जब वे अपने जन्मस्थान पर अपनी पहली सांस लेते हैं और यह ऊर्जा जुड़ाव तब तक साथ रहता है जब तक उसका वर्तमान शरीर जीवित है।
मनुष्य ग्रह या उसके स्वामी देवता के साथ संयम के माध्यम से किसी विशिष्ट ग्रह की चुनिंदा ऊर्जा केसाथ खुद की अनुकुलता बैठाने में सक्षम है।
विशिष्ठ देवताओं की पूजा का प्रभाव उनकी संबंधित ऊर्जा केमाध्यम से पूजा करने वाले व्यक्ति के लिए तदोनुसार फलता है। विशेष रूप से संबंधित ग्रह द्वारा धारण किए गए भाव के अनुसार ब्रह्मांडीय ऊर्जा जो हम हमेशा प्राप्त करते हैं उसमें अलग-अलग खगोलीय पिंडों से आ रही ऊर्जा शामिल होती है। जब हम बार-बार किसी मंत्र का उच्चारण करते हैं तो हम किसी खास फ्रीक्वेंसी से तालमेल बैठाते हैं और यह फ्रीक्वेंसी ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ संपर्क कर उसे हमारे शरीर केभीतर और आसपास खींचती है।
ग्रह तारे और अन्य खगोलीय पिंड ऊर्जा की ऐसी सजीव सत्ता है जो ब्रह्मांड के अन्य प्राणियों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार जीवन में नवग्रहों (देवता) का प्रभाव अति महत्वपूर्ण है। ये नवग्रह सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु है। सूर्य सभी ग्रहों का प्रधान है तथा बाकी ग्रह सूर्य से ही ऊर्जा पाते हैं।
 
 
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