"पारिजात वृक्ष (किन्तूर)": अवतरणों में अंतर

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क्या परिजात और हरश्रृंगार एक ही पेड़ है! आयुर्वेद में इसका क्या उपयोग है...दुनिया में सबसे पुराना वृक्ष किस जगह है। जाने रोचक बातें।
 
परिजात का दूसरा नाम हरश्रृंगार भी बहुत प्रसिद्ध है।
अमृतमपत्रिका, ग्वालियर, मप्र की खोज-शोध!
ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
सृष्टि में शिव सहित सभी महान महर्षियों को माथा झुकाकर नमन कर धन्यवाद देना जरूरी है। सर्वप्रथम प्रकृति के चमत्कार को प्रणाम करना चाहिए। पृथ्वी ने हमें अजीबोगरीब पुष्प-फल, पेड़ प्रदान किये। सृष्टि में परिजात से ऊंची जातवकिसी भी वृक्ष की नहीं है। परिजात बिना जात-पात देखे, सबका कल्याण करता है।
 
 
रात में यह पेड़ पुष्परहित रहता है और सुबह सूर्योदय होते ही अपने पुष्प खिलाता है। जैसे-जैसे इस पेड़ पर सूर्य की किरणें पड़ती है, तब फूल नीचे जमीन पर गिरने लगते हैं।
जैन धर्म में परिजात पुष्प से भगवान का श्रगार करते हैं। इसके फूल सुखाकर मिश्री, कालीमिर्च, मुलेठी के साथ मिलकर परिजात का चूर्ण अनेक वात रोग ठीक करता है। यह चूर्ण ग्रन्थिशोथ यानि थायराइड में विशेष हितकारी है।
परिजात शब्द का अर्थ भी जाने…
पर्यावरण परिवार में इस जाति का अन्य कोई वृक्ष इस धरती पर उपलब्ध नहीं हैं। कल्पवृक्ष, कल्पलता, कल्पद्रुम, कायाकल्प, कल्पतरु, देववृक्ष, हरश्रृंगार आदि इसके अर्थ हैं।
परिजात को प्रणाम— परिजात एक दिव्य वृक्ष है, जो सभी धर्म के देवी-देवताओं को प्रिय है। रात के समय इस वृक्ष को देखने एवं छूने से शरीर के सब रोग मिट जाते हैं। सुबह सूर्योदय के समय इस वृक्ष की जड़ में एक लौटा पानी डालने से मानसिक क्लेश, परेशानी दूर होती हैं। घर में परिजात का पौधा लगाएं, तो धन की कड़की दूर होती है।
अभी कुछ समय पहले परिजात का पौधा मोदीजी ने राममंदिर, अयोध्या में रोपित क्यों किया, जबकि अन्य वृक्ष भी थे?
 
परिजात को प्रणाम—
परिजात एक दिव्य वृक्ष है, जो सभी धर्म के देवी-देवताओं को प्रिय है। रात के समय इस वृक्ष को देखने से अनुभव होता है कि मानो यह रो रहा है और सूरज की रोशनी में खिलखिला उठता है।
ऐसा बताते हैं कि परिजात वृक्ष पांडव की मां कुंती के नाम पर रखा गया। यह पूर्व जन्म में परिजात नाम की राजकुमारी थी।
बाराबंकी जिले से लगभग 38 किलोमीटर पूर्वी दिशा में किन्तूर गांव, है। कभी जरूर जाएं। वृक्षायुर्वेद ग्रन्थ के अनुसार सृष्टि में परिजात पुष्प व पेड़ से सिद्ध-पवित्र कोई दूसरा नहीं है।
 
प्रकृति का श्रृंगार-हरश्रृंगार—
धार्मिक और प्राचीन साहित्य में, हमें कल्पवृक्ष के कई संदर्भ मिलते हैं, लेकिन केवल किन्तुर (बाराबंकी) को छोड़कर इसके अस्तित्व के प्रमाण का विवरण विश्व में कहीं और नहीं मिलता।
गाँव के स्थानीय लोग इसे बहुत उच्च सम्मान देते हैं, इस के अलावा बड़ी संख्या में पर्यटक इस अद्वितीय वृक्ष को देखने के लिए आते हैं।
इस स्थान के नजदीक कुन्ती द्वारा खोजा गया स्वयम्भू शिवलिंग कुंतेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। यह प्राचीन शिव मंदिर और उनके अवशेष हैं। यहां पांडवों की माँ कुंती द्वारा स्थापित शिवालय के पास, एक विशेष पेड़ है जिसे ‘परिजात’ कहा जाता है। इस पेड़ के बारे में बहुत सी बातें प्रचलित हैं।
मान्यता है कि परिजात के इस पवित्र वृक्ष को अर्जुन स्वर्ग से लाये थे और माता कुंती इसके फूलों को शिवजी के 1008 नामों से शिवलिंग पर अर्पित कर अभिषेक करती थी। यह सत्य है कि यह वृक्ष एक बहुत प्राचीन पृष्ठभूमि से है।
हरिवंशपुराण के अनुसार भगवान कृष्ण अपनी प्यारी रानी सत्यभामा के लिए इस वृक्ष को लाये थे। सम्पूर्ण संसार में किन्तूर के इस अनोखे परिजात वृक्ष का विश्व में विशेष स्थान है।
हरिवंश पुराण के अनुसार परिजात एक प्रकार का कल्पवृक्ष है, कहा जाता है कि यह केवल स्वर्ग में होता है। जो कोई इस पेड़ के नीचे बैठकर गुरुमन्त्र या महामृत्युंजय मंत्र का 27 मेला जाप करता है, वह मनुष्य सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
सन्तान की प्राप्ति—
यदि कोई निःसन्तान दम्पत्ति पुत्र की मनोकामना करता है, वह जरूर पूरी होती है।
वनस्पति विज्ञान के संदर्भ में, परिजात को ‘ऐडानसोनिया डिजिटाटा’ के नाम से जाना जाता है, तथा इसे एक विशेष श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि यह अपने फल या उसके बीज का उत्पादन नहीं करता है, और न ही इसकी शाखा की कलम से एक दूसरा परिजात वृक्ष पुन: उत्पन्न किया जा सकता है।
भावप्रकाश निघण्टु शास्त्र
के अनुसार यह एक यूनिसेक्स पुरुष वृक्ष है, और ऐसा कोई पेड़ और कहीं नहीं मिला है।
निचले हिस्से में इस वृक्ष की पत्तियां, हाथ की उंगलियों की तरह पांच युक्तियां वाली हैं, जबकि वृक्ष के ऊपरी हिस्से पर यह सात युक्तियां वाली होती हैंं। इसका फूल बहुत खूबसूरत और सफेद रंग का बीच में केशर की बिंदी सहित होता है, और सूखने पर सोने के रंग का हो जाता है।
इसके फूल में पांच पंखुड़ी हैं। इस पेड़ पर बेहद कम बार बहुत कम संख्या में केवल अगस्त-सितम्बर माह में फूल खिलता है। पितृदोष की शांति के लिए इसे शिवलिंग पर चढ़ाने का विधान स्कंदपुराण में विस्तार से बताया है।
परिजात की सुगंध दूर-दूर तक फैलती है। इस पेड़ की आयु 500 से 1000 से वर्ष तक की बताये हैं।
परिजात पेड़ के तने की परिधि लगभग 20 फीट और ऊंचाई लगभग 40 फीट तक हो सकती है। हरश्रृंगार वृक्ष की शाखाएं टूटती या सूखती नहीं, किंतु वह मूल तने में सिकुड़ती है और गायब हो जाती हैं।
जानकार प्रकृति प्रेमी लोग इसे अपना संरक्षक और इसका ऋणी मानते हैं। अतः वे इसकी पत्तियों और फूलों की हर कीमत पर रक्षा करते हैं। परिजात के पत्ते का काढ़ा वातरोग, थायराइड, मधुमेह, त्वचारोगों को दूर करने में चमत्कारिक है।
यह सारे भारत में पैदा होता है। कहते हैं कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है।
हरिवंशपुराण के अनुसार स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी परिजात के वृक्ष को छूकर ही अपनी थकान मिटाती थी।
हिन्दू धर्म में इस वृक्ष को बहुत ही ख़ास सम्मान और स्थान प्राप्त है।
पारिजात को हरश्रृंगार भी कहा जाता है। इसका वृक्ष बड़ा ही सुन्दर होता है। परिजात के पत्ते दोनों तरफ से खरखरे होते हैं।
हरश्रृंगार वृक्ष पर आकर्षक व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग विविध प्रकार की औषधि आदि के रूप में भी किया जाता है।
धार्मिक मान्यता:-
धन की देवी महालक्ष्मी को पारिजात के पुष्प सर्वाधिक प्रिय हैं। जैन धर्म के लोग माँ पद्मावती को यह पुष्प अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने में भी पारिजात वृक्ष का उपयोग किया जाता है।
श्रीमद देवी भगवत पुराण के अनुसार 12 -बारह मंगलवार माँ दुर्गाजी के 108 बार नाम लेकर 1-1 पुष्प अर्पित करने से गरीबी हमेशा के लिए मिट जाती है।
पारिजात या ‘हरसिंगार’ उन प्रमुख वृक्षों में से एक है, जिसके फूल ईश्वर की आराधना एवं शिवपूजन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
परिजात फूल की विशेषता है कि इस पर सूर्य की किरणें पड़ते ही जमीन पर गिर जाते हैं।
इसलिए पूजा के लिए इस्तेमाल करना हो, तो सुबह सूर्योदय से पहले तोड़ना शुभकारी होता है।
हरश्रृंगार के अन्य नाम:-
प्राजक्ता, परिजात, हरसिंगार, शेफालिका, शेफाली, शिउली भी कहा जाता है। उर्दू में इसे गुलज़ाफ़री कहा जाता है।
परिजात की प्रेम कहानी…
एक प्राचीन धर्मकथा के अनुसार परिजात नामक एक सूर्यभक्त राजकुमारी, जो भगवान सूर्य देव से एकतरफा प्रेम करने लगी थी। अथक प्रयास और तप के बावजूद जब सूर्यदेव ने परिजात का प्यार…. स्वीकार नहीं किया, तब क्रोध में आकर परिजात ने आत्महत्या कर ली।
मृत्यु उपरान्त जिस स्थान पर राजकुमारी परिजात का दाह संस्कार कर समाधि बनाई गई उस जगह पर यह हरश्रृंगार वृक्ष अपने आप ही उग आया और तब से इस वृक्ष का नाम परिजात पड़ गया। शायद यही कारण है कि
रात के समय इस वृक्ष को देखने से अनुभव होता है कि मानो यह रो रहा है और सूरज की रोशनी में खिलखिला उठता है।
अमृतम ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट में परिजात यानि हरश्रृंगार के पत्तो का काढ़ा और पुष्प मिलाया जाता है।
ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट 88 तरह के वातरोगों एवं थायराइड को जड़ से मिटाने में सक्षम आयुर्वेदिक औषधि है।
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[[File:Parijat-tree-at-Kintoor-Barabanki-001.jpg|thumb|पारिजात वृक्ष (किन्तूर]]
[[File:Parijat-tree-at-Kintoor-Barabanki-002.jpg|thumb|पारिजात वृक्ष (किन्तूर)]]