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'''वाक्यपदीय''', [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] [[व्याकरण]] का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसे '''त्रिकाण्डी''' भी कहते हैं। वाक्यपदीय, व्याकरण शृंखला का मुख्य दार्शनिक ग्रन्थ है। इसके रचयिता [[नीतिशतकम्|नीतिशतक]] के रचयिता महावैयाकरण तथा योगिराज [[भर्तृहरि]] हैं। इनके गुरु का नाम वसुरात था। भर्तृहरि को किसी ने तीसरी, किसी ने चौथी तथा छठी या सातवी सदी में रखा है। वाक्यपदीय में भर्तृहरि ने भाषा (वाच्) की प्रकृति और उसका वाह्य जगत से सम्बन्ध पर अपने विचार व्यक्त किये हैं। यह ग्रंथ तीन भागों में विभक्त है जिन्हें "कांड" कहते हैं। यह समस्त ग्रंथ पद्य में लिखा गया है। प्रथम "ब्रह्मकांड" है जिसमें 157 कारिकाएँ हैं, दूसरा "वाक्यकांड है जिसमें 493 कारिकाएँ हैं और तीसरा "पदकांड" के नाम से प्रसिद्ध है।
 
इसका प्रथम काण्ड '''ब्रह्मकाण्ड''' है जिसमें '''शब्द''' की प्रकृति की व्याख्या की गयी है। इसमें शब्द को '''ब्रह्म''' माना गया है और ब्रह्म की प्राप्ति के लिये शब्द को प्रमुख साधन बताया गया है।