"हिन्दू मन्दिर वास्तुकला": अवतरणों में अंतर

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[[मन्दिर]] शब्द [[संस्कृत साहित्य|संस्कृत वाङ्मय]] में अधिक प्राचीन नहीं है। [[महाकाव्य]] और [[सूत्रग्रन्थों]] में मंदिर की अपेक्षा देवालय, देवायतन, देवकुल, देवगृह आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। मंदिर का सर्वप्रथम उल्लेख [[शतपथ ब्राह्मण]] में मिलता है। [[शाखांयन स्त्रोत]] सूत्र में [[राजमहल|प्रासाद]] को दीवारों, छत, तथा खिड़कियों से युक्त कहा गया है। [[वैदिक सभ्यता|वैदिक युग]] में प्रकृति [[देवता|देवों]] की [[पूजा]] का विधान था। इसमें दार्शनिक विचारों के साथ [[रूद्र]] तथा [[विष्णु]] का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में रूद्र प्रकृति, वनस्पति, पशुचारण के देवता तथा विष्णु यज्ञ के देवता माने गये हैं। बाद में, उत्तरवर्ती वैदिक साहित्य में विष्णु देवताओं में श्रेष्ठतम माने गए। ('' विष्णु परमः तदन्तरेण सर्वा अव्या देवताः''।)
 
भारत की प्राचीन स्थापत्य कला में मंदिरों का विशिष्ट स्थान है। भारतीय संस्कृति में मंदिर निर्माण के पीछे यह सत्य छुपा था कि ऐसा [[धर्म]] स्थापित हो जो जनता को सहजता व व्यवहारिकता से प्राप्त हो सके। इसकी पूर्ति के लिए मंदिर स्थापत्य का प्रार्दुभाव हुआ। इससे पूर्व भारत में [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] एवं [[जैन धर्म]] द्वारा गुहा, [[स्तूप|स्तूपों]] एवं [[चैत्य|चैत्यों]] का निर्माण किया जाने लगा था। [[कुषाण राजवंश|कुषाणकाल]] के बाद [[गुप्त राजवंश|गुप्त काल]] में देवताओं की पूजा के साथ ही देवालयों का निर्माण भी प्रारंभ हुआ।
 
प्रारंभिक मंदिरों का वास्तु विन्यास [[बौद्ध बिहार|बौद्ध बिहारों]] से प्रभावित था। इनकी छत चपटी तथा इनमें गर्भगृह होता था। मंदिरों में रूप विधान की कल्पना की गई और कलाकारों ने मंदिरों को साकार रूप प्रदान करने के साथ ही देहरूप में स्थापित किया। चौथी सदी में भागवत धर्म के अभ्युदय के पश्चात (इष्टदेव) भगवान की प्रतिमा स्थापित करने की आवश्यकता प्रतीत हुई। अतएव [[वैष्न सम्रदाय|वैष्णव मतानुयायी]] मंदिर निर्माण की योजना करने लगे। [[साँची का स्तूप|साँची]] का दो [[स्तम्भ]]युक्त कमरे वाला मंदिर गुप्तमंदिर के प्रथम चरण का माना जाता है। बाद में गुप्त काल में वृहदस्तर पर मंदिरों का निमार्ण किया गया जिनमें [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव]] तथा [[शैव]] दोनों धर्मो के मंदिर हैं। प्रारम्भ में ये मंदिर सादा थे और इनमें स्तंभ अलंकृत नही थे। [[शिखर|शिखरों]] के स्थान पर [[छत]] सपाट होती थी तथा [[गर्भगृह]] में भगवान की प्रतिमा, ऊँची जगती आदि होते थे। गर्भगृह के समक्ष [[स्तम्भ|स्तंभों]] पर आश्रित एक छोटा अथवा बड़ा बरामदा भी मिलने लगा। यही परम्परा बाद के कालों में प्राप्त होती है।
 
==मन्दिर शब्दावली==