"विदुर": अवतरणों में अंतर
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==विदुर का धृतराष्ट्र तथा गान्धारी को उपदेश एवं वनगमन==
सम्पूर्ण तीर्थों की यात्रा करने के पश्चात् [[विदुर]] जी हस्तिनापुर आये। उन्होंने [[मैत्रेय]] जी से आत्मज्ञान प्राप्त कर किया था। धर्मराज [[युधिष्ठिर]], [[भीम]] [[अर्जुन]], [[नकुल]] [[सहदेव]], [[धृतराष्ट्र]], [[युयुत्सु]], [[महाभारत के पात्र|संजय]], [[कृपाचार्य]], [[कुन्ती]] [[गांधारी]], [[द्रौपदी]], [[सुभद्रा]], [[उत्तरा]], [[कृपी]] नगर के गणमान्य नागरिकों के साथ [[विदुर]] जी के दर्शन के लिये आये। सभी के यथायोग्य अभिवादन के पश्चात् युधिष्ठिर ने कहा - "हे चाचाजी! आपने हम सब का पालन पोषण किया है और समय समय पर हमारी प्राणरक्षा करके आपत्तियों से बचाया है। अपने उपदेशों से हमें सन्मार्ग दिखाया है। अब आप हमें अपने तीर्थयात्रा का वृतान्त कहिये। अपनी इस यात्रा में आप द्वारिका भी अवश्य गये होंगे, कृपा करके हमारे आराध्य श्रीकृष्णचन्द्र का हाल चाल भी बताइये।"
अजातशत्रु युधिष्ठिर के इन वचनों को सुन कर विदुर जी ने उन्हें सभी तीर्थों का वर्णन सुनाया, किन्तु यदुवंश के विनाश का वर्णन को न कहना ही उचित समझा। वे जानते थे कि यदुवंश के विनाश का वर्णन सुन कर युधिष्ठिर को अत्यन्त क्लेश होगा और वे पाण्डवों को दुखी नहीं देख सकते थे। कुछ दिनों तक विदुर जी प्रसन्नता पूर्वक हस्तिनापुर में रहे।
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