"आदि शंकराचार्य": अवतरणों में अंतर
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'''आदि शंकर''' ({{lang-sa|आदिशङ्कराचार्यः}}) ये [[भारत]] के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने [[अद्वैत वेदान्त]] को ठोस आधार प्रदान किया। [[श्रीमद्भगवद्गीता|भगवद्गीता]], [[उपनिषद्|उपनिषदों]] और [[ब्रह्मसूत्र|वेदांतसूत्रों]] पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान-कर्मसमुच्चयवाद का खण्डन किया। उनका जन्म
उनके विचारोपदेश [[आत्मा]] और [[परमात्मा]] की एकरूपता पर आधारित हैं जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में [[सगुण]] और [[निर्गुण ब्रह्म|निर्गुण]] दोनों ही स्वरूपों में रहता है। स्मार्त संप्रदाय में आदि शंकराचार्य को [[शिव]] का अवतार माना जाता है। इन्होंने [[ईशावास्य उपनिषद्|ईश]], [[केनोपनिषद|केन]], [[कठ उपनिषद्|कठ]], [[प्रश्नोपनिषद|प्रश्न]], [[मुण्डकोपनिषद्|मुण्डक]], [[माण्डूक्योपनिषद|मांडूक्य]], [[ऐतरेय उपनिषद|ऐतरेय]], [[तैत्तिरीयोपनिषद|तैत्तिरीय]], [[बृहदारण्यक उपनिषद्|बृहदारण्यक]] और [[छांदोग्य उपनिषद|छान्दोग्योपनिषद्]] पर [[भाष्य]] लिखा। [[वेद|वेदों]] में लिखे ज्ञान को एकमात्र [[ईश्वर]] को संबोधित समझा और उसका प्रचार तथा वार्ता पूरे [[भारत]]वर्ष में की। उस समय वेदों की समझ के बारे में मतभेद होने पर उत्पन्न चार्वाक, [[जैन धर्म|जैन]] और [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] मतों को शास्त्रार्थों द्वारा खण्डित किया और भारत में चार कोनों पर ज्योति, गोवर्धन, श्रृंगेरी एवं द्वारिका आदि चार मठों की स्थापना की।
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