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[[File:Statue of Gurjar Samraat Mihir Bhoj Mahaan in Bharat Upvan ofAkshardham Mandir New Delhi.jpg|thumb|हिन्दू सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार ]]
'''मिहिर भोज गुर्जरप्रतिहार''' अथवा '''मिहिर भोज''' अथवा '''भोज प्रथम''' [[गुर्जर प्रतिहार''']] राजवंश के राजा थे। इन्होंने ४९ वर्ष तक राज्य किया था। इनका साम्राज्य अत्यन्त विशाल था। मिहिर भोज [[विष्णु]] भगवान के भक्त थें तथा कुछ सिक्कों में इन्हे 'आदि वराह' भी माना गया है। सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार कन्नौज के शाशक थे, उनकी जाति गुर्जर थी |<ref>{{cite journal |last=Bhandarkar |first=D. R. |author-link=D. R. Bhandarkar, M.A., PhD |title=Indian Studies No. I: Slow Progress of Islam Power in Ancient India |journal=Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute |volume=10 |pages=34–36 |number=1/2 |year=1929 |jstor=41682407 }}</ref><ref>{{cite book|title=Medieval India: a textbook for classes XI-XII, Part 1|author=Satish Chandra, National Council of Educational Research and Training (India)|publisher=National Council of Educational Research and Training|year=1978|url=https://books.google.com/books?cd=7&id=tHVDAAAAYAAJ&dq=gurjara+pratihara+adivaraha&q=gurjara#search_anchor|page=9}}</ref><ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=sxhAtCflwOMC&pg=PA17&dq=mihir+bhoj+rajput&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjAtYyE2pDvAhXexjgGHRyWBXc4FBDoATABegQICRAD#v=onepage&q=mihir%20bhoj%20rajput&f=false|title=A Comprehensive History of Medieval India: Twelfth to the Mid-eighteenth Century|last=Ahmed|first=Farooqui Salma|date=2011|publisher=Pearson Education India|isbn=978-81-317-3202-1|language=en}}</ref>'''
<ref>{{cite book|title=The History of the Gurjara-Prathihara
|author=Braj Nath Puri
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==राज्यकाल==
मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 49 साल तक राज किया। मिहिरभोज के साम्राज्य का विस्तार आज के [[मुल्तान|मुलतान]] से [[पश्चिम बंगाल]] तक और [[कश्मीर]] से [[कर्नाटक]] तक फैला हुआ था। ये धर्म रक्षक सम्राट शिव के परम भक्त थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिर भोज गुर्जरप्रतिहार के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। ५० वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। अरब यात्री सुलेमान ने भारत भ्रमण के दौरान लिखी पुस्तक सिलसिलीउत तवारीख 851 ईस्वीं में सम्राट मिहिरभोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया है, साथ ही मिहिरभोज की महान सेना की तारीफ भी की है, साथ ही मिहिर भोज गुर्जर के राज्य की सीमाएं दक्षिण में राजकूटों के राज्य, पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती हुई बतायी है। प्रतिहार यानी रक्षक या द्वारपाल से है।<ref name="RSC_207">{{cite book
| title =History of Ancient India: Earliest Times to 1000 A. D.
| author = Radhey Shyam Chaurasia
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915 ईस्वीं में भारत आए बगदाद के इतिहासकार अल-मसूदी ने अपनी किताब मरूजुल जुहाब मेें भी मिहिर भोज की 36 लाख सेनिको की पराक्रमी सेना के बारे में लिखा है। इनकी राजशाही का निशान “वराह” था और मुस्लिम आक्रमणकारियों के मन में इतनी भय थी कि वे वराह यानि [[सूअर]] से नफरत करते थे। मिहिर भोज की सेना में सभी वर्ग एवं जातियों के लोगो ने राष्ट्र की रक्षा के लिए हथियार उठाये और इस्लामिक आक्रान्ताओं से लड़ाईयाँ लड़ी। मुस्लिम आक्रमणकारी मिहिर भोज के केवल नाम लेने मात्र से थर-थर कांपा करते थे |
 
मिहिर भोज गुर्जर के मित्र काबुल का ललिया शाही राजा कश्मीर का उत्पल वंशी राजा अवन्ति वर्मन तथा नैपाल का राजा राघवदेव और आसाम के राजा थे। सम्राट मिहिरभोज के उस समय शत्रु, पालवंशी राजा [[देवपाल]], दक्षिण का राष्ट्र कटू महाराज आमोधवर्ष और अरब के खलीफा मौतसिम वासिक, मुत्वक्कल, मुन्तशिर, मौतमिदादी थे। अरब के खलीफा ने इमरान बिन मूसा को सिन्ध के उस इलाके पर शासक नियुक्त किया था। जिस पर अरबों का अधिकार रह गया था। सम्राट मिहिर भोज ने बंगाल के राजा देवपाल के पुत्र नारायणलाल को युद्ध में परास्त करके उत्तरी बंगाल को अपने क्षत्रिय साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। दक्षिण के राष्ट्र कूट राजा अमोधवर्ष को पराजित करके उनके क्षेत्र अपने साम्राज्य में मिला लिये थे। सिन्ध के अरब शासक इमरान बिन मूसा को पूरी तरह पराजित करके समस्त सिन्ध प्रतिहार साम्राज्य का अभिन्न अंग बना लिया था। केवल मंसूरा और मुलतान दो स्थान अरबों के पास सिन्ध में इसलिए रह गए थे कि अरबों ने '''क्षत्रिय सम्राट मिहिर भोज गुर्जरप्रतिहार''' के तूफानी भयंकर आक्रमणों से बचने के लिए अनमहफूज नामक गुफाए बनवाई हुई थी जिनमें छिप कर अरब अपनी जान बचाते थे।
 
सम्राट मिहिर भोज नही चाहते थे कि अरब इन दो स्थानों पर भी सुरक्षित रहें और आगे संकट का कारण बने, इसलिए उसने कई बड़े सैनिक अभियान भेज कर इमरान बिन मूसा के अनमहफूज नामक जगह को जीत कर अपने प्रतिहार साम्राज्य की पश्चिमी सीमाएं [[सिन्धु नदी|सिन्ध नदी]] से सैंकड़ों मील पश्चिम तक पहुंचा दी, और इसी प्रकार भारत को अगली शताब्दियों तक अरबों के बर्बर, धर्मान्ध तथा अत्याचारी आक्रमणों से सुरक्षित कर दिया था। इस तरह सम्राट मिहिरभोज के राज्य की सीमाएं [[काबुल]] से [[राँची]] व [[असम]] तक, [[हिमालय]] से [[नर्मदा नदी]] व [[आन्ध्र प्रदेश|आन्ध्र]] तक, [[काठियावाड़]] से [[बंगाल]] तक, सुदृढ़ तथा सुरक्षित थी।<ref name="ज़ी हिंदुस्तान वेब टीम">{{Cite web|date=May 12, 2020|title= हिन्दू सम्राट मिहिर भोज की गौरवशाली दास्तान, इस्लामी आक्रांताओं को नहीं रखने दिया भारत में कदम|url=https://zeenews.india.com/hindi/zee-hindustan/pride-of-india/great-emperor-of-india-mihir-bhoja-whose-fear-of-the-army-of-millions-the-muslim-invaders-did-not-set-foot-in-india/649376}}</ref>
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# [[गुर्जर प्रतिहार राजवंश#cite%20ref-3|↑]] P C Bagchi, India and Central Asia, Calcutta, 1965
# [[गुर्जर प्रतिहार राजवंश#cite%20ref-4|↑]] K. M. Munshi, The Glory That Was Gurjara Desha (A.D. 550-1300), Bombay, 1955
# [[गुर्जर प्रतिहार राजवंश#cite%20ref-5|↑]] V. A. Smith, The Pratihars of Rajputana and Kanauj, Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland, (Jan., 1909), pp.53-75
# [[गुर्जर प्रतिहार राजवंश#cite%20ref-6|↑]] V A Smith, The Oford History of India, IV Edition, Delhi, 1990
# [[गुर्जर प्रतिहार राजवंश#cite%20ref-7|↑]] एपिक इण्डिया खण्ड १२, पेज १९७ से