"हिंदी साहित्य": अवतरणों में अंतर

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{{मुख्य|हिंदी साहित्य का इतिहास}}
 
हिंदी साहित्य का आरम्भ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। यह वह समय है जब [[हर्षवर्धन|सम्राट हर्ष]] की मृत्यु के बाद देश में अनेक छोटे-छोटे शासन केंद्रकेन्द्र स्थापित हो गए थे जो परस्पर संघर्षरत रहा करते थे। [[मुसलमान]]ों से भी इनकी टक्कर होती रहती थी। [[हिंदी साहित्य|हिन्दी साहित्य]] के विकास को आलोचक सुविधा के लिये पाँच ऐतिहासिक चरणों में विभाजित कर देखते हैं, जो क्रमवार निम्नलिखित हैं:-
 
* [[आदिकाल]] (1400 ईस्वी पूर्व)
* [[भक्ति काल]] (1375 से 1700)
* [[रीति काल]] (संवतसंवत् 1700 से 1900)
* [[आधुनिक काल]] (१८५०1850 ईस्वी के पश्चात)
* [[नव्योत्तर काल]] (१९८०1980 ईस्वी के पश्चात)
 
=== आदिकाल ===
{{main|आदिकाल}}
 
हिन्दी साहित्य आदिकालको आलोचक 1400 ईसवी से पूर्व का काल मानते हैं जब [[हिन्दी]] का उद्भव हो ही रहा था। हिन्दी की विकास-यात्रा [[दिल्ली]], [[कन्नौज]] और [[अजमेर]] क्षेत्रों में हुई मानी जाती है। [[पृथ्वीराज चौहान]] का उस समय [[दिल्ली]] में शासन था और [[चंदबरदाई]] नामक उसका एक [[दरबारी कवि]] हुआ करता था। चंदबरदाई की रचना 'पृथ्वीराजरासो' है, जिसमें उन्होंने अपने मित्र पृथ्वीराज की जीवन गाथा कही है। '[[पृथ्वीराज रासो]]' हिंदीहिन्दी साहित्य में सबसे बृहत् रचना मानी गई है। [[कन्नौज]] का अंतिमअन्तिम [[राठौड़]] शासक [[जयचन्द|जयचंद]] था जो [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] का बहुत बड़ा [[संरक्षक]] था।
 
=== भक्ति काल ===
{{main|भक्ति काल }}
 
[[हिंदी साहित्य|हिन्दी साहित्य]] का [[भक्ति काल]] 1375 से 1700 तक माना जाता है। यह काल प्रमुख रूप से [[भक्ति]] भावना से ओतप्रोत है। इस काल को समृद्ध बनाने वाली दो काव्य-धाराएंधाराएँ हैं -1.निर्गुण भक्तिधारा तथा 2.सगुण भक्तिधारा।
[[निर्गुण ब्रह्म|निर्गुण]] भक्तिधारा को आगे दो हिस्सों में बांटाबाँटा गया है। एक है [[संत काव्य]] जिसे ज्ञानाश्रयी शाखा के रूप में भी जाना जाता है, इस शाखा के प्रमुख कवि, [[कबीर]], [[गुरु नानक|नानक]], [[दादूदयाल]], [[रविदास|रैदास]], [[मलूकदास]], [[सुंदरदास|सुन्दरदास]], [[धर्मदास]]<ref>{{cite book |last1=आचार्य रामचन्द्र |first1=शुक्ल |title=हिंदी साहित्य का इतिहास |date=2013 |publisher=लोकभारती प्रकाशन |location=इलाहाबाद |page=54}}</ref> आदि हैं।
 
निर्गुण भक्तिधारा का दूसरा हिस्सा [[सूफ़ीवाद|सूफी]] [[काव्य]] का है। इसे प्रेमाश्रयी शाखा भी कहा जाता है। इस शाखा के प्रमुख कवि हैं- [[मलिक मोहम्मद जायसी]], [[कुतुबन]], [[मंझन]], [[शेख नबी]], [[कासिम शाह]], [[नूर मोहम्मद]] आदि।
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कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं- [[सूरदास]], [[नंददास]], [[कुम्भनदास]], [[छीतस्वामी]], [[गोविंदस्वामी|गोविन्द स्वामी]], [[चतुर्भुजदास|चतुर्भुज दास]], [[कृष्णदास]], [[मीरा बाई|मीरा]], [[रसखान]], [[रहीम]] आदि। चार प्रमुख कवि जो अपनी-अपनी धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये कवि हैं (क्रमशः)
 
:[[कबीर]]दास (१३९९1399)-(१५१८1518)
 
:[[मलिक मोहम्मद जायसी]] (१४७७1477-१५४२1542)
 
:[[सूरदास]] (१४७८1478-१५८०1580)
 
:[[तुलसीदास]] (१५३२1532-१६०२1602)
 
=== रीति काल ===
{{main|रीति काल}}
 
[[हिन्दी|हिंदी]] साहित्य का [[रीति काल]] संवत 1700 से 1900 तक माना जाता है यानी 1643ई०1643 ई॰ से 1843ई०1843 ई॰ तक। रीति का अर्थ है बना बनाया रास्ता या बंधीबँधी-बंधाईबँधाई परिपाटी। इस काल को [[रीति काल|रीतिकाल]] कहा गया क्योंकि इस काल में अधिकांश कवियों ने [[शृंगार रस|श्रृंगार]] वर्णन, अलंकार प्रयोग, छंदछन्द बद्धता आदि के बंधेबँधे रास्ते की ही कविता की। हालांकि [[घनानन्द|घनानंद]], [[बोधा]], [[ठाकुर]], गोबिंद सिंह जैसे रीति-मुक्त कवियों ने अपनी रचना के विषय मुक्त रखे। इस काल को रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त तीन भागों में बांटाबाँटा गया है।
 
[[केशव]] ([[१५४६]]-[[१६१८]]), [[बिहारी (साहित्यकार)|बिहारी]] (१६०३1603-१६६४1664), [[भूषण (हिन्दी कवि)|भूषण]] (१६१३1613-१७०५1705), [[मतिराम]], [[घनानन्द]] , [[सेनापति]] आदि इस युग के प्रमुख रचनाकार रहे।
 
=== आधुनिक काल ===
{{main|आधुनिक काल}}
[[आधुनिक काल]] हिंदीहिन्दी साहित्य पिछली दो सदियों में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा है। जिसमें गद्य तथा पद्य में अलग अलग विचार धाराओं का विकास हुआ। जहांजहाँ काव्य में इसे [[छायावाद|छायावादी युग]], [[प्रगतिवादी युग]], [[प्रयोगवादी युग]] और [[यथार्थवादी युग]] इन चार नामों से जाना गया, वहीं गद्य में इसको, [[भारतेन्दु युग|भारतेंदु युग]], [[द्विवेदी युग]], [[रामचंद‍ शुक्ल व प्रेमचंद युग]] तथा [[अद्यतन युग]] का नाम दिया गया।
 
अद्यतन युग के [[गद्य]] साहित्य में अनेक ऐसी साहित्यिक विधाओं का विकास हुआ जो पहले या तो थीं ही नहीं या फिर इतनी विकसित नहीं थीं कि उनको साहित्य की एक अलग विधा का नाम दिया जा सके। जैसे [[डायरी लेखन|डायरी]], या‌त्रा विवरण, [[आत्मकथा]], रूपक, रेडियो नाटक, पटकथा [[लेखन]], [[फ़िल्म]] आलेख इत्यादि.
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{{main|नव्योत्तर काल }}
 
[[नव्योत्तर काल]] की कई धाराएंधाराएँ हैं - एक, पश्चिम की नकल को छोड़ एक अपनी वाणी पाना; दो, अतिशय अलंकार से परे सरलता पाना; तीन, जीवन और समाज के प्रश्नों पर असंदिग्ध विमर्श।
 
[[कंप्यूटरकम्प्यूटर]] के आम प्रयोग में आने के साथ साथ हिंदीहिन्दी में कंप्यूटरकम्प्यूटर से जुड़ी नई विधाओं का भी समावेश हुआ है, जैसे- चिट्ठालेखन और जालघर की रचनाएं।रचनाएँ। हिन्दी में अनेक स्तरीय [[हिन्दी चिट्ठाजगत|हिंदी चिट्ठे]], [[जालघर]] व [[जाल पत्रिकाएँ|जाल पत्रिकायें]] हैं। यह [[कंप्यूटर]] साहित्य केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के हर कोने से लिखा जा रहा है। इसके साथ ही अद्यतन युग में प्रवासी हिंदीहिन्दी साहित्य के एक नए युग का आरंभआरम्भ भी माना जा सकता है।
 
== हिन्दी की विभिन्न बोलियों का साहित्य ==