"मिहिरकुल": अवतरणों में अंतर
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== परिचय ==
गुर्जर हूण सम्राट तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरकुल भारतीय इतिहास में अपनी खूँखार और ध्वंसात्मक प्रवृत्ति के लिये प्रसिद्धश् हैं। भारतीय स्रोतों के अतिरिक्त इनकी बर्बरता का चित्रण चीनी तथा यूनानी इतिहासकारों ने भी किया है। कुमारगुप्त के राज्यकाल (ई० ४१४-४५५) के अंतिम वर्षो में गुर्जर हूणों ने उत्तरी भारत पर धावा बोल दिया। राजकुमार स्कंदगुप्त ने इस आक्रमण को रोक लिया पर छठी शताब्दी के प्रथम चरण मे गुर्जर हूणों का आधिपत्य मालवा तक छा गया। तोरमाण का पुत्र मिहिरकुल लगभग ५१५ ई० में सिंहासन पर बैठा। उसकी राजधानी साकल अथवा स्यालकोट थी। "राजतरंगिणी' के अनुसार इसका राज्य कश्मीर तथा गंधार से लेकर दक्षिण में लंका तक फैला था। किंतु इस वृतांत में तथ्य नहीं है। कल्हण ने तोरमाण को मिहिरकुल से १८ वीं पीढ़ी बाद रखा है पर वास्तव में मिहिरकुल तोरमाण का पुत्र था। इस ग्रंथ में उल्लिखित मिहिरकुल की नृशंस प्रवृत्तियों की पुष्टि युवान् च्वांङ के वृत्तांत से भी होती है। चीनी स्रोतों में संगु युग का वृत्तांत भी उल्लेखनीय है। यह लगभग ५२० ई० में गंधार में गुर्जर हूण सम्राट के यहाँ राजदूत था। इसके अतिरिक्त एक यूनानी भौगोलिक कासमॉस इंद्रिको प्लूस्तस ने श्वेत गुर्जर हूण सम्राट, गोलस का उल्लेख किया है जो लगभग ५२५-५३५ ई० मे उत्तरी भारत का सम्राट था। कदाचित् इसकी समानता मिहिरकुल से की जा सकती है। उपर्युक्त स्रोतों के आधार पर गुर्जर हूण सम्राट, मिहिरकुल का साम्राज्य सिंधु नदी से पश्चिम में था और उसका आधिपत्य उत्तरी भारत के शासक स्वीकार करते थे। बौद्ध धर्म का वह कट्टर विरोधी था और इसने मठों तथा संघारामों को ध्वस्त किया। इसके राज्यकाल के १५ वें वर्ष का एक लेख ग्वालियर में मिला है जिसमें मातृचेत नामक एक व्यक्ति द्वारा सूर्यमंदिर की स्थापना का उल्लेख है।
मिहिरकुल अधिक समय तक राज्य न कर
== सन्दर्भ ग्रंथ ==
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