"ध्यानचंद सिंह": अवतरणों में अंतर

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== जीवन परिचय ==
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त सन्‌ 1905 ई. को इलाहाबाद मे हुआ था। वो एक [[राजपूतकुशवाहा]] परिवार में जन्मे थे <ref>http://www.bharatiyahockey.org/granthalaya/goal/</ref><ref>{{cite book |author=Dhyan Chand |title=Goal! Autobiography of Hockey Wizard Dhyan Chand |url=http://www.bharatiyahockey.org/granthalaya/goal/ |year=1952 |publisher=Sport & Pastime |location=Chennai |page=2 |quote=I was born in Allahabad on August 29, 1905. I come from a Rajput family which settled in Allahabad and later migrated to Jhansi.}}</ref><ref name="sportstar">{{cite web|url=https://sportstar.thehindu.com/hockey/the-legend-of-dhyan-chand/article19580161.ece|title=The legend of Dhyan Chand|work=The Hindu|access-date=2020-08-29}}</ref> । बाल्य-जीवन में खिलाड़ीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते थे। इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात नहीं थी, बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी। साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की अवस्था में 1922 ई. में [[दिल्ली]] में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भरती हो गए। जब 'फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट' में भरती हुए उस समय तक उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी या रूचि नहीं थी। ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारीमौर्या को है। मेजर तिवारीमौर्य स्वंय भी प्रेमी और खिलाड़ी थे। उनकी देख-रेख में ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे देखते ही देखते वह दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए।<ref name="test2">saagam.com/info/alltimegreat/sports/dhyan-chand.php</ref>
सन्‌ 1927 ई. में लांस नायक बना दिए गए। सन्‌ 1932 ई. में [[लॉस ऐंजल्स]] जाने पर नायक नियुक्त हुए। सन्‌ 1937 ई. में जब भारतीय हाकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। जब [[द्वितीय महायुद्ध]] प्रारंभ हुआ तो सन्‌ 1943 ई. में 'लेफ्टिनेंट' नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर सन्‌ 1948 ई. में कप्तान बना दिए गए। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हें 'वायसराय का कमीशन' मिला और वे सूबेदार बन गए। उसके बाद एक के बाद एक दूसरे सूबेदार, लेफ्टीनेंट और कैप्टन बनते चले गए। बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया।
[[चित्र:Dhyanchand statue.jpg|right|thumb|300px|ध्यानचंद की प्रतिमा]]