"कुण्डली": अवतरणों में अंतर
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कुन्डली में सम्पूर्ण भचक्र को बारह भागों में विभाजित किया जाता है और जिस प्रकार से एक [[वृत]] के ३६० अंश होते हैं, उसी प्रकार से कुन्डली में भी ३६० अंशों को १२ भागों में विभाजित करने पर हर भाग के ३० अंश बनाकर एक [[राशियाँ|राशि]] का नाम दिया जाता है। इस प्रकार ३६० अंशों को बारह राशियों में विभाजित किया जाता है, बारह राशियों को अलग भाषाओं में अलग अलग नाम दिये गये हैं, भारतीय [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] और वेदों के अनुसार नाम इस प्रकार से है-'''[[मेष राशि|मेष]]''', '''[[वृष राशिअ|वृष]]''', '''[[मिथुन राशि सन्दूक|मिथुन]]''', '''[[कर्क राशि|कर्क]]''', '''[[सिंह राशि|सिंह]]''', '''[[कन्या राशि|कन्या]]''', '''[[तुला राशि|तुला]]''', '''[[वॄश्चिक राशि|वृश्चिक]]''', '''[[धनु राशि|धनु]]''', '''[[मकर राशि|मकर]]''', '''[[कुंभ राशि|कुम्भ]]''', '''[[मीन राशि|मीन]]''' इन राशियों को भावों या भवनो का नाम भी भी दिया गया है जैसे पहले भाव को नम्बर से लिखने पर १ नम्बर मेष राशि के लिये प्रयोग किया गया है। शरीर को ही ब्रह्माण्ड मान कर प्रत्येक भावानुसार शरीर की व्याख्या की गई है, संसार के प्रत्येक जीव, वस्तु, के भी अलग अलग भावों व्याख्या करने का साधन बताया जाता है।
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