"राजपुताना": अवतरणों में अंतर
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दिल्ली सल्तनत की सत्ता स्वीकार करने के बाद भी मुसलमानों की यह प्रभुसत्ता राजपूत शासकों को सदेव खटकती रही और जब कभी दिल्ली सल्तनत में दुर्बलता के लक्षण दृष्टिगत होते, वे अधीनता से मुक्त होने को प्रयत्नशील हो उठते। 1520 ई. में [[बाबर]] के नेतृत्व में मुग़लों के आक्रमण के समय राजपूताना दिल्ली के सुल्तानों के प्रभाव से मुक्त हो चला था और मेवाड़ के राणा [[राणा साँगा|संग्राम सिंह]] ने बाबर के दिल्ली पर अधिकार का विरोध किया। बयाना के युद्ध फरवरी 1527ई में [[राणा संगा]] ने बाबर को धूल चटाया 1527ई. में खानवा के युद्ध में बाबर ने विश्वासघात किया इधर राजपूताने की तलवार लड़ रही थी उधर बाबर ने तोपों का इस्तेमाल किया। इस युद्ध में तोपों से तलवारे लड़ी थी, शुरू में राणा की पकड़ बनी रही युद्ध पर बाद में एक तीर आकर राणा के सर पर लगा जिससे वो मूर्छित हो गए और राणा की पराजय हुई और [[मुग़ल|मुग़लों]] ने दिल्ली के सुल्तानों का राजपूताने पर नाममात्र को बचा प्रभुत्व फिर से स्थापित कर लिया।
==== मुग़लों
{{मुख्य|मुग़ल}}
इस पराजय के बाद भी राजपूतों का विरोध शान्त न हुआ क्षत्रिय जातियों में फूट और परस्पर युद्धों के फलस्वरूप वे शक्तहीन हो गए। यद्यपि इनमें से अधिकांश ने बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में मुसलमान आक्रमणकारियों का वीरतापूर्वक सामना किया,
इस पराजय के बाद भी राजपूतों का विरोध शान्त न हुआ। [[अकबर]] की राजनीति का प्रभाव इन पर अवश्य पड़ा और मेवाड़ के अतिरिक्त अन्य सभी राजपूत शासक मुग़लों की पराधीनता स्वीकार कर ली। [[औरंगज़ेब]] के सिंहासनारूढ़ होने तक राजपूताना पराधीन रहा। परन्तु औरंगज़ेब की धार्मिक असहिष्णुता की नीति के कारण दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। जिसमे [[दुर्गादास राठौड़]] व [[महाराणा राज सिंह]] ने [[औरंगजेब]] को लोहे के चने चबवा दिए। बाद में एक समझौते के फलस्वरूप राजपूताने में शान्ति स्थापित हुई।▼
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==== अंग्रेज़ों का मुकाबला ====
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