"यूनानी भाषा": अवतरणों में अंतर

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== ग्रीक रगंमंच ==
=== दु:खांतखान्त तथा सुखांतसुखान्त नाटक ===
ग्रीक साहित्य का चरमोत्कर्ष [[नाटक|नाटकों]] में पाया जाता है जिनका केंद्रकेन्द्र एथेंस था और मुख्य भाषा "ऐतिक" थी। ग्रीक नाटक सार्वजनीन जीवन से संबंधितसम्बन्धित रहे और उनमें मुख्य भावना तथा प्रेरणा धार्मिक थी। ग्रीक दु:खांतखान्त का उद्भव सुरा के देवता दियोनिसस् के सम्मान में आयोजित कीर्तनों तथा आमोदों से हुआ जिसमें पुजारी बकरे का चेहरा लगाए मस्ती से गाते हुए घूमते थे। इन गीतों को "डिथारैव" कहते थे। इसी ने कालांतरकालान्तर में नाटक का रूप धारण किया जब धर्मिक कोरस दो भागों में विभक्त हो गया- एक ओर देवता का दूत और दूसरी ओर उनके पुजारी। यही दूत नाटक का प्रथम पात्र माना जाता है। ईसापूर्व पाँचवीं शताब्दी के आरंभआरम्भ तक ग्रीक नाटक का रूप सुगठित हो चुका था और दु:खांतखान्त नाटक के तीन मुख्य स्तंभस्तम्भ इस्किलस, साफोक्लीज तथा युरोपिदीज इसी काल में (ई.पू.ई॰पू॰ चतुर्थ शताब्दी) इसको विकसित करने के लिये प्रयत्नशील हुए। इस्किलस ग्रीक दु:खांतखान्त नाटक के पिता माने जाते हैं। यह सैनिक कवि थे और इनके नाटकों में ओजस्वी शैली के साथ ही कल्पना की ऊँची उड़ान तथा प्रगाढ़ देशप्रेम और अटूट धर्मिक विश्वास पाए जाते हैं। प्रधानता काव्यपक्ष की है और नाटकीय तत्व गौण है। अरिस्तीज तथा प्रीमेथ्यूज संबंधीसम्बन्धी इनके नाटक विशेष प्रसिद्ध हैं। ग्रीक दु:खांतखान्त के विकास में केंद्रीय स्थान इस्किलस के सफल प्रतिद्वंद्वीप्रतिद्वन्द्वी सीफोक्लीज का है, जिन्होंने तीसरे पात्र का समावेश कर नाटकीय तत्वों, विशेषकर संवाद का दायरा विस्तृत किया। इनके नाटकों में मानव तथा अलौकिक तत्वों का कलात्मक सामंजस्य है और इनके पात्र, जैसे ईदिपस और ऐतीगोन, असाधारण व्यक्तित्व के होते हुए भी, मानवोचित विशेषताओं से परिपूर्ण है। वातावरण उच्च विचारों से प्रेरित है। यूरीपिदीज के नाटकों में प्राचीन मान्यताओं का ह्रास तथा आधुनिक दृष्टिकोण का उदय स्पष्टत: अंकित है। धार्मिक श्रद्धा के स्थान पर नास्तिकता, आदर्शवाद के स्थान पर यथार्थवाद, असाधारण पात्रों के स्थान पर साधारण पात्र पाठकों के समक्ष आते हैं। वे करुणरस के पोषक थे और उनके संवादों में जटिल तर्कों का समावेश है।
 
ऐसा माना जाता है कि इस अर्धशताब्दी के अल्पकाल में इस्किलस ने 70, सोफोक्लीज ने 113 और यूरापिदीज ने 92 नाटकों का निर्माण किया जिनमें अधिकांश लुप्त हो गए।
 
ग्रीक सुखांतसुखान्त नाटक का उदय भी दियोनिसस देवता की पूजा से ही हुआ, परंतुपरन्तु इस पूजा का आयोजन जाड़े में न होकर वसंतवसन्त में होता था और पुजारियों का जुलूस वैसे ही उद्दंडताउद्दण्डता तथा अश्लीलता का प्रदर्शन करता था जैसा भारत में होली के अवसर पर प्राय: देखने में आता है। सुखांतसुखान्त नाटक के विकास में दीरियाई लोगों का महत्वपूर्ण योग रहा, परंतुपरन्तु इसका उत्कर्ष तो एतिका से ही संबंधितसम्बन्धित है क्योंकि प्राचीन ग्रीक सुखांतसुखान्त नाटक के प्रबल प्रवर्तक अरिस्तोफानिज का कार्यक्षेत्र तो एथेंस ही रहा। इस निर्भीक नाटककार ने ईसा पूर्व 427 से लेकर 40 वर्षो तक ऐसे सुखांतसुखान्त नाटकों का सृजन किया जिनमें स्वच्छंदस्वच्छन्द कल्पना की उड़ान के साथ साथ काव्य की मधुरता, निरीक्षण की तीव्रता तथा व्यंगों की विदग्धता का आश्चर्यजनक सम्मिश्रण हैं। इन सुखांतांसुखान्तां में, "पक्षी", "भेक", "मेघ", "रातें" और प्राय: व्यक्तियों पर प्रहार किया गया है। इनमें से अनेक में सुकरात और उसके शिष्यों के राजनीतिक तथा न्याय संबंधीसम्बन्धी कथोपकथनों, पेरिक्लीज की राजनीति तथा उसकी रखैल अस्पाजिया के तीव्र उपाहास प्रस्तुत हैं। कई स्थानों पर हास्यरस अश्लीलता से पंकिल हो उठा है। प्राचीन सुखांतसुखान्त नाटकों का परिमार्जन यूनान के मध्यकालीन सुखांत नाटकों में हुआ, जिनमें बर्बरता तथा व्यक्तिगत व्यंगों के स्थान पर शिष्ट प्रहसन को प्रोत्साहन मिला जिसके पात्र प्राय: विभिन्न मानव वर्गी तथा त्रुटियों के प्रतीक होते थे। इस नवीन एवं सुखांतसुखान्त नाटक के सजीव उदाहरण "प्लातस" तथा "तेरेंस" के रोमन नाटकों में मिलते हैं। मिनैंडर इसके सर्वप्रसिद्ध यूनानी प्रवर्तक थे। इन सुखांतसुखान्त नाटकों में निम्नकोटि का वासनातत्व प्रधान है।
 
== ग्रीक गद्य का विकास ==