"फ्रांसिस ज़ेवियर": अवतरणों में अंतर
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'''फ्रांसिस ज़ेवियर''' का जन्म [[७ अप्रैल|7 अप्रैल]], [[1506]] ई. को [[स्पेन]] में हुआ था। [[पुर्तगाल]] के राजा जॉन तृतीय तथा [[पोप]] की सहायता से वे जेसुइट मिशनरी बनाकर 7 अप्रैल 1541 ई को भारत भेजे गए और 6 मार्च 1542 ई. को [[गोवा]] पहुँचे जो पुर्तगाल के राजा के अधिकार में था।
गोवा में जापान से वे 1552 ई. में गोवा लौटे और कुछ समय के उपरांत [[चीन]] पहुँचे। वहाँ दक्षिणी पूर्वी भाग के एक द्वीप में जो [[मकाउ|मकाओ]] के समीप है बुखार के कारण उनकी मृत्यु हो गई। मिशनरी समाज उनको काफी महत्व का स्थान देता और उन्हें आदर तथा सम्मान का पात्र समझता, है क्योंकि वे भक्तिभावपूर्ण और धार्मिक प्रवृत्ति के मनुष्य थे। वे सच्चे मिशनरी थे। उन्हें मूर्ति पूजा से बहुत नफरत थी। संत जेवियर ने केवल दस वर्ष के अल्प मिशनरी समय में 52 भिन्न भिन्न राज्यों में [[यीशु|यीशु मसीह]] का प्रचार किया। कहा जाता है, उन्होंने नौ हजार मील के क्षेत्र में घूम घूमकर प्रचार किया और लाखों लोगों को यीशु मसीह का शिष्य बनाया।
फ्रांसिस जेवियर ने पोर्टुगल के तत्कालीन राजा को पत्र लिखकर गोवा में [[द कोर्ट ऑफ इनक्विजिशन]] की स्थापना करने को कहा जिसमें धर्मान्तरीत हुए हिंदुओं के द्वारा मूर्ति पूजा करने और अन्य आरोपों पर सुनवाई की जाती थी । और तरह-तरह की सजा दी जाती थी ।
संत फ्रांसिस जेवियर के लिखे गए एक और पत्र के अनुसार जिसमें उन्होंने कहा था की जब वही लोग जो उन मूर्तियों को पूजा करते थे उनके ही हाथों जब मैं उन मूर्तियों को टूटता देखता हूं और उन मंदिरों को ढहाया जाता देखता हूं तो उससे ज्यादा खुशी मुझे किसी और चीज में नहीं मिलती ।
आज भी उनके नश्वर देह को सुरक्षित रखा गया है जिसे हर 10 साल में एक बार उसे श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए रखा जाता है
संत फ्रांसिस जेवियर के जीवन की घटनाओं का सबसे अच्छा विवरण फ्रेंच लेखक [[गैब्रियल डेलन]] की किताब [[रिलेशन दे इनक्विजिशन दे गोवा]] मे मिलता है।
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