"जयशंकर प्रसाद": अवतरणों में अंतर

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== लेखन-कार्य ==
=== काव्य ===
प्रसाद की काव्यकविताएं रचनाएँ दो वर्गो में विभक्त है : काव्यपथ अनुसंधान की रचनाएँ और रससिद्ध रचनाएँ। 'चित्राधार' से लेकर 'झरना' तक प्रथम वर्ग की रचनाएँ हैं, जबकि 'आँसू', 'लहर' तथा 'कामायनी' दूसरे वर्ग की रचनाएँ हैं। उन्होंने काव्यरचना [[ब्रजभाषा]] में आरम्भ की और धीर-धीरे [[खड़ीबोली]] को अपनाते हुए इस भाँति अग्रसर हुए कि खड़ी बोली के मूर्धन्य कवियों में उनकी गणना की जाने लगी और वे युगप्रवर्तक कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए।<ref name="कोश२">सुधाकर पांडेय, हिंदी विश्वकोश, खंड-७, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-१९६६ ई॰, पृष्ठ-४९०.</ref>
 
प्रसाद जी ने जब लिखना शुरू किया उस समय भारतेन्दुयुगीन और द्विवेदीयुगीन काव्य-परंपराओं के अलावा श्रीधर पाठक की 'नयी चाल की कविताएँ भी थीं। उनके द्वारा किये गये अनुवादों 'एकान्तवासी योगी' और 'ऊजड़ग्राम' का नवशिक्षितों और पढ़े-लिखे प्रभु वर्ग में काफी मान था। प्रसाद के 'चित्राधार' में संकलित रचनाओं में इसके प्रभाव खोजे भी गये हैं और प्रमाणित भी किये जा सकते हैं।<ref>''प्रसाद का सम्पूर्ण काव्य'', संपादन एवं भूमिका- डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय संस्करण-२००८, पृष्ठ-१३.</ref> उपलब्ध स्रोतों के आधार पर प्रसाद जी की पहली रचना १९०१ ई॰ में लिखा गया एक सवैया छंद है, लेकिन उनकी प्रथम प्रकाशित कविता दूसरी है, जिसका प्रकाशन जुलाई १९०६ में 'भारतेन्दु' में हुआ था।<ref>''जयशंकर प्रसाद ग्रन्थावली'', भाग-१, संपादक- ओमप्रकाश सिंह, प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-२०१४, पृष्ठ-xxxix.</ref>
 
अल्पवयस्अल्पवय में ही स्वाभाविक रूप से प्रसाद जी साहित्य के गहन अध्येता बन चुके थे। इसका प्रमाण उनकी रचनाओं से मिलता है। १९०९ ई॰ में 'इन्दु' में प्रकाशित 'प्रेम-पथिक' शीर्षक कविता तथा १९१० ई॰ में 'इन्दु' में ही प्रकाशित<ref>डॉ॰ प्रेमशंकर, ''प्रसाद का काव्य'', राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-1998, पृष्ठ-60-61.</ref> 'कवि और कविता' शीर्षक निबंध इसका प्रमाण है। 'प्रेम-पथिक' का प्रथम प्रकाशन ब्रजभाषा में हुआ था। बाद में इसका परिमार्जित और परिवर्धित संस्करण खड़ी बोली में नवंबर १९१४ में 'प्रेम-पथ' नाम से और उसका अवशिष्ट अंश दिसंबर १९१४ में 'चमेली' शीर्षक से प्रकाशित हुआ।<ref name="मिश्र">''प्रसाद का सम्पूर्ण काव्य'', संपादन एवं भूमिका- डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय संस्करण-२००८, पृष्ठ-२०.</ref> बाद में एकत्रित रूप से यह कविता 'प्रेम-पथिक' नाम से प्रसिद्ध हुई।
 
डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र के अनुसार : {{quote|" 'प्रेम-पथिक' का महत्त्व प्रसाद की व्यापक और उदार दृष्टि, सर्वभूत हित कामना, समता की इच्छा, प्रतिपद कल्याण करने का संकल्प, प्रकृति की गोद में सुख का स्वप्न आदि के '''बीजभाव''' के कारण तो है ही, प्रसाद ने प्रेम के अनुभूतिपरक अनेक रूपों का जो वर्णन किया है उसके कारण भी है।"<ref name="मिश्र२">''प्रसाद का सम्पूर्ण काव्य'', संपादन एवं भूमिका- डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय संस्करण-२००८, पृष्ठ-२३.</ref>}}