अमृतम पत्रिका, GWALIOR से साभार....
अपस्मार किसे कहते हैं?...
अपस्मार पूर्णतः मानसिक रोग-विकार है।
उग्र अपस्मार तथा साधारण अपस्मार यह दो तरह का होता है। कहीं-कहीं अधिक दूषित दवाओं या अधिक गर्म अथवा अंग्रेजी दवाओं के कारण यह शिशुओं में भी पाया जाता है।
अपस्मार को कुछ आधुनिक चिकित्सक मिर्गी रोग भी बताते हैं।
अपस्मार के बहार भेद महर्षि चरक ने बताएं हैं-
【1】वातज
【2】पित्तज
【3】कफज
【4】सन्निपातज
इस अपस्मार शब्द में स्मृति का उल्लेख है और इस रोग में स्मरण शक्ति का सर्वथा लोप हो जाता है।
अपगता स्मृति:यस्मिन रोज स: अपस्मार।
अर्थात आप अर्थ नमश होना होता है। तथा स्मार स्मृति को कहते हैं। इन दो शब्दों से इसका नामकरण हुआ।
अपस्मार रोग में मन तथा बुद्धि के विकृत हो जाने से नेत्रों के सामने अंधकार हो जाना, फंगस आना, कम दिखना, शरीर में कम्पन्न, मुख से फें निकलना, वीभत्स चेष्टा में आदि अपस्मार की स्वरूप वाचक है।
5000 वर्ष प्राचीन चरक सहिंता के मानसिक चिकित्सा अध्याय ९:८६, ८४ में कुछ श्लोकों का वर्णन है-
कामशोक भय क्रोधहर्षेष्:र्था लोभसन्मवान!
परस्पर प्रतिद्वंद्दैरेभिरेव शमं नयेत् !!
चरक चिकित्सा: ९-८६
देह दु:खभयेभ्योहिप र प्राणभयं स्मृतम्।
तेन याति शमं तस्य सर्वतो विप्लुतं मन:।।
चरक चिकित्सा:-८४
अपस्मार रोग चिन्तया, शोक, काम-क्रोध, द्वेष-दुर्भावना, जलन-कुढ़न, बुराई, अधिक बोलने-बक बक करने तथा उद्वेग आदि भावों की उपस्थिति तथा मनुष्य द्वारा अपवित्र भोजन से, स्नान के पहले अन्न ग्रहण
इत्यादि ऐसी स्थितियों के दुष्परिणाम स्वरूप अपस्मार रोग उत्पन्न हो जाता है।
करने के कारण धमनी यानि मनोवाही स्त्रोत में प्रसृत दोष ह्रदय को पीड़ित करते हैं, जिससे ज्ञानशून्यता उत्पन्न हो जाती है। इसके दुष्प्रभाव के चलते अनुपस्थित रूपों को देखना, बुरा सोचना, नकारात्मक विचार, चलते समय गजीर जाना, जिव्हा-नेत्र-भ्रू में स्फुरण, मुख से लालास्त्राव तथा हाथ-,पैर इधर-उधर फेंकना आदि पागलपन के लक्षण पैदा हो जाते है।
इस रोग का साम्य इपिलेप्सी से करते हैं। यह ऐसी स्थिति है, जिसमें मस्तिष्क के उच्च केंद्रों के कार्य में सहसा विकृति उत्पन्न हो जाती है, जिसका प्रदर्शन वेगों या पागलपन के दौरों के स्वरूप में हुआ करता है।
कभी-कभी मस्तिष्क तन्त्र एवं शरीर के अन्य अंगों में अपक्रान्ति भी हो जाती है।
अपस्मार रोग के कारण प्रमुख हैं....
कुलज, प्रवृत्ति आयु अर्थात ७५ फीसदी युवावस्था में आक्रमण वयः भी नवयुवतियों में अधिक होता है। मस्तिष्क पर आघात, मानसिक व शारीरिक स्थितियों में अव्यवस्था यानि तालमेल का अभाव, बुद्धि के विविध विकार, शरीर गत एवं बाहरी विष, पुरानी एलर्जी, पाचनसंस्थानिय व्याधि, प्रदूषण, जलवायु (अति उष्णता तथा वायु प्रवाह में अवरोध) और प्रत्यावर्तक अवस्थायें जैसे-, दंतोदभेद, आंतो में कीड़े, कर्ण-नासा, शल्य आदि में बीमारियों का होना।
चरक चिकित्सा सूत्र के अनुसार वमन, नस्य, विरेचन आदि प्राकृतिक व आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा अपस्मार का उपचार सर्वश्रेष्ठ रहता है।
आयुर्वेद में अपस्मार की चिकित्सा हेतु पंचगव्य घृत, वचादि घृत, amrutam ब्रेन की गोल्ड माल्ट, ब्रेन की गोल्ड टेबलेट, अमृतम टेबलेट, ब्राह्मी रसायन, सारस्वतारिष्ट,
डिटॉक्स की क्वाथ आदि उपयोगी हैं।
■ प्रतिदिन धूप में बैठकर अभ्यङ्ग अवश्य करें।
■ ध्यान, कसरत, परिश्रम की आदत डालें।
कुछ विचित्र बातें...
¶ दुनिया बुरे वक्त में लोग ज्ञान तो देते हैं, पर ध्यान नहीं देते।
¶ चित्त को चित्त यानी मात देना हमारी सबसे बड़ी जबाबदारी है।
¶ एकाग्रचित्त होकर हम सब कुछ पा सकते हैं।
¶ किसी भी कम से गहराई से पूरे मनोयोग से ध्यान लगाएंगे, तो उन्नति निश्चित मिलती है।
¶ पढ़ते समय कुछ भी रोचक नहीं लगता।
नियमित अध्ययन का अभ्यास करें
¶ यह वक्त भी गुजर जाएगा। यह शक्तिशाली शब्द है।
¶ जहाँ धैर्य है वही जीवन की धार है।
¶ शिरडी के साईंबाबा का मूल सूत्र है श्रद्धा और सबूरी बस इतना विचरते ही मन हल्का होने लगेगा।
¶ हमें मन पर अंकुश नहीं लगाना है, उसे खुला भी नहीं छोड़ना हैं।
¶ कई बार परिस्थितियां इसलिए भी विपरीत बनती हैं, ताकि आप कुछ जमाने को करके दिखाओ।
¶ कहते हैं-जिद्द करो, जोखिम उठाओ एवं धैर्य रखो और दुनिया बदलो।
¶ आपमें झुझारूपन, संघर्ष करने की बस ललक होनी चाहिए। आप हिले की सन्सार के गिले-शिकवे शुरू हो जाएंगे।
¶ सुबह को स्वास्थ्यवर्धक बनाएं
¶ साफ-सफाई पर ध्यान दें।
¶ नए-नए वस्त्र धारण करें।
¶ खाना स्वादिष्ट और हेल्दी हो।
¶ पखाना भी साफ हो।
इस हेतु amrutam tablet रोज रात को साढ़े जल से लेवें।
¶ मन को प्रसन्न रखने के लिए पहले अच्छा स्वस्थ्य शरीर जरूरी है। शरीर से ही सब सध जाएगा।
¶ मन कि बन्दिशें खीज पैदा करती हैं। ¶ अनिश्चितता से चिड़चिड़ापन आता है।
¶ जीवन में जोखिम उठाने से न डरें।
¶ अपने मन को में थोड़ा अमन देकर आगे बढ़ने की कोशिश करो। शायद सफलता आपका इंतजार कर रही हो।
¶ लोग आपको नमन तभी करेंगे, जब आप कुछ नया करोगे।
¶ खाली बैठने से बचें।
¶ थाली से मोह भंग करें।
¶ नाली यानी निगेटिव भरी भरी सोच को साफ करें।
¶ लड़कियों के गाल ओर लोगों की गाली पर ध्यान न दें।
¶ कुछ भी नया करें। रचनात्मक पर जोर दें।
¶ अपनी जरूरतों पर भी ध्यान दें।
¶ शरीर को रोज 20 मिनिट दीजिए।
¶ भूख से आधा खाइए।
¶ जब रक्त शरीर में तेजी से बहेगा, तो बीमारियों को भी भगा देगा।
¶ जो विचार-सोच ही हमारे अंदर का कच्चा माल अर्थात रॉ मटेरियल है।
¶ दिमाग में कुछ पाने की चाह है, तो राह निकल आती है।
¶ स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि व्यक्ति का ज्ञानी होना इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना उसकी परिकल्पना।
¶ बस, सपने ही अपने होते हैं। सपने देखने से विचारों में कुछ करने की ललक होने लगती है।
¶ देश के राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम साहब ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा है कि-सपने वे नहीं होते, जो सोने के बाद आते हैं। सपने इंसान को सोने नहीं देते।
¶ सन्सार के कुछ सिद्धान्त हैं। गीली लकड़ी को जलाना मुशिकल है। पहले उसे सुखाओ। ऐसे ही अपने अंदर के कच्चे माल को तरोताजा रखें। कोई न कोई आपकी मदद के लिए आगे आ ही जायेगा।
¶ जिद्दी आदमी ही दुनिया बदलने की क्षमता रखते हैं। समझौता वाला आज नहीं, तो कल रोता है और पता कुछ नहीं बस, खोता ही खोता है।
¶ आसान रास्ते हमें आगे नहीं बढने देते। ¶ दिमाग को तेज करने के लिए कुछ ऐसा करें, जो असहज हो, कठिन हो। मुश्किल हो।
¶ सरल मार्ग पर चलने से केवल अपस्मार, मानसिक कष्ट या डिप्रेशन उपजता है।
¶ जिद्दी लड़कियों ने कुश्ती, फुटबॉल, क्रिकेट आदि में बहुत नाम कमाया है। लेकिन इसके पीछे की दर्द भरी कहानी कम लोगों को पता है।
¶ सफलता मिलने तक रुको नहीं। केवल चलते रहो। एक दिन जब जीत मिलेगी, तो दुनिया आपसे प्रीत करने लगेगी। विजय पाने वाला ही बड़ा कहलाता है।
¶ 91 वर्ष के तेज धावक रहे मिल्खा सिंह के अनुसार फिटनेस से बड़ा इजिनेस कुछ नहीं!
कोरोना की किच-किच...
कोरोना समस्या नहीं, प्रकृति का समाधान है।
आज हाथी, हिरन, शेर ओर जंगल में रहने वाले अनेक जीवों का सफाया कर दिया। कभी जानवर भी मनुष्यों से बचने की वेक्सीन खोज रहे होंगे। जैसे आज हम कोरोना से बचने के लिए ढूंढ रहे हैं!
यह कहना है प्रसिद्ध इंजीनियर सोनम वांगचुक का!
अमृतम बुद्धि की क्वाथ....
Amrutam budhhikey kwath
एक आयुर्वेदिक औषधि है इसके मुख्य घटक द्रव्य ब्राह्मी, शंखपुष्पी, सर्पगन्धा, मालकांगनी है।बुद्धि की क्वाथ औषधि के नाम से ही ज्ञात होता है कि-यह औषधि अपस्मार आदि अनेक मस्तिष्क विकारों को दूर कर डिप्रेशन को जड़ से मिटा देती है।
यह औषधि अवसाद आदि मानसिक रोगों के लिए एक सर्वोत्तम रसायन है, जो स्मृति भ्रम, याददाश्त और दिमाग की कमजोरी, मानसिक तनाव एवं बच्चों की आवाज को सुधारने के लिए कारगर है।
मन में अमन लेन के लिए भक्त रैदास का सूत्र अपनाओ....
!!मन चंगा तो कठौती में गंगा!!
अर्थात- जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे पात्र) में भी आ जाती हैं।
आयुर्वेद और औषधि विज्ञान में कहा जाता है कि खोपड़ी के प्रत्येक ऑपरेशन के बाद मस्तिष्क पाया गया। वास्तव में यह सही है क्या? यह सोचने की बात है। वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क पा लिया होता, तो ह्रदय की तरह मस्तिष्क भी भी आरोपित या प्रत्यारोपण किया जाता। मस्तिष्क आरोपित नहीं हो सकता, यह हमें इस बात काअहसास कराता है कि - मस्तिष्क नाम की आज तक कोई इकाई विज्ञानवासियों को मिली ही नहीं।
फिर सत्य का आधार क्या है?
आधार की खोज सहज नहीं है। हम जो स्वीकारते हैं, वही सत्य बन जाता है।
हमारी नींद को आसान बना दे-एक आयुर्वेदिक औषधि...
हार्वर्ड मेडिकल स्कुल की एक शोध के अनुसार कोरोना/कोविड-19 के दौरान 37 फीसदी युवाओं को नींद न आने की समस्या यानी अनिद्रा के कारण भरी परेशानी हो रही है।
इनमें 33 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिन्हें कोरोना संक्रमण का भय बना रहा।
वहीं 29% युवाओं को नोकरी जाने का डर, पैसे की तंगी की चिंता होने से भरपूर नींद नहीं आई।
27 फीसदी युवा ऐसे भी थे, जो प्यार में धोका, ब्रेकअप या नये-नये प्यार में डूबे होने के कारण समय पर सो नहीं सके।
कुछ युवा भविष्य को लेकर तथा अकेलेपन के कारण भी परेशान रहे। यह सब अपस्मार
सभी चिंता, तनाव मिटाकर भरपूर नींद लाने के लिए आयुर्वेद में पुख्ता ओर शर्तिया कारगर इलाज है।
ब्राह्मी, शंखपुष्पी आदि।
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'''अपस्मार''' या '''मिर्गी''' (वैकल्पिक वर्तनी: मिरगी, [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेजी]]: ''Epilepsy'') एक [[तन्त्रिका तन्त्र|तंत्रिकातंत्रीय]] [[विकार]] (''न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर'') है जिसमें रोगी को बार-बार [[दौरे]] पड़ते है। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार [[दौरे]] पड़ने की समस्या हो जाती है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-81780.html मिरगी] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20150601025320/http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-81780.html |date=1 जून 2015 }}, हिन्दुस्तान लाइव, १८ नवम्बर २००९</ref> दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है। अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं। मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे भी नहीं होते। किसी की बीमारी मध्यम होती है, किसी की तेज। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है।<ref name="अपूर्व"/> इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं और शेष आधों में दौरे आते हैं, उपचार जारी रहता है। अधिकतर लोगों में भ्रम होता है कि ये रोग [[आनुवंशिकी|आनुवांशिक]] होता है पर सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही ये रोग आनुवांशिक होता है। विश्व में पाँच करोड़ लोग और [[भारत]] में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी के रोगी हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के ८-१० प्रतिशत लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पड़ने की संभावना रहती है।<ref name="विनोद">[http://hindi.webduniya.com/miscellaneous/health/disease/0901/19/1090119085_1.htm मिर्गी से डरें नहीं, उसे समझें] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20120125143548/http://hindi.webduniya.com/miscellaneous/health/disease/0901/19/1090119085_1.htm |date=25 जनवरी 2012 }}, वेब दुनिया, डॉ॰ वोनोद गुप्ता।</ref> १७ नवम्बर को विश्व भर में '''विश्व मिरगी दिवस''' का आयोजन होता है। इस दिन तरह-तरह के जागरुकता अभियान और उपचार कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।<ref name="१">[http://epaper.sakaaltimes.com/ST/ST/2008/11/17/ArticleHtmls/17_11_2008_004_002.shtml एपिलेप्सी फैक्ट्स] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20141206155325/http://epaper.sakaaltimes.com/ST/ST/2008/11/17/ArticleHtmls/17_11_2008_004_002.shtml |date=6 दिसंबर 2014 }}।{{अंग्रेज़ी चिह्न}}</ref><ref name="२">[http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/28090738.cms वर्ल्ड एपिलेप्सी डे सिलिब्रेटेड ऍट जहांगीर हॉस्पिटल]। द टाइम्स ऑफ इंडिया।{{अंग्रेज़ी चिह्न}}</ref><ref name="३">[http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_4997652.html मिरगी रोग हो सकता है जानलेवा] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20120119100026/http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_4997652.html |date=19 जनवरी 2012 }}, याहू जागरण, १७ नवम्बर २००९</ref> उचित उपचार के साथ, मिर्गी से प्रभावित कई व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। उनकी उपस्थिति के बावजूद, वे अच्छे स्वास्थ्य का आनंद ले सकते हैं। <ref>{{Cite web|url=https://www.uttarakhandhindinews.in/2021/01/yes-i-can-life-with-epilepsy.html|title=हाँ, मैं कर सकता हूँ: मिर्गी के साथ जीवन|access-date=2021-01-15}}</ref>
== इतिहास ==
== सन्दर्भ ==
<references />
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==इन्हें भी देखें==
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