"पितृपक्ष": अवतरणों में अंतर

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'''पितृ पक्ष''' या '''पितरपख''', १६ दिन की वह अवधि (पक्ष/पख) है जिसमें [[हिन्दू]] लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये [[पिण्ड]]दान करते हैं। इसे 'सोलह श्राद्ध', 'महालय पक्ष', 'अपर पक्ष' आदि नामों से भी जाना जाता है।<ref name = sharma>{{cite book|last=शर्मा|first=उषा|title=Festivals In Indian Society|trans-title=भारतीय समाज में उत्सव|publisher=मित्तल पब्लिकेशन्स|year=2008|volume=2|chapter=Mahalaya (महालय)|url=https://books.google.com/books?id=Z6OYRUEAF7oC&pg=PA72&dq=pitru+paksha&q=pitru%20paksha|pages=72–73|isbn=978-81-8324-113-7|language=अंग्रेज़ी|access-date=15 सितंबर 2017|archive-url=https://web.archive.org/web/20161222015451/https://books.google.com/books?id=Z6OYRUEAF7oC&pg=PA72&dq=pitru+paksha&q=pitru%20paksha|archive-date=22 दिसंबर 2016|url-status=live}}</ref> गीता जी के अध्याय ९ श्लोक २५ के अनुसार पितर पूजने वाले पितरों को, देेव पूजने वाले देवताओं को और परमात्मा को पूजने वाले परमात्मा को प्राप्त होते हैं।<ref name=":0">{{Cite web|url=https://news.jagatgururampalji.org/truth-behind-shradh/|title=श्राद्ध की सच्चाई|website=SA News Channel|language=en-US|access-date=2021-09-11}}</ref>अर्थात् मनुष्य को उसी की पूजा करने के लिए कहा है जिसे पाना चाहता है अर्थात समझदार इशारा समझ सकता है कि परमात्मा को पाना ही श्रेष्ठ है। अतः अन्य पूजाएं (देवी-देवता और पितरों की) छोड़ कर सिर्फ परमात्मा की पूजा करें।<ref name=":0" /><ref name=":1">{{Cite web|url=https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/geeta-gyan/death-and-salvation-in-bhagwat-geeta-by-surakshat-goswami-30-48133/|title=भगवान कृष्ण ने बताया मरने के बाद इस तरह मुझे कर सकते हैं प्राप्त|last=नवभारतटाइम्स.कॉम -|first=Parag Sharma {{!}}|website=नवभारत टाइम्स|access-date=2021-09-11}}</ref>
 
पूर्वज पूजा की प्रथा विश्व के अन्य देशों की भाँति बहुत प्राचीन है। यह प्रथा यहाँ वैदिक काल से प्रचलित रही है।<ref name=":1" /> विभिन्न देवी देवताओं को संबोधित वैदिक ऋचाओं में से अनेक पितरों तथा मृत्यु की प्रशस्ति में गाई गई हैं। पितरों का आह्वान किया जाता है कि वे पूजकों (वंशजों) को धन, समृद्धि एवं शक्ति प्रदान करें। पितरों को आराधना में लिखी ऋग्वेद की एक लंबी ऋचा (१०.१४.१) में यम तथा वरुण का भी उल्लेख मिलता है। पितरों का विभाजन वर, अवर और मध्यम वर्गों में किया गया है (कृ. १०.१५.१ एवं यजु. सं. १९४२)। संभवत: इस वर्गीकरण का आधार मृत्युक्रम में पितृविशेष का स्थान रहा होगा। ऋग्वेद (१०.१५) के द्वितीय छंद में स्पष्ट उल्लेख है कि सर्वप्रथम और अंतिम दिवंगत पितृ तथा अंतरिक्षवासी पितृ श्रद्धेय हैं। सायण के टीकानुसार श्रोत संस्कार संपन्न करने वाले पितर प्रथम श्रेणी में, स्मृति आदेशों का पालन करने वाले पितर द्वितीय श्रेणी में और इनसे भिन्न कर्म करने वाले पितर अंतिम श्रेणी में रखे जाने चाहिए।
 
ऐसे तीन विभिन्न लोकों अथवा कार्यक्षेत्रों का विवरण प्राप्त होता है जिनसे होकर मृतात्मा की यात्रा पूर्ण होती है। ऋग्वेद (१०.१६) में अग्नि से अनुनय है कि वह मृतकों को पितृलोक तक पहुँचाने में सहायक हो। अग्नि से ही प्रार्थना की जाती है कि वह वंशजों के दान पितृगणों तक पहुँचाकर मृतात्मा को भीषण रूप में भटकने से रक्षा करें। ऐतरेय ब्राह्मण में अग्नि का उल्लेख उस रज्जु के रूप में किया गया है जिसकी सहायता से मनुष्य स्वर्ग तक पहुँचता है। स्वर्ग के आवास में पितृ चिंतारहित हो परम शक्तिमान् एवं आनंदमय रूप धारण करते हैं। पृथ्वी पर उनके वंशज सुख समृद्धि की प्राप्ति के हेतु पिंडदान देते और पूजापाठ करते हैं। वेदों में पितरों के भयावह रूप की भी कल्पना की गई है। पितरों से प्रार्थना की गई है कि वे अपने वंशजों के निकट आएँ, उनका आसन ग्रहण करें, पूजा स्वीकार करें और उनके क्षुद्र अपराधों से अप्रसन्न न हों। उनका आह्वान व्योम में नक्षत्रों के रचयिता के रूप में किया गया है। उनके आशीर्वाद में दिन को जाज्वल्यमान और रजनी को अंधकारमय बताया है। परलोक में दो ही मार्ग हैं : देवयान और पितृयान। पितृगणों से यह भी प्रार्थना है कि देवयान से मर्त्यो की सहायता के लिये अग्रसर हों (वाज. सं. १९.४६)।