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}}</ref> ''[[न्यू यॉर्क टाइम्स]]'' के प्रभावशाली आलोचक बॉज़्ली क्राउथर ने भी ''पथेर पांचाली'' के बारे में बहुत बुरी समीक्षा लिखी। इसके बावजूद यह फ़िल्म अमरीका में बहुत समय तक चली।
 
राय की अगली फ़िल्म ''अपराजितो'' की सफलता के बाद इनका अन्तरराष्ट्रीय कैरियर पूरे जोर-शोर से शुरु हो गया। इस फ़िल्म में एक नवयुवक (अपु) और उसकी माँ की आकांक्षाओं के बीच अक्सर होने वाले खिंचाव को दिखाया गया है। [[मृणाल सेन]] और [[ऋत्विक घटक]] सहित कई आलोचक इसे पहली फ़िल्म से बेहतर मानते हैं। ''अपराजितो'' को [[वेनिस फ़िल्मोत्सव]] में स्वर्ण सिंह (Golden Lion) से पुरस्कृत किया गया। अपु त्रयी पूरी करने से पहले राय ने दो और फ़िल्में बनाईं — हास्यप्रद ''पारश पत्थर'' और [[ज़मींदार|ज़मींदारों]] के पतन पर आधारित ''[[जलसाघर]]''। ''जलसाघर'' को इनकी सबसे महत्त्वपूर्ण कृतियों में गिना जाता है।<ref name="malcolm1">{{cite web | author=मैल्कम डी. | publisher=गार्डियन.को.यूके | url=http://film.guardian.co.uk/Century_Of_Films/Story/0, 36064,00.html | title=Satyajit Ray: The Music Room | access-date=[[१९ जून]] [[२००६]] }}{{Dead link|date=सितंबर 2021 |bot=InternetArchiveBot }}</ref>
| author = मैल्कम डी.
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}}</ref>
 
''अपराजितो'' बनाते हुए राय ने त्रयी बनाने का विचार नहीं किया था, लेकिन [[वेनिस]] में उठे एक प्रश्न के बाद उन्हें यह विचार अच्छा लगा।<ref>{{Harvnb|वुड|१९७२|p=६१}}</ref> इस शृंखला की अन्तिम कड़ी ''अपुर संसार'' [[१९५९]] में बनी। राय ने इस फ़िल्म में दो नए अभिनेताओं, [[सौमित्र चटर्जी]] और [[शर्मिला टैगोर]], को मौका दिया। इस फ़िल्म में अपु कोलकाता के एक साधारण मकान में गरीबी में रहता है और अपर्णा के साथ विवाह कर लेता है, जिसके बाद इन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पिछली दो फ़िल्मों की तरह ही कुछ आलोचक इसे त्रयी की सबसे बढ़िया फ़िल्म मानते हैं (राबिन वुड और [[अपर्णा सेन]])।<ref>{{Harvnb|वुड|१९७२}}</ref> जब एक बंगाली आलोचक ने अपुर संसार की कठोर आलोचना की तो राय ने इसके प्रत्युत्तर में एक लम्बा लेख लिखा।<ref>राय ने {{Harvnb|राय|१९९३|p=१३}} में इसका वर्णन किया है।</ref>